· "मृत्यु व् ध्यान स्थिति एक बराबर"
"आम सांसारिक लोगों के मृत्यु-काल के दौरान और किसी जागृत साधक की ध्यान-स्थिति में लगभग एक से ही हालात उत्पन्न होते हैं।
दोनों ही उपरोक्त दशाओं में दोनों प्रकार के मानवों की चेतनाएं "ईश्वर" के समक्ष होती हैं।
बस अंतर होता है केवल मनो दशा व आत्म-भावों का।
मृत्यु के नजदीक होने पर संसार में लिप्त मानव की चेतना "उनसे" क्षमा याचना करती हुई अपने सभी नकारात्मक कार्यों के लिए दया की भीख मांग रही होती है।
और ध्यान का आनंद उठाने वाले साधक की चेतना "उनके" प्रेम,
वात्सल्य,सानिग्धय,आशीर्वाद व सौरक्षण के प्रति "उनसे" कृतज्ञता प्रगट कर रही होती है।"
---------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
May 13 2020
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