"Glimpse of Eternal Joy"
This Blog is dedicated to the "Lotus Feet" of Her Holiness Shree Mata Ji Shree Nirmala Devi who incepted and activated "Sahaj Yoga", an entrance to the "Kingdom of God" since 5th May 1970
Thursday, February 25, 2016
Sunday, February 21, 2016
"Impulses"----273
"Impulses"
1) "जिस प्रकार से हमारे शरीर में किसी भी स्थान पर किसी भी कारणवश चोट लग जाती है तो हमारे शरीर की समस्त शक्तियां उस चोट की और दौड़ पड़ती हैं और उस चोट को ठीक करने में लग जाती हैं।
ठीक इसी प्रकार से हमारे द्वारा किये गए स्वार्थ रहित सदकार्यों से प्राप्त हुई शुभकामनाएं, आशीर्वाद व् दुआएं "परमात्मा"
की शक्ति बनकर हमारे नकारात्मक प्रारब्ध के कारण घटित होने वाली दुर्घटनाओं के समय दौड़ कर हमारे पास आती हैं और हमें हानि पहुँचने से बचाती हैं व् हमारी रक्षा करती हैं।
और इसके विपरीत अहंकार, ईर्ष्या, व् लालच से प्रेरित होकर किये गए समस्त कार्यों के कारण किसी के दुखते -दिल से निकली हुई बद-दुआएं हमारे पूर्व जन्मों व् वर्तमान जन्म के किये गए पुण्य कार्यों के फलों को जलाकर राख कर देती हैं जिसके फलस्वरूप हमें विभिन्न प्रकार के नरक इसी जन्म में भोगने पड़ते हैं।
इसीलिए हमें सदा वर्तमान जीवन में निस्वार्थ सद-कार्य करते रहना चाहिए ताकि हमारे साथ दूसरों का जीवन सुन्दर हो जाये। और इसके लिए दूसरों को 'आत्म साक्षात्कार' देने व् सच्चे-खोजियों को गहनता प्राप्त कराने में मदद करने से बड़ा कोई सद्कर्म इस धरा पर नहीं है।"
2)
"As soon as the Bad Weather of our Mythical Notions clears out our Spirit
start manifesting its Compassionate Beauty into the Valley of our
Consciousness."
3)"चिन्ता और निश्चिन्तता हम मानवों की दो विपरीत स्थितियां हैं। जब मानव-चेतना मन के आधीन होती है तो मानव चिंतित होता है कयोंकि मन के भीतर वर्तमान जीवन के लिए कोई समाधान नहीं होता।
और जब हमारी चेतना, निश,यानि, नि=सहस्त्रार की शक्ति, श=शरण में जाती है तभी तो 'निश्चिंतता' घटित होती है। अतः चिंता के समय सहस्त्रार में अपनी चेतना को रखें निश्चिंतता का भरपूर आनंद उठायें।"
4)"Why Himalayas is called "Devisthan"...?
Because, Lots of 'Divine Powers' exist here which keep on Empowering the 'True
Devotees and Sadhakas'/Sadhikas since ancient time.
Such a pure places are away from all kinds of Mental Pollution
of Anti Nature and Anti God Human Beings, because of difficulties and hardships
in reaching there and staying to such Sacred Places.
Those who have Purity and Will Power in their Hearts, might be
eligible to relish the love of "Divine" by sitting into the Lap of
'Mighty Himalayas'."
--------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
·
Saturday, February 20, 2016
Sahaj Yoga(Video)--63--Deep Meditation--"E.H"--13--30-12-14
Quenching the thirst of our Unfulfilled Desires of Different Stages of our Human Life in Deep Meditative State."
Thursday, February 18, 2016
"Impulses--272--"मरना एक कला"
"मरना एक कला"
"कहते हैं, कि जीना एक कला है,
पर मुझको भीतर में महसूस होता है,
कि वास्तव में मरना एक कला है।
क्योंकि लोग जी तो मजबूरी में भी लेते हैं,
पर अच्छे से मरने की नहीं सोच पाते हैं।
जो प्रसन्नता से मरने की तैयारी करते हैं,
वही तो जीते जी अमर हो जाते हैं।
मरना एक उत्सव के सामान है,
जिसकी तैयारी के लिए हमें पूरी उम्र मिली है।
लोग जिंदगी जीने के लिए तड़पते हैं,
जिसकी घटनाएं सुनिश्चित नहीं होती।
न जाने क्यों लोग छटपटाते से मरते हैं,
और फिर जिंदगी बार बार लेकर पूरी जिंदगी तड़पते हैं।
तो फिर क्यों न अच्छे से मरने की तैयारी करें,
और भरपूर और खुशहाल वर्तमान जिंदगी जियें।
ताकि बार बार जीने की मजबूरी न हो,
और ना ही मरने की चिंता ही हो।
तो आओ आज से ही मरने की तैयारी शुरू करें,
और इस खूबसूरत जिंदगी को खूबसूरती से जीकर इसका भरपूर लुत्फ़ उठायें।। "
---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Tuesday, February 16, 2016
Saturday, February 13, 2016
"Impulses"---271
"Impulses"
1)"When a horse is taken on Road into a Cart then the
eyes of the horse use to be covered by a leather cover so that horse could not
see on both the sides but see straight.
If that leather cover is absent then horse will keep busy in
seeing on both the sides and horse will not move ahead.
The same situation is given by our "Beloved Mother" to
all the Sahajis not to look at other's but we should keep on moving towards our
actual destination (Attaining Mother) and we should help our all
the other Sahaj Companions to make them avail their ultimate target(The Sate of
Complete Freedom)with our own Internal Gainings and Experiences.
Only then we all will be able to enjoy this Divine Journey of
Meditation otherwise we might stick into the web of flowing thoughts of our
both the Agyas and then we might lose our true path and fall down from our
place."
"जब घोड़े को बग्गी में सड़क पर चलाना होता है तो उसकी दोनों आँखों के साइड में एक चमड़े का कवर लगाया जाता है जिससे वो दायें-बाएं न देख सके केवल सामने की ओर सीधा ही देखे।
यदि उसकी आँखों पर वो कवर न लगाया होता तो उसको अपने दांये-बाएं भी दिखेगा तो वह देखता ही रह जाएगा आगे नहीं बढ़ पायेगा।
यही स्थिति हम सभी सहज साथियों को "माँ" ने प्रदान की है कि हमें किसी को भी दायें-बाएं, इसकी-उसकी ओर न देखकर केवल अपने सामने अपनी मंजिल(श्री माँ) की ओर नजर रखते हुए आगे बढ़ते जाना है और अपने साथ चलने वालों को भी अपने स्वम् के अर्जित ज्ञान व् अनुभवों की बग्गी का आनद प्रदान कराते हुए उसी प्रेम-मंजिल(पूर्ण मुक्त अवस्था) की ओर अग्रसर होते जाना है ।
तभी हम सभी की यह 'ध्यान रूपी दिव्य यात्रा' आनंदित हो पायेगी। वर्ना हम अपने दायें-बाएं दिमाग में स्थित दोनों आज्ञा चक्रों के निरंन्तर बहने वाले विचारों के चंगुल में फंस कर 'अधो-गति को प्राप्त होंगे।"-
2) "Connectivity is the Activity of Divine Powers which
is usually perceived through our attention in meditative mood.
For this, our external presence at some subtle task for the
benevolence of the mankind hardly matters.
So it is better to train our attention by keeping it at our
Sahastrara all the time then our attention starts working like commando and it
will become alert and active for all kinds of Noble
Tasks."
---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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