"जशन-ऐ-ख़ाक"
"अपनी ख़ुशी से मिटने का मजा कुछ और ही होता है दोस्तों,
जैसे मक्खन का वजूद गर्म रोटी पर ख़ुशी ख़ुशी पिघल जाता है,
जैसे मोमबत्ती का मोम जलती बाती के साथ अपनी मर्जी से ख़ाक हो जाता है,
जैसे मन का दुःख दिल के दरिया डूब कर समां जाता है,
जैसे बर्फ का टुकड़ा मदहोश होकर जाम में ग़ाफ़िल हो जाता है,
जैसे 'इजहारे-ऐ-इश्क' की बेताबी में अल्फाज लबों में ही घुल जाता है,
जैसे एक दीवाना ख़ुशी ख़ुशी अपनी सच्ची मुहब्बत के लिए फना हो जाता है,
जैसे ढलती साँझ में 'उजाला' मदमस्त हो अँधेरे के आगोश में बड़े शौक से जज्ब हो जाता है,
जैसे 'रूहानी गुफ्तगू' के दौर में उठने वाला हर नफ्फसानी-ख्याल, अपने "रहबर" के एहसास में मजे से खुदकुशी कर लेता है,
जैसे सदियों से तरसती हुई 'रूह' का इश्क "उनके" 'दीदार-ऐ-उल्फत' में बड़ी शिद्दत से दम तोड़ देता है।"
-------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
रूहानी गुफ्तगू=ध्यान
नफ्फसानी-ख्याल=भौतिक इच्छाएं
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