"अंतर्निहित टापू "
"मानवीय जीवन में सुख व् दुःख एक नजरिया मात्र है जिसकी अनुभूति तुलनात्मक दृष्टिकोण के कारण उत्पन्न होती है जो कि वास्तव में हमारा एक भ्रम ही है।
जो भी हमें वर्तमान में किसी भी रूप में प्राप्त है वही सत्य है और इसके अतिरिक्त जो भी हम अपने चारो ओर देखते हुए कल्पना करते हैं या इच्छा करते हैं वो मिथ्या है, मृग मारीचिका है जिसके कारण हमें केवल मानसिक पीड़ा ही मिलती है।
यदि किसी भी मानव को जन्म से ही किसी 'निर्जन' टापू पर पूर्णतया अकेले छोड़ दिया जाय तो बड़ा होने पर भी वह कभी भी दुखी नहीं होगा। क्योंकि उसके पास अन्य लोगों से तूलना करने का कोई भी आधार उपलब्ध नहीं होगा।
इसके कुछ उदहारण हमारे सामने मौजूद हैं, कि दुर्घटनाग्रस्त हवाई जाहाज से जीवित बचे अत्यंत छोटे बच्चे को एक टापू के जंगल में जानवरो ने ही पाल लिया था और वो उनके बीच सदा प्रसन्न रहा।
हम सभी के पास एक ऐसा टापू उपलब्ध है जहाँ हमारे सिवा कोई अन्य मानव नहीं रहता। वो है हमारा 'हृदय' जिसमें बड़े सुकून से हम अकेले ही रहते हैं, वहां यदि कोई और है तो वो हैं केवल और केवल हमारे प्रिय "परमात्मा", जिनसे हम कभी तूलना नहीं कर सकते।
जो हमें कभी पीड़ा नहीं देते और न ही हमारा मनोबल ही गिरने देते हैं।बल्कि हर पल हर घडी हमें 'अपने' सानिग्ध्य की अनुभूति देकर हमारा साथ देते रहते हैं।"
------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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