"Impulses"
1)“Jealousy is just like a ‘rotten Fruit’ which usually spoils
all the other Fruits (Virtues), so it is always better to throw the ‘rotten
One’ out of the ‘Basket’ (Mind). Otherwise good people become away from such an
infected person and ‘divine Powers’ too might be annoyed because of ‘Anti God’
and ‘anti Nature’ mental disposition which might appear in the form of Dreaded
Diseases.”
("ईर्ष्या एक सड़े हुए फल जैसी होती है जो कि स्वाभिक रूप से बाकी बचे हुए फलों (हमारे गुण ) को भी खराब कर देता है इसीलिए बहुत अच्छा होगा की हम उस सड़े फल (ईर्ष्या) को तुरंत फलों की टोकरी(मन ) से बाहर निकाल कर फेंक दें और बाकी बचे हुए फलों (गुणों) को सड़ने से बचा लें। वर्ना ऐसे ईर्षालु व्यक्ति से अच्छे लोग सदा दूर हो जाते हैं और साथ ही 'परमात्मा' की 'दिव्य शक्तियां' भी ऐसे विषालु व्यक्ति से नाराज हो जाती हैं क्योंकि ऐसा व्यकि परमाता व् प्रकृति के विपरीत मानसिकता लिए हुए होता है जिसके परिणाम स्वरूप देवी-देवताओं की नाराजगी उस ईर्षालु व्यक्ति में भयानक व् घातक बीमारियों के रूप में प्रगट होती हैं।)
2) “Regular Meditation is a process of Sanitation which
cleanse all kinds of filth and dirt from our mind and helps us to maintain a
proper connectivity with the Divine as well as it enhances the level of our
Awareness which takes us to higher Consciousness.”
("निरंतर ध्यानस्थ रहना एक प्रकार की सफाई-प्रक्रिया है जो हर प्रकार की गन्दगी को निकाल कर हमारे मन को स्वच्छ करती है और साथ ही "परम" से निरंतर संपर्क बनाये रखने में हमारी मदद करती है जिससे हमारी चेतना का स्तर ऊंचा होता है जो हमें हमारी जागृति की उच्च अवस्था तक ले जाती है। ")
3)“The Law of Nature is applicable on all visible creation,
which is based on ‘Give and Take’ system. That’s why all kinds of sorrows and
happiness appear in our Life as we have taken several births to balance all
kinds of Debts & Credits.
If we want to end this Endless Cycle then we have to maintain ‘Giving’
without expectations. The Day will come and we might be able to be freed from
‘Recycling’.
The best way of giving is the Giving of Self Realization to
others and to help Realized Souls to establish their proper Meditation".
("प्रकृति का नियम उन समस्त चीजों पर लागू होता है जो हमें हमारी खुली आँखों से दिखाई देती हैं जो कि लेंन -देन पर आधारित है। इसीलिए समस्त प्रकार की खुशियां और दुःख हमारे जीवन में आते रहतेहैं क्योंकि इस प्रकार के लेंन -देन को संतुलित करने के लिए हम कई जन्म ले चुके हैं।
यदि हम इस अनंत जन्म-मरण की प्रक्रिया को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें अपने इस वर्तमान जीवन में बिना किसी अपेक्षा के, केवल देने की प्रवृति को बनाये रखना होगा। और एक दिन ऐसा आएगा जब हम बारम्बार जन्म लेने की प्रक्रिया से पूर्ण मुक्त हो जाएंगे।
देने के लिए आत्म साक्षात्कार देना व् नए सहजियों को उनके ध्यान में ठीक प्रकार से स्थापित करने में उनकी मदद करने से बढ़िया कोई और देने का तरीका हो नहीं सकता।" )
--------------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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