"प्रज्वलित दीपक"
"एक 'पूर्ण जागृत' साधक एक प्रज्वलित
"दीपक " की तरह होता है जिसे "श्री माँ" ने घनघोर अंधेरों में ही जलने के लिए तैयार किया है।
उसका प्रकाश में जलने का कोई औचित्य नहीं है।
यानि एक 'प्रकाशित चेतना' को प्रकाश की चाह रखने वाले अन्धकार से युक्त समस्त हृदयों को प्रकाशित करना चाहिए जिनके भीतर अनादि काल से घनघोर अन्धकार ही अन्धकार बिखरा पड़ा है।
या ऐसे स्थानों पर जाकर 'जागृति' का कार्य कर अपने कीमती समय का सदुपयोग करना चाहिए जहाँ पर अभी तक "श्री माँ" के 'प्रेम के प्रकाश' की एक भी 'किरण' न पहुँच पाई हो।
वो बात और है कि "श्री माँ" के स्वागत में या "श्री माँ " की पूजा में "दीप मालाएं"सजायीं जाए।"
("An Enlightened Soul is
just like an 'Enlightened Lamp' which is supposed to spraed 'Its' Light of
"Mother's Love" into all the Darkest Places and as well as to
enlighten Darkest Hearts which are waiting since ages.
There is no use of their Presence at Already Enlightened Places. But those 'Enlightened Lamps' can be gathered around to worship
our "Beloved Mother")."
----------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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