"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-8)
(23-01-18)
(23-01-18)
D) चतुर्थ स्थान-कपाल की ऊपरी परत यानि सहस्त्रार व चक्रों की पीठ -देवी-देवताओं की निराकार शक्तियों की अनुभूति व 'उनके' साथ तादात्म्य की स्थिति का प्रमाण।
ये स्थिति साधना के क्षेत्र में सर्वोत्तम स्थित मानी जाती है।इस अवस्था में साधक/साधिका की चेतना केवल और केवल "निराकार ब्रह्म" में ही स्थित होती है।
यानि उनका चित्त किसी भी प्रकार की संसारिकता में लिप्त ही नहीं रहता, ध्यान के दौरान वो तो केवल "परमात्मा" को 'निराकार ऊर्जा' के रूप में ही ग्रहण कर रहे होते हैं।
तो ऐसी अवस्था में इस ब्रहम्माण्ड को चलाने में "परमेश्वर" की मदद करने वाले विभिन्न देवी-देवता निराकार ऊर्जा के रूप में उनके कपाल पर स्थित चक्रो की पीठों को स्पर्श करके अपने आगमन/उपस्थिति को दर्ज कराते रहते हैं।
साथ ही उन साधक/साधिका की चेतना को निरंतर विकसित करने में मदद करने के साथ साथ उसके साथ अपना तादात्म्य भी बनाये रखते हैं।
यदि हम कपाल के ठीक बीचों बीच मांग निकालें तो हमारा कपाल बायें व दाएं दो भागों में विभक्त हो जाएगा।
जो हमारी बायीं ओर, इड़ा नाड़ी व दायीं, पिंगला नाड़ी पर स्थित देवी-देवताओं की निराकार स्वरूप की उपस्थिति को प्रगट करेगा। और बीचों बीच निकली गई मांग का स्थान हमारी सुषुम्ना नाड़ी पर स्थित निराकार विभूतियों की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करेगा।
चतुर्थ अवस्था के सकारात्मक ऊर्जा संकेत:
जब हमारी चेतना की प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे कपाल की किसी भी साइड या बीचों बीच एक शीतल लकीर जैसे आभासित हो तो हमें समझ जाना चाहिए कि उक्त नाड़ी की निराकार देवी साक्षात हमारे कपाल पर पधारी हैं।
और जब इन ऊर्जा की लकीरों में या किसी एक लकीर में शीतल प्रवाह दौड़ने लगे तो जानना चाहिए कि उक्त देवी हमारे कपाल पर सक्रिय हो गईं हैं।
i) कपाल पर स्थित तीनो नाड़ियों पर स्थित चक्रों की पीठों में शीतलता का अभास:-
जब हमारी चेतना 'निराकार ईश्वर' से जुड़ी रहती है और हमारा चित्त किसी व्यक्ति/स्थान/वस्तु/स्थिति/स्वम् पर होता है और प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे कपाल पर स्थित किसी चक्र की पीठ पर शीतलता की अनुभूति हो।
तो हमें समझ जाना चाहिए कि उक्त चक्र विशेष के देवी-देवता निराकार रूप में जागृत/उपस्थित हैं।
उदाहरण के लिए यदि हमारी चेतना निराकार स जुड़े जुड़े किसी स्वम्भू/स्थान से भी जुड़ जाती है तो हमें अपने कपाल पर उक्त स्वम्भू से सम्बंधित चक्र की पीठ पर शीतलता के द्वारा "उनकी" 'उपस्थिति' की प्रामाणिकता का आभास होगा।
ii) चक्रो की पीठ में शीतल सरसराहट का होना:-
कपाल पर स्थित चक्र की किसी भी पीठ में शीतलता की अनुभूति के साथ जब सरसराहट महसूस हो तो हमें समझना होगा कि उक्त पीठ के देवी-देवता अपनी निराकार उपस्थिति से किसी व्यक्ति/स्थान/वस्तु/स्थिति/स्वम् को लाभान्वित करने में लगे हैं।
iii) चक्रों की पीठ का झंकृत होना:-
ये स्थिति स्वम् की साधना की उच्च अवस्था को प्रगट करती है जब हमारे कपाल पर स्थित किसी चक्र की पीठ तरंगित होती प्रतीत हो तो हमें समझना चाहिए कि हमारी/अन्य की चेतना उक्त 'पीठ के स्वामी' के साथ एकाकार हो गई है।
और वो देवी/देवता हमारे/अन्य के यंत्र के माध्यम से हम पर/अन्य पर/स्थान विशेष पर/किसी स्थिति पर स्वम् कार्य करने लग गए हैं।
iv) चक्रों की पीठ का कम्पित होना:-
ये अवस्था तब ही बनती है जब हमारे चक्रों की पीठ उक्त देवी देवता की निराकार शक्ति को ग्रहण कर हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप किसी अन्य व्यक्ति पर/स्वयं हम पर/किसी स्थान विशेष पर/किसी स्थिति पर प्रवाहित करने लगती है तो हमारे चक्रों की पीठ में एक आनंदाई तीव्र कम्पन उत्पन्न होता है।
जो उक्त 'निराकार' देवी-देवता की प्रसन्नता को भी व्यक्त करता है।जैसे मयूर वर्षा होने पर खुशी से नृत्य करने लगता है ।
ठीक वैसे ही उस विशेष चक्र की पीठ के अधिष्ठा किसी भी साधक/साधिका के निराकार में व्याप्त चित्त व चेतना को देखकर अत्यंत आनंदित हो जाते हैं और उसकी दृष्टि, सोच व चित्त मात्र से ही अपने निराकार अस्तित्व को सक्रिय कर समस्त वातावरण को आनंद से भर देते हैं।
ऐसे उच्च कोटि के साधक/साधिका के बारे में सोचने मात्र से ही अनेको प्रकार की सुगंधें अनुभव होने लगती हैं।
ऐसी स्थिति तो कुछ गिने चुने सहज-अभ्यासियों की ही हो सकती है जो हर प्रकार के सांसारिक व आध्यात्मिकता अवस्थाओं व स्थितियों का आनंद किसी भी चीज में लिप्त हुए बगैर निरंतर उठाते रहते हों।"
-------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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