"Impulses"
1) "Our Manah (Mind) is a store of memories and information used for human awareness while our Spirit is the medium of the communication of Almighty contains whole knowledge of Creation. When our awareness keep on sticking with our Spirit then our Mind starts merging into our Spirit and finally get Dissolved, such state is called the state of "Moksha"
("हमारा मन स्मृतियों व् सूचनाओं का भण्डार है जो हमारी मानवीय चेतना लिए इस्तेमाल होता है जबकि हमारी आत्मा "परमात्मा " के साथ बातचीत करने का माध्यम है जिसमें सम्पूर्ण रचना का ज्ञान समाहित है। जब हमारी चेतना हमारी 'आत्मा' साथ जुडी रहती है तब हमारा मन 'आत्मा' में समाने लगता है और अंत में विलीन हो जाता है, ऐसी ही अवस्था को "मोक्ष" की अवस्था कहा जाता है। "
2) "We humans usually bear two kinds of existences within
our being, one belongs to our External Being which is looked after by our Mind
( Manah) and other one belongs to our our Soul which is taken care by our
Spirit, so we are the combo of two kinds of Supervisions within this Unique
Creation of 'God'.
That's why we are privileged two kinds of thoughts to balance our both the entities like materialistic and spiritual as per our inclination and priorities of our needs and requirements.
That's why we are privileged two kinds of thoughts to balance our both the entities like materialistic and spiritual as per our inclination and priorities of our needs and requirements.
So there is no need to struggle and fight with our thoughts but
we must always try to keep our mind(Manah) connected with our Spirit to get the
balanced Discretion for all kinds of our Situation and Circumstances in all
kinds of Mental Disposition."
(" हम मानव अपने भीतर दो प्रकार के अस्तित्वों को बसाये रहते हैं, एक हमारे बाहरी अस्तित्व से सम्बंधित है जिसकी देखभाल हमारे मन के द्वारा की जाती है और दूसरा अस्तित्व हमारी जीवात्मा से सम्बन्ध रखता है जिसकी जिम्मेदारी हमारी 'आत्मा' उठाती है।
अतः हमारी दो प्रकार से देखभाल की जाती है, क्योंकि हम "परमात्मा" की श्रेष्ठतम रचना हैँ। इसीलिए हमें दो प्रकार के विचार दिए हैं जिससे हम भौतिक व् आध्यात्मिक दोनों अस्तित्वों की आवश्यकताओं में संतुलन बिठा सकें।
अतः हमें अपने विचारों से संघर्ष करने की कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें अपने मन को अपनी आत्मा के साथ जोड़कर रखना चाहिए ताकि अपने जीवन में हर प्रकार की स्थिति व् हर प्रकार की मानसिक अवस्था में हम संतुलित निर्णय लें सकें। "
3) "To over come the thoughts of our problems, it is far
and far better to be indulged in doing "Productive Things" which is
usually beneficial for others as well as for our self, because, everything is
Pre-Destined which is related to this Materialistic World.
On the Contrary, all
the things are Un-Certain which belongs to Spiritual World because it depends
on our True Devotion, Surrender, and Sincere Practice of Meditation."
("यदि हम अपनी समस्याओं के हर समय चलते रहने विचारों से बाहर निकलना चाहते हैं बेहतर होगा की हम स्वम् अपने को किसी न किसी रचनात्मक चीजों में लगा लें जो कि हमारे व् हमसे जुड़े दूसरों के लिए भी लाभ दायक होगा।
क्योंकि जो भौतिक जगत से जुडी चीजें व् घटनाक्रम हैं वो सभी पूर्व-निर्धारित व् पूर्व-सुनिश्चित हैं और इसके विपरीत जो भी स्थितियां व् चीजें 'आध्यात्मिक' दुनियां से जुडी हैं वो सभी 'अनिश्चित' हैं,क्योंकि वो सभी चीजें व् हालात हमारे सच्चे समर्पण, भक्ति और गंभीरता के साथ किये गए ध्यान के अभ्यास पर ही निर्भर करती हैं।"
------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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