"ये मॉडल है केवल महाविनाश का"
"न हिन्दू मरे न मुसलमां मरे,
मर रहे केवल निर्दोष इंसान।
इन सियासी, दंगलों में,
हो रही इंसानियत हर दिन शर्मसार।
इंसानी लाशों के जले कटे ढेर पर,
केवल इनके ही परिजन रो रहे जार जार।
किसने मारा बड़ी बेहरहमी से, हिन्दू लाल अंकित को ?
किसने मारी दना दन गोलियां सीने में, मुस्लिम नवब्याहे अशफाक को ?
किसने मारी लात पेट में दरिंदगी से हिंदु गर्भवती महिला के ?
किसने नोचे वक्षस्थल वहशत से मुस्लिम महिलाओं,बेटियों व बहनों के ?
क्यों कर पुलिस दल निष्क्रिय हो टुकर टुकर ताके ?
क्यों दंगा करते दंगाइयों को वह क्यों कर न रोके ?
क्यों यह दंगा पीड़ितों के सैंकड़ो फोन कॉल के वाबजूद भी वहां पर न पहुंचे ?
किसने तीन दिन तक बिना रुकावट के ये नरसंहार करवाया ?
क्यों कर सारे जग में भारत का मखौल उड़वाया ?
क्या कोई मरा, इन भाड़े के दंगाइयों में से ?
क्या कोई मरा इन महादुष्ट विषैले नेताओं के घर परिवारों से ?
दोनों तरफ के दंगाइयों की यही हैवान तो फंडिंग करते है,
करा करा कर हिन्दू,-मुस्लिम दंगे हर पल यही तो अप्रत्यक्ष हत्याएं करते हैं।
पहले ये 2002 में कराया, अब यह प्रयोग दिल्ली में दोहराया है,
हमारे देश में चहुं ओर छाया बर्बादी का, यह एक मनहूस, शैतानी व बदनुमा साया है।
यदि नहीं चेते समय रहते सभी राष्ट्र जन,
यह प्रयोग सम्पूर्ण भारत में आजमाया जाएगा,
फिर यह हमारा देश केवल और केवल भयानक तबाही का मंजर ही दर्शायेगा।
कहाँ लड़ा निर्दोष हिंदु,मुस्लिम से ?
कहाँ निर्दोष मुस्लिम रखे रंजिश,हिन्दू से ?
किसने इनके रोजगार और आशियाने जलवाये ?
बरसों पुराने ये दोनों पड़ौसी ही अब दंगाई कहलाये।
कौन हैं वो मुस्लिम जिन्होंने हिन्दू परिवारों को बचाया ?
कौन हैं वो हिन्दू परिवार जिन्होंने मुस्लिमों की रक्षा कर अपने ही घर में बिठाया ?
कौन है दोषी इस क्रूर पाशविकता का ?
क्या है कारण इस अनवरत हिंसा का ?
झांक कर देखोगे जब खुद के गिरेबांह में सच्ची निष्ठा से, सिहर के रह जाओगे बड़ी ही हैरत से।
जान जाओगे कि इसकी वजह हम खुद हैं, हम ही इन दंगों की असली जड़ खुद हैं।
हम ही तो हैं जो रात दिन फैलाते हैं, मजहबी नफरत को अपनी जहरीली जहनियत से,
हम ही तो हैं जो दूरी सदा बना कर रखते हैं बेशकीमती कुदरती मोहब्बत से।
हम ही तो रात दिन काम करते हैं अनजाने में,
इन सत्ता लोलुप,लोभी, निर्दयी,दरिंदे नेताओं के लिए।
पूरे करते रहते हैं इनके ही खूनी एजेंडे यूं ही राष्ट्रवादी/धर्मिक बन अपनी ही गफलत को लिए।
हमारी ही तो बरसो पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं व मानसिकता को, ये नेता रोज भुनाते हैं,
हमारी ही नासमझी व नावाकफियत के चलते ये नेता,
हमारे ही देश को ही तो हर दिन नोच नोच कर खाते है,
नष्ट कर दिया वह सभी कुछ इन्होंने,जो पिछले 67 सालों में हमने पाया था,
जिनके त्याग,बलिदान,शहादत व मेहनत के दम पर,
इस मुल्क की आवाम की जिंदगी में सदियों बाद सुकून आया था।
सोचो क्या मिला अब तक इन विकास के झूठे व ख्याली वादों से ?
क्या हांसिल हुआ आज तक हिकारत व कट्टरता से भरे इन मजहबी हिंसक नारों से ?
क्या यही दिन देखने के लिए "श्री माँ" धरा पर आईं हैं,
इन्हीं घनघोर अंधेरों को मिटाने के लिए अपने साथ "वे" शक्ति ज्ञान-प्रकाश की लाई हैं।
नहीं है उम्मीद "उन्हें" कोई भी, किसी भी आम जनों से,
"उन्हें" है आशा बड़ी भारी केवल "अपने" ही प्रकाशित जायों से।
क्या ये दीपक भी अब इन सियासी आंधियों में एक एक करके बुझते जाएंगे ?
क्या लेकर हाथों में झंडे इन्हीं सियासी पार्टियों के,
इनके आकाओं की अनुशंसा में, अब ये दीपक क्या इनके ही गुन गान गाएंगे ?,
क्या ये वही प्रकाशित दीपक हैं जिनको आम जन के मार्ग दर्शन के लिए "श्री माँ" ने चुना है ?
क्या ये वही दीप हैं जलते हुए जिनकी मुक्ति के लिए,"श्री माँ" ने जागृति का ताना बाना बुना है ?
क्या ये वही प्रज्वलित दीपक हैं जिनको 'ज्ञान' प्रसारित करने के लिए "श्री माता जी" ने पुनर्जन्म दिया है ?
क्या ये वही जीव हैं जिनको अनेको जन्मों की अनगिनत पीड़ाओं से, "श्री माँ" बड़े प्रेम से विरत किया है।
क्या ये वही दीपक हैं जो संसार में भक्ति, प्रेम व करुणा फैलाएंगे ?
अपने आत्मज्ञान व चेतन कार्यो से सारे संसार में ज्ञान का सूरज उगाएंगे।
क्या ये वही रौशन दिए हैं जो झूठ व सत्य को पहचानने की क्षमता रखते हैं ?
क्या ये वही टिमटिमाते दिए हैं जो निरीह, दीन,हींन,पीड़ित,उत्पीड़ित को उठाने की काबलियत रखते है ?
क्या ये वही बच्चे हैं "श्री माँ" के जिनको देख कर "श्री माँ" का मन हर्षाता है ?
क्या ये वही कुसुमित पुष्प हैं जिनसे "श्री माँ" का ह्रदय गुदगुदाता है ?
क्या ये वही जागृत चेतनाएं हैं जो दुनिया को मुक्ति का मार्ग दिखएँगी ?
क्या ये वही आत्मसाक्षात्कारी जीवात्माएं हैं जो सोए हुओं को जगायेगी ?
करो सब 'जागृत जन' मनन व चिंतन बैठ "श्री चरनन" में शिद्दत से, हम हैं और क्या क्या कर रहे हैं ?
क्यों कर अपनी आगन्या पर कब्जा जमाए इन दुरात्माओं के हाथों की कठपुतली बन रहे हैं ?
क्या "श्री माँ" का आशीर्वाद हमें इन नरक वासियों के कार्यो के लिए मिला है ?
जरा गौर करों जागरूक होकर कि ऐसा सोचते व करते क्या हमारा सहस्त्रार दल व ह्रदय कमल खिला है ?
जागरूकता के मार्ग पर चलकर क्यों जागरूकता को लजा रहे हो ?
इन सत्ता व धन के भूखे भेड़ियों के फेर में पड़कर क्यों कर अपने को ही छले जा रहे हो ?
सत्य के मार्ग में चलते हुए भी क्यों कर असत्य को अपना रहे हो ?
आत्मिक उत्थान के लिए मिले इस दुर्लभ सुअवसर को क्यों कर यूं ही गंवा रहे हो ?
यह चित्रण नहीं है इस घिनोने षड्यंत्र की दुखद विभीषिका का,
बल्कि यह, पीड़ा है इस चेतना के चीत्कार करते ह्रदय की,
यह वेदना व छटपटाहट है ह्रदय में मानवता के हनन व जागृतों के भटकन की।
रक्षक हैं हम सारे जग के, इसीलिए "श्री माँ" ने हमें जगाया है।
देकर हमें "अपनी" सारी शक्तियां, हमारे ही चित्त में 'उन्हें' बसाया है।
नहीं लेना हाथ में हमें लाठी, डंडे, बंदूक और तलवार को,
विनम्र आग्रह है सबसे 🙏 ध्यान में बैठकर चित्त डालना हैं हमें बस, हर पैशाचिकता व राक्षसत्व मिटाने को।
करना है आव्हान "श्री महाकाली" का, करना है आव्हान"श्री दुर्गा" का, करना है आव्हान "श्री कल्कि" का,
गहन ध्यान में निरंतर सामूहिक होकर चित्त डालने मात्र से ही एक दिन, सम्पूर्ण विश्व निर्मल व स्वच्छ हो जाएगा,
तब ही जाकर हर अभ्यासरत सहजी "श्री माँ" का वास्तविक "श्री बालक" कहलायेगा।
यदि नहीं करा यह सब ध्यान में जाकर, तो 'आध्यात्मिकता का मूलाधार' भारत, ऐसे ही नष्ट हो जाएगा,
हम सबकी "श्री माँ" का अवतार लेकर धरा पर आना बिल्कुल ही व्यर्थ हो जाएगा।"
-------------------------Narayan🙏😔😥😭
"Jai Shree Mata Ji"
अनुभूति-52,(29-02-2020)
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