"शास्वत
रिश्ते"
"जिस प्रकार डीप
फ्रिज के भीतर बर्फ में
दबा हुआ भोजन
महीनों तक तरो-ताजा रहता है।
उसी प्रकार से
निर्वाजय प्रेम से सींचे
गए आत्मिक रिश्ते
सदा सनातन होते
हैं और वे
सदा प्रेम,करुणा,आनंद, सम्मान व
प्रसन्नता का ही संचार
करते हैं।
ऐसे निर्मल व
अनमोल रिश्ते बरसों
तक आपसी बातचीत
न होने व
पुनः न मिल
पाने पर भी
एक दूसरे से
कभी कोई शिकायत
नहीं करते।
वे न तो
इस प्रकार के
लंबे काल-अंतराल
का बुरा मानते
हैं और न
इसके लिए आपस
में उल्हाना ही
देते हैं।
ऐसी दिव्य आत्मीयता से
सराबोर मानवों को
जब भी कभी
आपस में मिलने
व बातचीत करने
का अवसर मिलता
है तो ऐसा
प्रतीत होता है
जैसे कि अभी
कल ही तो
मिले थे।
क्योंकि वे एक दूसरे
के हृदय के
द्वारा मूक संवाद
के जरिये जुड़े
रहते जो उनकी
जीवात्माओं के मध्य निरंतर
चलता ही रहता
है।
इसके विपरीत जो लोग इन बातों को लेकर आपस में बुरा मानते हुए एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते हैं।अथवा अन्य लोगों के बीच एक दूसरे की पीठ पीछे एक दूसरे की बुराई करते रहते हैं।
वे वास्तव में
एक दूसरे से
जुड़े ही नहीं
होते बस अपने
उन तथाकथित रिश्तों को
एक दूसरे पर
लादते हुए एक
दूसरे की चेतना
पर सदा दवाब
ही बनाये रखते
हैं।
यही नहीं इस
प्रकार के व्यक्ति रिश्तों के नाम पर
निरंतर एक दूसरे
को किसी न
किसी बात पर
पीड़ा ही पहुंचाते रहते
हैं।
ऐसे रिश्तों को ढोने के स्थान पर उन रिश्तों से दूर हो जाना ही श्रेष्ठ होता है।यदि बाहरी रूप से सम्भव न हो तो अंदरूनी रूप से ऐसे रिश्तों को समाप्त कर देना चाहिए।
ताकि शांतिपूर्ण जीवन
जीते हुए इस
अनमोल मानवीय जीवन
को सार्थक बनाया
जा सके।
वास्तव में "परमपिता" ने हम
सभी की जीवात्माओं को
मानवीय देहावरण प्रदान
कर एक दूसरे
की चेतनाओं की
विकास प्रक्रिया में
एक दूसरे की
मदद करने के
लिए ही रिश्तों के
रूप में स्थापित किया
है।
जिसके लिए शांति,प्रेम,वात्सल्य,सौहार्द,सामंजस्यता,समन्वयता व आपसी समझ का वातावरण अति आवश्यक है।"
----------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
11-01-2022