"एक सच्चा खोजी कभी कट्टर नहीं हो सकता"
( A True Seeker can never be Fanatic)
जब से "श्री माँ" के द्वारा इस चेतना को "श्री चरणों" में लाया गया है तब ही से कुछ सहज अनुयाइयों में विभिन्न प्रकार की कट्टरता का अनुभव यह चेतना निरंतर करती आ रही है।
"श्री चरणों" का अनुग्रह मिलते ही इस चेतना को "श्री माता जी" की जीवनी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमें
"श्री माता जी" ने बताया।
कि कुंडलिनी जागृत का कार्य करने से पूर्व "श्री माता जी" ने उस काल के मानव की आध्यात्मिक स्थिति समझने के लिए अनेको धार्मिक पुस्तकों का अध्यन किया।
यहां तक कि "वे" अक्सर उस काल के प्रचलित अनेको प्रकार के धार्मिक व आध्यात्मिक कार्यक्रमों में शिरकत भी करती रहीं हैं।
जबकि "वह" स्वयं "आदि शक्ति" हैं और "उन्होंने" ही अपने 'पुत्रों' के द्वारा उस काल के मानव की चेतना के स्तर की आवश्यकतानुसार "परमात्मा" को पाने के लिए अनेको धर्मो की स्वयम स्थापना भी की।
"उन्होंने"
समस्त सहजियों से भी समस्त धर्मो व आध्यात्मिक मार्गों के बारे में लिखी गई पुस्तकों को पढ़ने की भी सलाह दी।
ताकि हम भी समस्त धर्मो व मार्गों को समझ कर उनका अनुसरण करने वाले अनेको 'खोजियों' को उनके धर्म व मार्ग का सम्मान करते हुए।
उनके धर्म व मार्ग की गूढ़ बातों को अच्छे से समझ कर उन बातों की गूढ़ता का वर्णन करते हुए उनके अंतिम द्वार यानि सहज योग के माध्यम से "श्री चरणों" में स्थापित करने में मदद कर सकें।
जब तक हम किसी अन्य के धर्म व मार्ग को स्वयं नहीं समझेंगे तो हम उन अनेको धर्मों के अनुयायियों को भला किस प्रकार से सहज योग अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
"श्री माता जी" ने अपने वक्तव्यों में हम सभी से मुखातिब होते हुए हम सभी को चेताया है कि 'विश्व की नाव डूबने वाली है और आप सभी को पता चल चुका है तो अब आपकी जिम्मेदारी बनती है इस विश्व को बचाने की।'
अब यदि हम सभी "उनकी" ओर से प्रदत्त इस कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं हैं तो हम सभी "परमपिता" की नजरों में निश्चित रूप से दोषी साबित होने वाले हैं।
इसी कर्तव्य परायणता के प्रति पूर्ण जागरूक होते हुए हमें अपने सामर्थ्य व अपनी चेतना व समझ के अनुसार यथोचित कार्य करते हुए।
समाज के अनेकों वर्गों, धर्मों, पंथों, मतों व मार्गों का अनुसरण करने वाले लोगों को "श्री पथ" पर लाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करने होंगे।
अब चाहे यह लोग किसी तथाकथित राक्षस, चुड़ैल,शैतान,तांत्रिक,कुगुरु,अगुरु,गुरु,सन्त, सद्गुरु का अनुसरण करते हों।
अथवा चाहे यह लोग रात दिन किसी भी 'अवतार' की उपासना ही क्यों न करते हों।
हम सभी जागरूक चेतनाओं का परम दायित्व है कि इन सभी उपरोक्त अनुयाइयों में जो भी अपनी चेतना को उन्नत करने में रुचि दिखाए।
हमें बिना किसी भेदभाव, ऊँचनीच व उनके गुरुओं व देवताओं का अपमान किये, बड़े प्रेम से "श्री माँ" की शक्ति से उनकी कुंडलिनी उठानी चाहिए व "श्री माँ" के महानतम उद्देश्य को उनकी चेतना में उतारने में उनकी मदद करनी चाहिए।
ऐसे समस्त अनुयायी फेसबुक व व्हाट्सएप्प पर हम सभी से जुड़े होते हैं जो हमारी हर गतिविधि का बड़ी ही बारीकी से अवलोकन करते हैं व समझने का प्रयास करते हैं।
यदि हम सहज योग व "श्री माता जी" के प्रति घोर अज्ञानतावश अपनी कट्टरता व जड़ता का इजहार करेंगे।
तो यकीनन वे लोग हमारी बातों को कभी भी सही नहीं मानेंगे और हम "श्री माँ" के अच्छे यंत्र होने की खूबियों से सदा के लिए वंचित हो जाएंगे।
अपनी घोर अज्ञानता, उथली समझ, घृणा, अनभिज्ञता, अव्यवहारिकता व अनुभव विहीनता के चलते हम सहज योग जैसे उदार व सरल मार्ग को भी अन्य लोगों के समक्ष अत्यंत जड़ व दुरूह मार्ग के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
हम सभी को यह समझना चाहिए कि हम सभी "श्री माँ" के द्वारा प्रदत्त निर्वाजय प्रेम व गहनतम ज्ञान का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
अभी कुछ ही दिनों पूर्व इस चेतना के द्वारा एक वीडियो 'सन्त कबीर दास जी" के ध्यान-अनुभवों के दोहों की व्याख्या करने वाले एक बुजुर्ग का पोस्ट किया था जो हमारे एक साधक ने हमें भेजा था।
उस वीडियो में 'कबीर दास जी' की ध्यान यात्रा के दोहों पर की गई व्याख्या को सुनकर इस चेतना को बड़ा आनंद आया क्योंकि 'उनके' कुछ अनुभव "श्री माता जी" के द्वारा बताई बातों से मेल खा रहे थे।
तो इस चेतना के ह्रदय में भाव आया कि क्यों न 'कबीर दास जी' की ध्यान यात्रा के संस्मरण को आप सभी के साथ शेयर किया जाय।
किन्तु हमें यह देखकर अत्यंत अफसोस हुआ व हंसी भी आई कि कुछ जड़ व कट्टर सहज अनुयाइयों ने बिना उन अनुभवों को सुने व समझे अव्यवहारिक आलोचना करनी प्रारम्भ कर दी।
और कहीं कहीं तो आलोचना के जुनून में भाषाई सभ्यता भी ताक पर रख दी, और वे सहजी यह भी भूल गए कि सहजी होने से पहले हम सभी इंसान हैं।
यहां तक कि उन्होंने हमें कुगुरु का अनुयायी तक घोषित कर दिया जिसकी प्रथम व अंतिम 'गुरु' व "ईश्वर" स्वयं "श्री माता जी" ही हैं।
इस चेतना को उनकी चेतना के स्तर व सहज योग की उथली समझ पर अत्यंत दया आ रही है।
उन कट्टर सहज अनुयाइयों की स्थिति देखकर हमारे भीतर यह प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं कि ऐसे विवेकहीन सहजियों से किसका भला होने वाला है।
ऐसे सहज अनुयायी तो स्वयं के आत्मिक विकास व आध्यात्मिक उत्थान में स्वयं ही बाधक हैं।
हमको कोई क्या कहता है इससे हमको कभी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हम अपनी स्वयं की चेतना में क्या हैं हम अच्छे से जानते हैं।
साथ ही हम भला अन्य लोगों की अपने बारे में समझ के अनुसार अपना आंकलन भला क्यों करें।
यह पहला अवसर नहीं है जब इस प्रकार के घोर अज्ञानता से घिरे तथाकथित सहज अनुयाइयों ने इस प्रकार की बाते की हैं।
जब इस प्रकार के स्वयं के विवेक के शत्रुओं से आमना सामना होता है तो सदा इस चेतना के ह्रदय से "श्री माता जी" से इन लोगों के उत्थान के लिए प्रार्थना ही निकलती है।
क्योंकि हमारा यह मानना है कि जिनको भी "श्री माता जी" अपने "श्री चरणों" में लिया है। वह सभी सहज अनुयायी
"श्री माँ" के नाते इस चेतना के लिए सदा सम्मान व आदरणीय रहेंगे।
जब तक के वे स्वयं "श्री माँ" के द्वारा प्रदान किये गए सम्मान व गौरव को अपनी जड़ता, कट्टरता, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार, डोमिनेन्स, लोभ, भेदभाव, असभ्यता, बत्तमीजी,निम्नता व अव्यवहारिकता
से स्वयं नष्ट नहीं कर दे।
जो सहज अनुयायी अपनी बातचीत, आचरण व व्यवहार में अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच जाते हैं,
अथवा किसी अन्य सहजी को सताते हैं,दबाते हैं, उत्पीड़ित करते हैं, डराते हैं,
किसी का नाजायज लाभ उठाते हैं,
अपने पद व अहंकार के चलते किसी सहजी का अपमान करते हैं,
नियम व प्रोटोकाल के नाम पर अपनी निर्थक बाते थोपते हैं व चलाते हैं,
किसी सहजी को अकारण दबाते, किसी सहजी के साथ अन्याय करते हैं।
तो ऐसे तथाकथित सहज अनुयायी हमारे ह्रदय से सदा के लिए उतर जाते हैं और उनसे हम कभी अपनी ओर से बात करना तक गवारा नहीं करते।
क्योंकि इतने निम्न स्तर पर तो हम सहज जीवन से पूर्व अपनी आम जिंदगी में भी नहीं जा पाते थे क्योंकि हमारे लिए सहज से पहले मानवता आती है।
जो भी सहज अनुयायी मानवता के मानदंड पर फेल हो जाते हैं वह हमारे लिए सहजी नहीं रहते यह बात सुनिश्चित है।
किन्तु हम ऐसे लोगों को एक अंतिम अवसर अवश्य देते हैं, पहले हम उनको ह्रदय से क्षमा करते हैं और फिर उनसे दूरी बना लेते हैं।
ताकि यदि उस व्यक्ति में थोड़ी सी भी जागृति अथवा विवेक शेष है तो वह "श्री माँ" के सानिग्धय में आत्मचिंतन करे व अपने को पुनः वास्तविक उत्थान प्रक्रिया में शामिल कर ले।
जो वास्तविक खोजी व वास्तविक सत्य साधक/साधिका होते हैं वह उदार ह्रदय के होते हैं और उनके ह्रदय सदा हर प्रकार के सत्य को ग्रहण करने के लिए खुले होते हैं।
फिर चाहे वह सत्य किसी भी बुरे से बुरे व खराब से खराब मानव की बातों अथवा अभिव्यक्ति से ही क्यों न उजागर होता हो।
'सद्ज्ञान' स्वर्ण, हीरे, मोती, रत्न व चंदन की तरह होता है, इन्हें कितने भी गंदे वस्त्रों व पात्र में डाल दिया जाय तब भी यह बहुमूल्य धातु व लकड़ी अपना गुण, विशेषता व धर्म नहीं बदलती।
यही स्थिति 'सद्ज्ञान' की है जो किसी बुरे से बुरे व्यक्ति के द्वारा भो बोला जाय तब भी 'सद्ज्ञान' दूषित नहीं होता और न ही उसमें अंतर्निहित चैतन्य ही नष्ट होता है।
वास्तव में चैतन्य का आना या न आना हमारे स्वयं के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
यदि हमारा चित्त "श्री कबीर" की वाणी में होगा तो चैतन्य ही आएगा और इसके विपरीत हमारा चित्त किसी व्यक्ति विशेष अथवा साम्प्रदाय विशेष के बारे में कही गई हमारे मन के कोष में संचित किसी सूचना पर होगा।
तो निश्चित तौर पर हमें गर्म वायब्रेशन आएंगे व हमारा आगन्या पकड़ सकता है और हम विचलित हो सकते हैं।
ऐसी स्थिति में आगन्या पकड़ने का एक और कारण है और वो है हमारा 'निर्विकल्प अवस्था' में न होना।
ऐसी अवस्था के लिए 'कबीर दास जी' ने अपने दोहे में बताया है कि:-
'चंदन के वृक्ष पर रहने वाले जहरीले सर्पों का विष भी चंदन पर नहीं चढ़ता।'
यानि 'निर्विकल्प स्थिति' जिसमें हमारा चित्त व चेतना केवल और केवल "श्री माँ" के साकार/निराकार स्वरूप से ही सदा जुड़ी रहती है।
ऐसी आनंदायी अवस्था में हम पर किसी भी बुरे से बुरे व्यक्ति की नकारात्मकता का असर नहीं होता। बल्कि हमारे चित्त व ऊर्जा क्षेत्र से बुरे से बुरे मनुष्य की 'कुंडलिनी माँ' भी उठने लगती है।
और उसकी 'कुंडलिनी माता' उसे या तो कल्याण की ओर मोड़ देती हैं और या उसका सर्वनाश कर देती हैं। तो दोनों ही स्थितियों में किसी भी बुरे से बुरे व्यक्ति का अंततः कल्याण ही होता है।
कलिंगा का राजा अशोक तो अपनी सत्ता को बढ़ाने के मद में इतना चूर हो गया यह कि उसने अपने समस्त भाइयों का वध कर दिया था।
और वह अपनी सत्ता को बढ़ाने की पिपासा में लाखों हत्याएं की, कहते हैं कि उसकी तलवार पर कभी खून सूख ही नहीं पता था। किन्तु जब उसकी कुंडलिनी
"भगवान बुद्ध" ने जगा दी तो वह महात्मा बन गया।
ऐसे ही उदाहरण बाल्मीकि व अंगुलिमाल के हैं जो किसी न किसी उच्च चेतना के सम्पर्क में आकर परिवर्तित ही नहीं हुए बल्कि उन्होंने चेतना के विकास के लिए अनेको कार्य किये।
बहुत अफसोस होता है यह देखकर कि "श्री माता जी" को मत्था टेकने वाले कुछ सहज अनुयायी इतने कट्टर हो चुके हैं। कि वह बिना कुछ जाने व समझे लगातार घृणा से ओतप्रोत कमेंट्स व बुराई करते ही चले जाते हैं।
काश ऐसे सभी लोगों ने "श्री माता जी" की जीवनी व आदर्श पढ़े अथवा ठीक से समझे होते तो शायद इस प्रकार की कट्टरता का कभी प्रदर्शन नहीं करते।
जो भी लोग इस कदर कट्टर हैं क्या उन्होंने कभी 'सूफी ओडस' पढ़ी है जिसमे "श्री माता जी" ने अनेको सूफी और सन्तो की बात की है ?
क्या इन लोगों ने "श्री ग्रंथ साहिब" को ढंग से सुना है जिसमें लगभग 52 सन्तो की वाणी है जिनके बारे में "श्री माता जी" ने कई बार बताया है ?
क्या ऐसे लोगों ने "श्री माता जी" की आत्म कथा पढ़ी है जिसमें
"उन्होंने"
बताया है कि सहज का कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व "उन्होंने" अनेको धार्मिक पुस्तकों का अध्यन किया।
साथ ही उन्होंने सलाह भी दी है कि सहजियों को भी अन्य मार्गों का ज्ञान होना चाहिए ताकि आप उनके अनुसार सहज योग को बता सकें व जागृति के लिए तैयार कर सकें ?
क्या इन कट्टरता के पुजारियों ने वह सभी कुछ पढ़ा/सुना है जिनका जिक्र "श्री माता जी" अपने लेक्चर्स में किया है ?
क्या ऐसे लोगों ने "श्री माता जी" के सभी लेक्चर्स को आत्मसात किया है ?
यदि "श्री माता जी" की थोड़ी बहुत बातों को भी ऐसे जड़ लोगों ने आत्मसात किया होता तो ये लोग इस प्रकार से कभी भी कमेंट नहीं कर सकते थे।
हमारा ऐसे कट्टरवादियों से एक प्रश्न है कि क्या आप सभी वास्तव में वैसे ही सहज अनुयायी बन चुके हैं जिस प्रकार के सहजी बनने के बारे में "श्री माता जी" अक्सर कहा करती हैं ?
हमें तो मालूम नहीं कि हम अभी सहजी भी बने हैं या नहीं किंतु भीतर में इतना अवश्य जानते हैं कि हम "उनके" बच्चे अवश्य हैं भले ही आप सभी की नजरों में हम कुछ भी हों।
और एक बात और कहेंगे कि हो सकता है आप जैसे महान व उच्च दर्जे के सहज अनुयाइयों की समझ के अनुसार हम भटक गए हों।
तो इसके लिए हमारा यह कहना है कि कोई बात नहीं हम जैसे भटके हुए लोगों को सही मार्ग पर लाने के लिए ही "श्री माता जी" हमें अपने "श्री चरणों" मे लाई हैं, हम भी कभी न कभी "श्री कृपा" से सदमार्ग मार्ग पकड़ ही लेंगे।
वैसे हम जैसे अज्ञानियों को ज्यादा कुछ ज्ञान नहीं है जो भी ह्रदय में प्रेरणा प्राप्त होती है व भीतर में आता है केवल वही बोलना/लिखना पसंद करते हैं।
यदि आप सभी को यह बातें ठीक न लगें तो हमारा नाम लिख कर जूता-पट्टी, पेपर बर्निंग, स्ट्रिंग नाटिंग, मिर्च नींबू, चाक नींबू, मटका, आदि सामूहिक रूप से करके।
अथवा "श्री कल्कि" से हमारी अक्ल ठिकाने लगाने की सामूहिक प्रार्थना कर सकते हैं, आपका अति उपकार होगा।
एक बात हम सभी को अच्छे से समझनी चाहिए कि हम सबकी अपनी अपनी चेतना की स्थिति होती है।
हमारा मानना यह है कि कोई तथाकथित बुरे व भटके हुए लोगों की अच्छी चीजों को बुरा कहकर वेस्ट कर देता है।
तो कोई, हम जैसा खुले ह्रदय व खुले मस्तिष्क का साधक उन तथाकथित 'वेस्ट' चीजों में से बेस्ट हांसिल कर लेता है।
यह सब हम सबके अपने नजरिये व हम सबकी चेतना, जागृति, कनेक्टिविटी, ग्रहण क्षमता व समझ के स्तर पर पर निर्भर करता है।
जो भी इस प्रकार के कट्टर सहज अनुयायी किसी के द्वारा पोस्ट की गई किसी भी पोस्ट पर,
बिना उस पोस्ट को आत्मसात किये, मात्र किसी का फोटो देखकर, व उस पर लिखे मत के नाम को पढ़कर निर्थक व निम्न स्तर के कमेंट करने प्रारम्भ कर देते हैं।
और यदि हम ऐसी पोस्ट पर से व्यक्ति का फोटो, नाम व मत की जानकारी हटा कर उनकी कही बातों को पोस्ट कर दें।
तो मजे की बात यह है कि उनकी बातों को सुनकर व पढ़ कर ऐसे महान लोगों को तुरंत अच्छे वायब्रेशन आ जाते हैं।
मानों इनके वायब्रेशन सत्य से न चलकर इनके मन के कोष से ही आते हों, यानि इन लोगों को वायब्रेशन किस लिए आते हैं, वो क्या बताना चाहते हैं, इसकी कोई सही समझ नहीं है।
यदि ऐसा होता रहता है एक बात तो सुनिश्चित है कि ऐसे लोग 'सच्चे खोजी' व सच्चे 'साधक/साधिका' नहीं हो सकते।
★सच्चे खोजी का स्वभाव तो लक्ष्य भेदने में सक्षम 'केवल चिड़ियां की आंख को ही देखने वाले अर्जुन' की तरह ही होता है जिसे केवल और केवल सत्य से ही मतलब होता है।★
*उसका चित्त,चेतना, जागृति, ह्रदय, सूक्ष्म यंत्र व अंतःकरण तो केवल और केवल सत्य की ऊर्जा को शोषित करने के प्रति पूर्ण जागरूक रहता है।*
★जैसे "श्री राम" ने युद्ध में हारे हुए मरणासन् 'रावण' से ज्ञान प्राप्त करने के लिए 'लक्ष्मण' को रावण के पास भेजा था।★
'सद्ज्ञान' किसी की बपौती नहीं होती है बल्कि यह तो आक्सीजन के समान है जिसकी आवश्यकता हर बुरे से बुरे व अच्छे से अच्छे मानव को हर पल होती है।
वो बात और है कि सद्ज्ञान का असर अच्छे पर जल्दी व बुराइयों से घिरे मानव पर देर से होता है, किन्तु यह बात सुनिश्चित है कि कभी न कभी होता अवश्य है।
हम "श्री माता जी" नहीं हैं जो किसी को कुछ भी डिक्लेयर करने के लिए अधिकृत हैं, "वो" 'जगत जनन्नी" हैं, सभी प्रकार के मानव "उनकी" सन्तान है।
*किस सन्तान के साथ क्या करना है ये बात "वही" जाने, कम से कम हमारी औकात तो किसी को कुछ भी डिक्लेयर करने की नहीं है।*
हां, कोई बात हमें ठीक नहीं लगती तो हम उस बात से परहेज कर सकते हैं या उससे संबंधित कोई भी धारणा स्वयं बना सकते हैं।
किन्तु उस अपनी धारणा को हम अन्यों पर जबरदस्ती थोपें और उस धारणा से असहमति रखने वाले अन्य सहज अनुयाइयों को जबरदस्ती भला बुरा बोलें।
तो यह किसी के सम्मान की मर्यादाओं का उलंघन होगा जिसका हमें कोई अधिकार नहीं है।
वो बात और है कि कोई सहज अनुयायी आपकी धृष्टता, असभ्यता, बत्तमीजी के लिए आपको "श्री माता जी" के "श्री चरणों" में मत्था टेकने के कारण क्षमा करदे और आपसे कुछ न कहे।
किन्तु इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आपको किसी अन्य सहज अनुयायी को कुछ भी कहने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
इससे मिलता जुलता प्रकरण अभी कुछ रोज पहले मेरठ में होने वाले दो दिवसीय सेमिनार व "श्री गणेश" पूजा के अंतिम दिवस हमारे साथ हुआ।
एक ऐसे ही तथाकथित सहज अनुयायी ने हमसे जबरदस्ती भिड़ने का असफल प्रयास किया जो शायद सहज योग संस्था में किसी पद पर सुशोभित रहे हैं।
उस वक्त हम अत्यंत प्रेममयी व हमारे लिए आदरणीय एक काफी सीनियर सहज पदाधिकारी से वार्तालाप कर कर रहे थे।
तो वह तथाकथित महान सहज अनुयायी जबरदस्ती हमारे वार्तालाप के बीच में आ गए और क्रोधित होकर हमसे कहने लगे कि आप सेंटर्स में ध्यान क्यों नहीं कराते ?
हमने आपके वीडियो में देखा है कि आप केवल महिलाओं को ही ध्यान कराते हैं आपके ग्रुप में केवल महिलाएं ही क्यों हैं ?
हमें उनकी यह बात सुनकर व उनके व्यवहार देखकर हमें बड़ी हंसी आयी, हमने उनसे कहा कि भई, जब किसी सेण्टर से बुलावा आएगा तभी तो हम सेंटर्स में जाएंगे।
और रहा सवाल महिला सहजियों का हमारे व्हाट्सएप्प ग्रुप में होने का तो यह उन सभी महिला सहजियों की अपनी मर्जी है, यूं तो कई पुरूष सहजी भी ग्रुप में जुड़े हैं।
फिर हमने उनसे कहा कि आप अभी भी सहज में महिला-पुरुष तक ही सीमित हैं, क्या कुंडलिनी माँ व सहज योग स्त्री-पुरुष में भेदभाव करते हैं ?
फिर वह अपनी बातें हम पर थोपते हुए हमें धमकाने लगे कि हम ध्यान के कार्यों को रोक दें वर्ना वह हमें कार्य करने नहीं देंगे।
वह हमें ऐसे धमका रहे थे कि जैसे किसी हिंदी फिल्म में किसी सड़कछाप गुंडे का गुर्गा धमकाता है।
हमने उनसे कहा कि भाई आप हमारे माध्यम से कराए जाने वाले "श्री माँ" से प्रेरित कार्यों को शौक से रोकने का भरपूर प्रयास करें, यह "श्री माँ" जाने कि "उन्होंने" कार्य करवाने हैं या रुकवाने हैं।
और साथ ही कहा कि सहजयोग में 'मसलपावर' काम नहीं करती केवल और केवल "श्री माँ" की प्रेम की शक्तियां ही कार्य करती हैं।
साथ ही हमने यह भी बोला कि भाई सामने वाले के बारे में बिना अच्छे से जाने व समझे बगैर कोई गलत बात मुहं से नहीं निकालनी चाहिए कहीं ऐसा न हो कि बाद में बहुत पछताना पड़े।
भाई, किसी भी अन्य सहज अनुयायी को अपने से किसी भी रूप में कमजोर समझने की भूल कदापि न करें।
यह सब देखकर हमें अक्सर अफसोस होता है और हम अक्सर विचारने लगते हैं कि क्या ऐसे लोग भी सहज में होते हैं ?
और उस पर से तुर्रा यह कि वह साहेब शायद स्टेट कर्डिनेटर भी रहे हैं।
वैसे उनके प्रथम दो वाक्य सुनकर हमें समझ आ गया था कि उन साहेब को, गन्दी राजनीति में लिप्त व आकंठ डूबे हुए एक संस्थाधिकारि
ने अच्छे से भड़काया हुआ था जो हमसे डायरेक्ट बात करने का सामर्थ्य व साहस नहीं रखते हैं।
ये साहब हमारे माध्यम से "श्री माँ" के द्वारा करवाये जाने वाले चेतन-कार्यों से काफी लंबे अरसे से ईर्ष्या रखते आ रहे हैं साथ ही इन समस्त कार्यों को रोकने का भरसक व असफल प्रयास करते ही रहते हैं।
वह अपने चतुर व चालाक स्वभाव के चलते सबके सामने भला व अच्छा बनने का ढोंग करते हुए अपनी दूषित राजनीति के चलते गुपचुप झूठ का प्रसार करते हुए सहजियों की निंदा करने में माहिर हैं।
वैसे तो हमें ऐसे नकारत्मक व "श्री माँ" विरोधी लोगों से कभी कोई लेना देना नहीं रहा है किंतु जब यह लोग स्वयं हमारे मार्ग में आते हैं।
तो हम इनकी जीवात्माओं की मुक्ति के लिए थोड़े चिंतत हो जाते हैं कि इनके धृष्ठतापूर्ण कार्यों के कारण 'रुद्र व गण' इनको नष्ट न कर दें।
तो फिर हम "श्री माँ" से ऐसे चेतन-कार्यों के बाधक तथाकथित सहज अनुयायियों के लिए प्रार्थना भी करते हैं। ताकि यह लोग कहीं पूर्णतया नेसनाबूत न हो जाएं और इनकी जीवात्मा अनंत काल के लिए भटकती न फिरे।
ऐसे कट्टर, जड़ व अंधकार में घिरे मानव नहीं जानते कि "श्री माँ" के कार्यों को रोकना व उन कार्यों के मार्ग में रोड़ा अटकाने का प्रयास करने वालों का क्या हश्र होता है।
*ये लोग नहीं समझते कि हम सभी की जीवात्माओं की मुक्ति के लिए यह अंतिम अवसर है।*
भले ही कट्टर व जड़ लोग सहज अनुयायी बनते हों किन्तु "श्री माँ" के दरबार में कट्टरता व जड़ता के लिए कोई स्थान शेष नहीं है।
"श्री माँ" ने स्वयं कट्टरता व जड़ता को सहज विरोधी बताया है, "उन्होंने" स्वयं इन बुराइयों की भतर्सना की है।
पता नहीं ऐसे लोग "श्री माता जी" के इन लेक्चर्स पर स्वयं ध्यान क्यों नहीं देते ?
अपने अहंकार व घोर अंधकार के चलते अन्य सहजियों को "श्री माँ" के लेक्चर पे लेक्चर पिलाते रहते हैं किंतु स्वयं उन लेक्चर्स का न तो पालन करते हैं और न ही उनका अनुभव ही करते हैं।
★वैसे एक बात तो अक्षुण सत्य है कि हमारी समस्त पोस्ट्स ध्यान की गतिविधयों को सबसे ज्यादा हमसे ईर्ष्या रखने वाले सहज अनुयायी ही फॉलो करते हैं।
और मजे की बात यह है कि ये लोग उन सहज अनुयाइयों को हमारा फॉलोवर डिक्लेयर कर देते हैं जो केवल और केवल "श्री माता जी" के अनुयायी हैं और केवल और केवल "उनसे" ही जुड़े हैं।
जो सत्य की खोज के कर्तव्यों का पालन करते हुए मात्र खोज के उद्देश्य से हमारी पोस्ट्स व ध्यान के तरीकों को पसंद करते हैं।★
ध्यान के मामले में कट्टरता व डोमिनेन्स की प्रवृति वास्तव में एक अभिश्राप है जो कभी भी किसी को "परमपिता" तक पहुंचने नहीं देती।
क्योंकि कट्टरता व डोमिनेन्स
'Right Sided' लोगों में ही पाई जाती है जो अंत Right Agnya के चंगुल में फंसे होते हैं।
यानि जिनकी चेतना अपनी Right
Agnya में बैठे हुए असुरों, राक्षसों व शैतानों के कब्जे में होती है। और ऐसे लोगों की प्रवृति सुषुम्ना पर चलने वाले साधक/साधिकाओं के विरोध में ही होती है।
यह लोग विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र व झगड़े करके सुषुम्ना पर चलने वालों को सदा रोकने का असफल प्रयास ही करते रहते हैं और हर युग में अंततः सत्य के हाथों पराजित ही होते रहते हैं।
वास्तव में ऐसे लोग अंदर से अत्यंत कमजोर व डरपोक होते हैं अपने पद व पोजिशन को खोने के भय से यह लोग अन्य लोगों पर शासन करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।
*अंत में हमारा समस्त सहज अनुयाइयों से कहना है कि यदि आपको लगता है कि हम सहज/"श्री माँ" विरोधी कार्य करते हैं।
या हम योग भ्रष्ट स्थिति में पहुंच गए हैं,
या हमारी चेतना भटक गई है,
अथवा किसी कुगुरु के चंगुल में फंस गई है,
तो कृपया मेहरबानी करके हमें तुरंत अनफ्रेंड कर हमें ब्लॉक करदें।
कहीं ऐसा न हो कि हमारे यंत्र से प्रसारित होने वाली नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होकर आपका यंत्र खराब हो जाये।*
वास्तव में हमारा रुझान केवल और केवल सत्य को हर रूप व हर स्थिति में आत्मसात करने व आभासित करने में ही है।
इसीलिए समस्त प्रकार के ध्यान के मतों, मार्गों, पंथों व धर्मों से जुड़े लोगों के लिए हमारा दृष्टिकोण अत्यंत उदार है व इन सभी के लिए हमारा ह्रदय अत्यंत खुला है।
व हम सभी का ह्रदय से सम्मान करते हैं और इन समस्त मतों, मार्गों, धर्मों व पंथों की सत्य बातों से कुछ न कुछ हांसिल करने,सीखने व समझने में रुचि रखते हैं।
ताकि इनसे जुड़े समस्त अनुयाइयों को उन्ही के अनुसार "श्री माँ" के मार्ग पर लाने में मदद कर सकें।
आप सभी को शायद पता होगा कि सहज योग के 5 ट्रस्ट हमारे भारत में सक्रिय हैं। और इन सभी ट्रस्ट्स से जुड़े सहज अनुयायी हमसे भी जुड़े हुए हैं।
किसी भी विशेष ट्रस्ट् अथवा सहज संस्था के प्रति हमारा कोई विशेष रुझान नहीं है।
बल्कि हमारा झुकाव तो केवल और केवल सत्य व सत्य को खोजने वाले समस्त 'सत्य साधकों/साधिकाओं', 'सत्य राहियों' व 'सच्चे खोजियों' की ओर है।
चाहे ये सत्य के यात्री किसी भी मत, साम्प्रदाय, मार्ग, पंथ, धर्म आदि से ही क्यों न जुड़े हों।
किन्तु हम केवल और केवल "श्री माँ" के बच्चे कहलाना ही पसंद करते हैं व अन्य सहज अनुयाइयों को भी इसी नजर से देखते हैं।
आखिर में ऐसे समस्त कट्टर पंथियों से विनम्र निवेदन करना चाहते हैं कि हमारी किसी भी पोस्ट पर अथवा ध्यान के हमारे तौर तरीकों पर यदि आप बहस करना अथवा झगड़ना चाहते हैं।
तो मेहरबानी करके इस प्रकार की आगे से कोई कोशिश भी करने का प्रयास न कीजियेगा।
क्योंकि हम आप जैसे कट्टर सहज अनुयाइयों के किसी भी प्रकार के प्रश्नों व पोस्ट्स का उत्तर देने ने लिए न तो बाध्य हैं और न ही उत्तर देना चाहते हैं।
यदि भविष्य में हमारी इस पोस्ट से ही आपने किसी भी प्रकार की अभद्र टिप्पड़ी व कमेंट किया तो आपको हमारे द्वारा तुरंत अनफ्रेंड करके ब्लॉक कर दिया जाएगा।
यह हमारी आप सभी कट्टर पंथियों व जड़ता से आच्छादित सहजियों के लिए प्रथम व अंतिम चेतावनी है।
पिछले 19 वर्षों में आप जैसे महान ज्ञानियों व कट्टरता से आच्छादित सहज अनुयायियों के अनर्गल बातों व आरोपों पर अपने अनुभव के आधार पर समझाने का भरसक प्रयास किया है।
किन्तु हमारी अन्तःप्रेरणा के अनुसार अब समय आ गया है कि आप जैसे सहज के तथाकथित ठेकेदारों, सहज के नाम पर असभ्यता व बत्तमीजी से बात करने वालों, सहज के नाम पर गन्दी राजनीति करने वालों को अपनी चेतना व फेस बुक में ब्लॉक कर दिया जाय।
हालांकि इस प्रकार के सख्त शब्दों का इस्तेमाल करना हमारे स्वभाव में शामिल नहीं है, किंतु जब आप सत्य पर चल रहे होते हैं तो अपने सदमार्ग की बाधाओं को अंततः हर हाल में दूर करना ही पड़ता है।
★किसी के ध्यान व चेतन-कार्यों के तौर तरीकों की आलोचना करने से पूर्व हम सबको पता होना चाहिए कि "श्री माँ" ने बताया है कि:-
1.हमारी नाभि में 10 आदि गुरुओं की सूक्ष्म चेतना विद्यमान है।
2.भक्ति 24 प्रकार से हो सकती है।
3. "माँ आदि शक्ति" के 1000 अवतार हुए हैं और "वे" स्वयं 'एक हजारवाँ' अवतरण हैं।
तो इन तीनो सन्दर्भों में हमारी चेतना अनुभव के आधार पर बताना चाहती है, यदि हम अपने भीतर खोजें तो:-
i)हम कम से कम 11 तरीकों से तो आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं, क्योंकि 10 तरीके तो आदि गुरुओं के व 11वे नंबर के 'स्वयं के गुरु' हम स्वयम हैं।
ii) हम स्वयं 24 प्रकार की भक्ति से "देवी माँ" को प्रसन्न रख सकते हैं।
iii)और ध्यान की गहनता में उतरने के लिए हम सभी कम से कम 1000 तरीको को अपना सकते हैं।★
आप सभी के ह्रदयों की किसी भी भावना को हमारे इस चिंतन-प्रवाह से यदि ठेस पहुंची है तो हम क्षमा प्रार्थी हैं।
किंतु अपने ह्रदय के अनुभवों को आप सभी के समक्ष साझा करने में हमें तनिक भी खेद नहीं है।
***एक ***एक तरफ तो हम "श्री माँ" के समक्ष ध्यान के दौरान बैठकर बड़ी भक्ति, श्रद्धा व समान से यह कहते हैं कि,
'हे "श्री माता जी" आपके "श्री चरणों" में अपना सभी कुछ यानि, तन, मन, धन, ज्ञान, आत्मज्ञान, भक्ति, समस्त अच्छे व बुरे भाव समर्पित करते हैं।
तो दूसरी ओर अन्य सहज अनुयाइयों की अज्ञानता से परिपूर्ण निर्थक आलोचना करते हैं।
तो क्या समर्पण करने की यह प्रक्रिया मात्र शाब्दिक होती है ?
अथवा हम तुरंत 'समर्पण' को "श्री माँ" के "श्री चरणों" में चढ़ाकर तुरंत वापस ले लेते हैं ? गम्भीरता से विचारियेगा।"***
--------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"