'अनुभूति' ---20 --(10 .04.07)
"समाधान "
"ये निगेटिविटी कुछ और नहीं ,
निर्मल हवा का झोंका हैं।
यदि न इसे समझ पाओ तो,
सिर्फ पलायन करने का ये धोखा है।
वास्तव में ये अंतर्निहित कमियों का,
एकमात्र झरोखा है।
ऐसी अदभुत शक्ति को,
'परमात्मा' ने भी कभी न रोका है।
जो भी इस तथ्य को न अपनाता,
वह शख्स हर पल रोता है।
जो सच्चे हृदय से इसका स्वागत करता,
वही नींद चैन की सोता है।
वही बनकर साधक सच्चा,
गहन समाधि में खोता है।
ऐसी ही उच्चस्तरीय चेतनाओं पर ही तो,
सृष्टि का दारोमदार होता है।
"इति श्री"
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