"सामूहिक-ध्यान-उत्थान कैसे हो ? "
(भाग-2)
इस लेख के भाग-1 में हम सभी सामूहिक ध्यान उत्थान की कुछ बाधाओं से दो चार हुए जिन्हें दूर करने के लिए हम सभी आम सहज ध्यान अभ्यासियों को गंभीरता से चिंतन कर के कुछ न कुछ अवश्य ही करना पड़ेगा।
ये कार्य ट्रस्ट व ट्रस्ट के पदाधिकारियों के स्तर का बिल्कुल भी नहीं है और न ही यह किसी एक सहजी के द्वारा सम्भव है। बल्कि इस कार्य का सम्बंध हर उस सहजी से है जो "श्री माँ" के प्रेम को सारे संसार में प्रसारित करने के लिए कटिबद्ध है।
वो बात और है कि ऐसे समर्पित सहजी ध्यान में अग्रसर होने के साथ साथ संस्था के प्रबंधन से सम्बंधित अन्य कार्यो में भी अपनी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।
किंतु यदि हम ये सोचे कि सामूहिक रूप से हम सहज संस्था के प्रबंधकों व व्यवस्थापकों के माध्यम से उन्नत हो सकते हैं तो यह बात सर्वथा मिथ्या है क्योंकि वे भी तो हमारी आपकी तरह सहजी ही हैं।
क्योंकि सहज ध्यान का सामूहिक उत्थान सभी सहजियो के ध्यान में गहन होने के बिना सम्भव ही नहीं है। ये किसी भी संस्थागत नियम, कानून, प्रोटोकॉल, प्रबंधन,सुनिश्चित व्यवस्था व पूर्वनिर्धारित
ध्यान क्रम के द्वारा सम्भव ही नहीं है।
सामूहिक रूप से हम केवल और केवल तभी ही उन्नत हो सकते हैं यदि हम सामूहिक रूप से सहज ध्यान केंद्रों में अथवा किसी भी स्थान पर एकत्रित होकर गहनता में उतरने का अभ्यास पूर्ण ईमानदारी व सच्ची श्रद्धा के साथ करें।
इस अभ्यास के दौरान महसूस होने वाले अनुभवों को एक दूसरे के साथ शेयर करें व एक दूसरे के उन अनुभवों को अपने अपने यंत्रो में भी महसूस करें।
यदि सभी सहजियो के हृदय में सच्ची लगन व शुद्ध इच्छा हो तो अपने अपने सेंटर्स में कम से कम माह में दो बार गहन ध्यान के अभ्यास के लिए कम से कम 1-2 घंटे का वर्क शाप किया जाए तभी कुछ बात बन पाएगी।
और जो भी उस दिन सामूहिक रूप से अभ्यास किया है उसका होम वर्क अगले 15 दिनों तक अपने अपने घरों में व्यक्तिगत रूप से भी किया जाय।
एक बात इस अभ्यास में विशेष तौर पर ध्यान रखने वाली है कि जो भी ध्यान अभ्यास हो उसमें केवल और केवल 'चित्त शक्ति' का ही उपयोग होना चाहिए तभी हम उचित प्रकार से विकसित होकर गहनता प्राप्त कर पाएंगे।
क्योंकि इस अभ्यास के द्वारा हम अपने चित्त के माध्यम से विभिन्न स्थानों, अवस्थाओं की प्रतिक्रियाओं
को अपने यंत्र में अनुभव करने का अभ्यास ही करने जा रहे हैं।
A) प्रारम्भिक स्तर पर प्रारम्भ करने के लिए साप्ताहिक सेंटर में होने वाली ध्यान--प्रक्रियाओं को ध्यान-अभ्यास के विषय के रूप में चुना जा सकता है जैसे:-
1.चित्त के द्वारा "श्री माँ" के "श्री चरणों" में किये गए दण्डवत प्रणाम की प्रतिक्रिया को किस प्रकार से अनुभव करें।
2.चित्त के द्वारा अपनी कुंडलिनी को उठाने व बांधने की प्रतिक्रिया को अपने यंत्र में ऊर्जा के विभिन्न आवृतियों के रूप में किस प्रकार से अनुभव करें।
3.चित्त के द्वारा अपनी नाड़ियों को संतुलित करने की प्रक्रिया को किस प्रकार अपने यंत्र में आभासित करें।
4.हाथ/चित्त के द्वारा लगाएं जाने वाले बंधन को किस प्रकार से अपने यंत्र में घटित होता हुआ अनुभव करें।
5.महामंत्र को ऊर्जा के रूप में अपने यंत्र में घटित होता हुआ कैसे अनुभव करें।
6.भजन के बोलों के माध्यम से अपने यंत्र व चेतना को किस प्रकार से आनंदित करें।
7."श्री माँ" की वाणी को चित्त की सहायता से ऊर्जा के रूप में किस विधि से अपने यंत्र में आत्मसात करें।
8.सामूहिकता के संपन्न होने के उपरांत सबके यंत्रों से उत्सर्जित 'दिव्य ऊर्जा' को अपने यंत्र में कैसे शोषित किया जाय।
9.अपने स्वम् के यंत्र की स्थिति को सामूहिक ध्यान के दौरान चित्त के द्वारा किस प्रकार महसूस करें।
10.सामूहिक ध्यान के दौरान अपने स्वम् के यंत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन प्रकार की ऊर्जा को सामूहिकता के साथ कैसे बांटा जाय।
11.ध्यान के दैरान सामूहिकता की स्थिति व स्तर को किस प्रकार से आभासित किया जाय।
12.सामूहिकता के अंत में बंटने वाले प्रसाद की ऊर्जा को किस प्रकार से अपने यंत्र में ग्रहण किया जाय।
13.इसके उपरांत समस्त सहजियो को आंतरिक रूप से अपने हृदय से किस प्रकार से जोड़कर रखा जाय।
14.ध्यानस्थ अवस्था में चित्त की सहायता से केंद्र में आने वाले नए लोगों की कुंडलिनी किस प्रकार से उठाई जाय।
15.चित्त से सेंटर पर आए नए लोगों की कुंडलिनी उठाने की प्रक्रिया के दौरान उनके यंत्र को अपने यंत्र में कैसे अनुभव किया जाय।
16.यदि उनके यंत्र में कोई रुकावट अथवा अड़चन महसूस हो तो उसे किस प्रकार से दूर किया जाय।
17.यदि चित्त के द्वारा उनकी क्लीयरिंग के दौरान अपने स्वयं के चक्रों व नाड़ियों पर प्रभाव आता है तो अपने यंत्र को किस प्रकार से ठीक करेंगे।
18.यदि कोई सेंटर में अपनी कोई समस्या बता कर हम सबकी मदद लेना चाहता है तो हम चित्त के द्वारा किस प्रकार से मदद कर सकते हैं।
तो सामूहिक ध्यान-अभ्यास को प्रारंभिक तौर पर हम उपरोक्त विषयों के साथ शुरू कर सकते हैं। इनके अतिरिक्त हम और भी इस स्तर के अन्य विषय चित्त के माध्यम से कार्य करने के चुन सकते हैं।"
-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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