"विराटाभिव्यक्ति"
सजल नेत्रों व भरे हृदय से सारे विश्व के कोने-कोने में स्थापित अपने सहज साथियों से इस कठिन समय को बांटते हुए पूर्ण सजगता, विश्वास व समर्पण के साथ 'परम प्रिय श्री माँ' को अपने भीतर में महसूस करते हुए अंत:करण में स्वत: ही उठने वाले भावों को यह 'साधक' प्रगट करना चाह रहा है:------- "साथियों 'श्री माँ' कहीं भी नहीं गयी हैं, पूर्ण रूप से अपने वास्तविक रूप में हम सभी के साथ ही हैं, देखो अपने-अपने सहस्त्रारों को, कल शाम लग-भग 4 बजे से कितनी तीव्रता के साथ हलचल व खिंचाव दे रहे है, देखो अपने-अपने हृदयों को, खूब जोर-जोर से चल रहे है, महसूस करो अपनी-अपनी नसों व नाड़ियों को जिनमे 'श्री माँ' परम बन कर बह रहीं हैं, पहचानो अपनी शिराओं व धमनियों की भाषा को जो कम्पन्न दे कर कुछ 'माँ' का संदेसा देना चाहती है, समझो अपने-अपने रोम-छिद्रों के इशारों को जो 'श्री माँ' के भीतर में स्थापित होने का पता दे रहे हैं।"
ऐसा लग रहा है मानो परमात्मा के द्वारा बनाये गए इस शरीर रुपी मंदिर में 'हृदेश्वरी' का आगमन हो गया है, इस मंदिर में स्थापित समस्त देव-गण जागृत होकर 'उनका' स्वागत करने में लगे हैं, अंतस में एक 'दिव्य धारा' विचरण करती प्रतीत हो रही है। जैसे इस अनमोल मंदिर का रोम-रोम जागृत होता प्रतीत हो रहा है।
हम सभी अक्सर बाते करते रहते थे कि 'माँ' कब आयेंगी, कब तक हमारे पास रहेंगी, कब वापस जायेंगी, इन सभी बातों पर 'श्री माँ'ने विराम लगा दिया है, अब 'वे' हम सब के हृदयों में सदा के लिए स्थापित हो गयीं है, आने जाने की समस्या का 'माँ' ने समाधान कर दिया है।
अपने 'साकार स्वरुप' के समस्त अणुओं को विभक्त कर पुरे ब्रहम्मांड में बिखेर दिया है और पुन: 'विराट प्रकाश पुंज' में परिवर्तित हो गयीं हैं, हम सभी को कुछ दिनों तक अपने-अपने सहस्त्रोरों के माध्यम से उन 'विलक्षण' प्रकाश कणों को आत्मसात कर अपने हृदयों में स्थापित करते जाना है और 'उनके' निराकार स्वरुप को अपने मध्य -हृदय में सदा के लिए प्रतिष्ठित करते जाना है। और साथ ही साथ विश्व के समस्त सह्ज साधकों को अपने चित्त के माध्यम से उनके हृदयों व सहस्त्रोरों को जोड़कर अपने भीतर ऊर्जा(वायब्रेशन ) रूप में आई 'श्री माँ' को उन सब के हृदयों में प्रवाहित करना है ताकि सारे विश्व के सह्ज साधक एक भाव हो सकें।
एवम 'श्री माँ' के द्वारा प्रारंभ किये गए दिव्य कार्य को पूर्ण रूप से सफल बनाना है तभी हम सबकी ओर से 'श्री माँ' 'सूक्ष्म रूप' में हम सभी से प्रसन्न रह सकतीं हैं व हम सबके मानवीय जीवन को सफल बनाने में हमारी मदद कर सकतीं हैं।
अब से हम सबको अपने व दूसरों के चक्रों में पकड़ या नाड़ियों में बाधाओं को देखने की जगह कण-कण में व्याप्त 'आदि माँ' को इस भाव में महसूस करना है, कि "हे 'आदि शक्ति माँ' क्या आप मेरे विशुद्धि.....मूलाधार......अग्न्या ....नाभि....स्वाधिष्ठान......आदि चक्रों या नाड़ियों में उपस्थित हैं", और ये भाव रखकर सहस्त्रार से उनकी उपस्थिति महसूस करें यानि चित तो चक्रों या नाडी पर रखें व सहस्त्रार से 'माँ' को अनुभव करें। इसी प्रकार से किसी भी स्थान की वायब्रेशन देखने के स्थान पर 'श्री माँ' को चित्त व सहस्त्रार की मदद से अनुभव करें ऐसा करने से वह चक्र, नाड़ियाँ व स्थान अपने आप स्वच्छ हो जायेंगे और पकड़ या गरम वायब्रेशन भी नहीं आयेंगी। क्योंकि सहस्त्रार ही केवल एक मात्र ऐसा यंत्र है जो कि 'आदि शक्ति' का पता लगा सकता है। इससे सदा सहजियों के बीच प्रेम भाव बना रहेगा व भेद-भाव भी उत्पन्न नहीं होगा और सहजी तेजी से उत्थान को प्राप्त होंगे।
'श्री माँ' सदा कहतीं हैं कि तुम सब मेरे विराट शरीर में विद्यमान हो और अब 'श्री माँ' हम सभी के शरीरों में समां गईं हैं और हमारे भीतर ही रहकर हमारा मार्ग दर्शन कर रहीं हैं। पहले 'श्री माँ' एक नजर आतीं थीं पर अब हम सभी के हृदयों में समां कर अनेक हो गयीं हैं। ('Shree Maa' has converted 'Her' Atoms of 'Her'physical body into light and has become A Mass of particles of light, has become completely Omnipresent. So we can absorb those particles of 'Her' divine physical form through our Sahastrara and can store them in our Central Heart for feeling 'Her' into our subtle system.)
"हे 'माँ अदि शक्ति' आपके 'चरण कमलों' में, विलय हो चुके हम,
करते हैं वादा आपसे; ,नित्य ध्यान में, तीव्रता से अग्रसर होंगे हम,
जुट जायेंगे जी -जान से सहज-प्रसार में, पूरे करेंगे आपके सभी स्वप्न,
देंगे सहारा हर सत्य-साधक को, बनकर स्वम का 'सदगुरू' हम,
बनकर 'मशाल' सद्ज्ञान की, दूर करेंगे सर्वयापी 'घनघोर 'तम'
महका देंगे सम्पूर्ण जगत को , बनकर 'सुगन्धित उपवन,
मिटा देंगे समस्त भेद-भाव को, होकर आपसे एक-रूप हम,
बहा देंगे पूरे विश्व में 'निर्मल प्रेम को, बन कर प्रेममई 'बयार हम,
कर कर समर्पण अंत:करण में, सदा इच्छा से, आपकी, चलेंगे हम,
पूर्ण आभास कर, आपका, अपने अस्तित्वों में, हृदय से जाग्रति देंगे हम,
बैठाकर सहस्त्रार पर सहस्त्रों सहजियों को, इच्छा आपकी , पूरी करेंगे हम,
सुविकसित कर 'सुवासित पुष्पों'(सहजियों) को, हर माह अर्पण करेंगे हम,
बनाकर हार इन्ही 'सुन्दरतम कुसुमो' का, 'श्री कंठ' कों सुशोभित करेंगे हम,
जलाकर हर दिन सहस्त्रार दीपकों को, 'श्री शक्ति पूजा' निरंतर करेंगे हम।
--------------------------------------------------Narayan
ऐसा लग रहा है मानो परमात्मा के द्वारा बनाये गए इस शरीर रुपी मंदिर में 'हृदेश्वरी' का आगमन हो गया है, इस मंदिर में स्थापित समस्त देव-गण जागृत होकर 'उनका' स्वागत करने में लगे हैं, अंतस में एक 'दिव्य धारा' विचरण करती प्रतीत हो रही है। जैसे इस अनमोल मंदिर का रोम-रोम जागृत होता प्रतीत हो रहा है।
हम सभी अक्सर बाते करते रहते थे कि 'माँ' कब आयेंगी, कब तक हमारे पास रहेंगी, कब वापस जायेंगी, इन सभी बातों पर 'श्री माँ'ने विराम लगा दिया है, अब 'वे' हम सब के हृदयों में सदा के लिए स्थापित हो गयीं है, आने जाने की समस्या का 'माँ' ने समाधान कर दिया है।
अपने 'साकार स्वरुप' के समस्त अणुओं को विभक्त कर पुरे ब्रहम्मांड में बिखेर दिया है और पुन: 'विराट प्रकाश पुंज' में परिवर्तित हो गयीं हैं, हम सभी को कुछ दिनों तक अपने-अपने सहस्त्रोरों के माध्यम से उन 'विलक्षण' प्रकाश कणों को आत्मसात कर अपने हृदयों में स्थापित करते जाना है और 'उनके' निराकार स्वरुप को अपने मध्य -हृदय में सदा के लिए प्रतिष्ठित करते जाना है। और साथ ही साथ विश्व के समस्त सह्ज साधकों को अपने चित्त के माध्यम से उनके हृदयों व सहस्त्रोरों को जोड़कर अपने भीतर ऊर्जा(वायब्रेशन ) रूप में आई 'श्री माँ' को उन सब के हृदयों में प्रवाहित करना है ताकि सारे विश्व के सह्ज साधक एक भाव हो सकें।
एवम 'श्री माँ' के द्वारा प्रारंभ किये गए दिव्य कार्य को पूर्ण रूप से सफल बनाना है तभी हम सबकी ओर से 'श्री माँ' 'सूक्ष्म रूप' में हम सभी से प्रसन्न रह सकतीं हैं व हम सबके मानवीय जीवन को सफल बनाने में हमारी मदद कर सकतीं हैं।
अब से हम सबको अपने व दूसरों के चक्रों में पकड़ या नाड़ियों में बाधाओं को देखने की जगह कण-कण में व्याप्त 'आदि माँ' को इस भाव में महसूस करना है, कि "हे 'आदि शक्ति माँ' क्या आप मेरे विशुद्धि.....मूलाधार......अग्न्या ....नाभि....स्वाधिष्ठान......आदि चक्रों या नाड़ियों में उपस्थित हैं", और ये भाव रखकर सहस्त्रार से उनकी उपस्थिति महसूस करें यानि चित तो चक्रों या नाडी पर रखें व सहस्त्रार से 'माँ' को अनुभव करें। इसी प्रकार से किसी भी स्थान की वायब्रेशन देखने के स्थान पर 'श्री माँ' को चित्त व सहस्त्रार की मदद से अनुभव करें ऐसा करने से वह चक्र, नाड़ियाँ व स्थान अपने आप स्वच्छ हो जायेंगे और पकड़ या गरम वायब्रेशन भी नहीं आयेंगी। क्योंकि सहस्त्रार ही केवल एक मात्र ऐसा यंत्र है जो कि 'आदि शक्ति' का पता लगा सकता है। इससे सदा सहजियों के बीच प्रेम भाव बना रहेगा व भेद-भाव भी उत्पन्न नहीं होगा और सहजी तेजी से उत्थान को प्राप्त होंगे।
'श्री माँ' सदा कहतीं हैं कि तुम सब मेरे विराट शरीर में विद्यमान हो और अब 'श्री माँ' हम सभी के शरीरों में समां गईं हैं और हमारे भीतर ही रहकर हमारा मार्ग दर्शन कर रहीं हैं। पहले 'श्री माँ' एक नजर आतीं थीं पर अब हम सभी के हृदयों में समां कर अनेक हो गयीं हैं। ('Shree Maa' has converted 'Her' Atoms of 'Her'physical body into light and has become A Mass of particles of light, has become completely Omnipresent. So we can absorb those particles of 'Her' divine physical form through our Sahastrara and can store them in our Central Heart for feeling 'Her' into our subtle system.)
"हृदयांजलि"
"हे 'माँ अदि शक्ति' आपके 'चरण कमलों' में, विलय हो चुके हम,
करते हैं वादा आपसे; ,नित्य ध्यान में, तीव्रता से अग्रसर होंगे हम,
जुट जायेंगे जी -जान से सहज-प्रसार में, पूरे करेंगे आपके सभी स्वप्न,
देंगे सहारा हर सत्य-साधक को, बनकर स्वम का 'सदगुरू' हम,
बनकर 'मशाल' सद्ज्ञान की, दूर करेंगे सर्वयापी 'घनघोर 'तम'
महका देंगे सम्पूर्ण जगत को , बनकर 'सुगन्धित उपवन,
मिटा देंगे समस्त भेद-भाव को, होकर आपसे एक-रूप हम,
बहा देंगे पूरे विश्व में 'निर्मल प्रेम को, बन कर प्रेममई 'बयार हम,
कर कर समर्पण अंत:करण में, सदा इच्छा से, आपकी, चलेंगे हम,
पूर्ण आभास कर, आपका, अपने अस्तित्वों में, हृदय से जाग्रति देंगे हम,
बैठाकर सहस्त्रार पर सहस्त्रों सहजियों को, इच्छा आपकी , पूरी करेंगे हम,
सुविकसित कर 'सुवासित पुष्पों'(सहजियों) को, हर माह अर्पण करेंगे हम,
बनाकर हार इन्ही 'सुन्दरतम कुसुमो' का, 'श्री कंठ' कों सुशोभित करेंगे हम,
जलाकर हर दिन सहस्त्रार दीपकों को, 'श्री शक्ति पूजा' निरंतर करेंगे हम।
"जय श्री माता जी"