"अति विपरीत काल यानि अनावरण काल"
"यूं तो यह तथाकथित महामारी काल अत्यंत भयावह है क्योंकि हमारे देश के कई हिस्सों में मौत का तांडव चल रहा है।
जिसके कारण लाखों लोगों की जीवात्माएं मात्र एक डेढ़ माह में ही इस लौकिक जगत को छोड़कर जाने के लिए बाध्य हो गईं।
किन्तु इस विपदा काल में हम सभी के समक्ष हमारे इर्दगिर्द व मीडिया में अक्सर दिखाई पड़ने वाले समस्त मानव देह धारियों के वास्तविक स्वरूप भी उजागर हो गए।
यह देख कर हैरानी हुई कि मानवीय शरीर में रहने वाले बहुसंख्यक अस्तित्व शैतानों,नराधमों,नरपिशाचों, राक्षसों,रक्त पिपासुओं,गिद्दों,भेड़ियों,लोमड़ों,सर्पों,बिच्छुओं के निकले।
साथ ही यह भी अनावृत हुआ कि जो भी लोग हमारे चारों ओर व आसपास रहा करते हैं,उनमें से कौन लोग मानवता के सच्चे हितैषी,हृदय से सन्त,दयालू,
देशप्रेमी,देशभक्त होने के साथ साथ,कौन लोग कायर,लोभी,धूर्त,मूर्ख,मक्कार,झूठे,ढोंगी,मानसिक रूप से गुलाम, षड्यंत्रकारी,अवसरवादी,अहंकारी,ईर्ष्यालू,हिंसक,संवेदना विहीन व दिखावा करने वाले भी हैं।
क्योंकि स्थान स्थान यह देखने को मिला कि यदि किसी के घर इस काल में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है।
तो आस पड़ोस के व्यक्तियों को छोड़िए यहां तक कि कुछ नजदीकी रिश्ते भी मृत शरीर को हाथ लगाने से कतराते दिखे।
यही नहीं मृत व्यक्ति के घर के सदस्यों में भी इस विषाणु के भय के कारण किसी बाह्य व्यक्ति को बुलाने की हिम्मत तक नहीं होती नजर आयी।
यानि इस काल ने अपने व पराए लोगों की वास्तविकता व रिश्तों की मजबूती अथवा हल्के पन को भी जग जाहिर कर दिया है।
और श्मशान घाट में भी इस विषाणु से संक्रमित व्यक्ति के मृत शरीर को आनन फानन में मात्र दो चार मंत्रों के साथ बिना गंगा जल मुख में डाले ही जल्दी से चिता पर रखवा कर प्लास्टिक कवर के साथ ही अग्नि के हवाले किया जा रहा है।
कहीं कहीं तो हिन्दू धर्म से जुड़े मृत व्यक्ति के शरीर को उसके घर के सदस्यों के द्वारा हाथ लगाने से इंकार करने पर उक्त मृतक शरीर का दाह संस्कार इंसानियत को गौरान्वित करने वाले कुछ मुस्लिम लोगों ने किया।
इसके साथ ही सनातन धर्म को मानने वाले हजारों हिन्दू लोगों की धर्मिक मान्यताएं भी छिन्न भिन्न हो गईं।
क्योंकि कई स्थानों पर धन के आभाव में हिन्दू धर्म के हजारों लोगों को दफनाना भी पड़ा और हजारों लोगों को नदी में बहाना भी पड़ा।
यानि कि इस काल ने यह साबित कर दिया कि विपदा व इंसानियत के आगे समस्त प्रकार के धार्मिक व जातिगत झगड़े व्यर्थ व बेमानी हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं "परमेश्वरी" इन समस्त महादुष्टों व नकारात्मक लोगों को समाप्त करने से पूर्व इस विपरीत काल में अच्छे,सच्चे,भोले भाले,जागृत व इंसानियत के रखवाले मानवों को छांटना चाहती हैं ताकि एक नए व आनंदमई युग का पुनः सृजन किया जा सके।
वैसे हम सभी जानते हैं कि इस सृष्टि के लिए "परमपिता परमेश्वर" अपने तीन रूपों में सक्रिय रहते हैं:-
"ब्रहम्मा"=रचनाकार,"विष्णु"=पालनहार, "महेश"="शिव"="नटराज"=संहारक।"
-------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
03-06-2021
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