Wednesday, December 14, 2016

"Impulses'---323---"पर निन्दा"

"पर निन्दा"

"कुछ अरसा पहले व्हाट्स एप पर एक पोस्ट पढ़ी जिसमे एक सहजी के कार्यों की कुछ सहजियों द्वारा दिल खोलकर प्रशंसा की गई थी, उसमे बताया गया था कि उस सहजी के माध्यम से "श्री माँ" ने अनेको साधक/साधिकाओं को अपना प्रेम दिया व् उन्हें रोग मुक्त किया।

इसी सहजी के बारे में कुछ दिनों बाद उसी ग्रुप में एक पोस्ट पढ़ी थी जिसमे उसी सहजी की काफी बुराई की गई थी और उस पर कुछ घटिया आरोप भी लगाये गए थे, यहाँ तक कहा गया था कि इस सहजी से मिला भी जाए।

साथ ही उसमे बताया गया कि कुछ सहज संस्था के पदाधिकारी उस सहजी का विरोध कर रहे हैं और उस सहजी के कार्यों को बंद कराने के लिए दवाब डाल रहे हैं

तो ये दो प्रकार के विचार, जो एक दूसरे के तथ्यों को काट रहें है, उसी सहजी के बारे में हमें पढ़ने को मिले। अब जरा अपने हृदय में अपने चित्त को रखकर अपने सहस्त्रार से जुड़कर कुछ मिनटों के लिए देखिये तो सही हृदय से दोनों प्रकार के तथ्यों के प्रति क्या भाव प्रगट होते हैं।

मेरी चेतना व् जागृति के अनुसार कुछ बाते मेरे हृदय में रहीं हैं जो आप सभी से शेयर करने का दिल कर रहा है:-

1) यदि कोई भी साधक /साधिका किसी भी प्रकार से किसी भी ध्यान के तरीके को अपना कर नए लोगों को "श्री माँ" के "श्री चरणों" में ला रहा है, और पुराने सहजियों को "माँ" के प्रेम द्वारा गहन ध्यान में ले जा रहा हैव् कुछ सहजियों को उनकी बीमारियां ठीक करने में मदद कर रहा है तो ऐसे सहजी के अस्तित्व व् हृदय को मेरी चेतना सादर नमन करती है।ऐसे ही साधक/साधिकाओं की आज इस 'धरा' को आवश्यकता है जो पूर्ण हृदय से इस प्रकार के कल्याणकारी कार्यों में लगे हैं।

2) एक और तथ्य सभी को समझना चाहिए कि "श्री परम चैतन्य" किसी भी प्रकार की संस्था व् संस्था के पदाधिकारियों से संचालित नहीं किये जा सकते, वो तो केवल "माँ" के द्वारा ही संचालित होते हैं।और सहस्त्रार व् मध्य हृदय पर उपस्थित सहजियों के माध्यम से कार्य करते हैं।

3) हमारी समस्त सहजी संस्थाओं के ट्रस्टी व् पदाधिकारी भी तो सहजी ही हैं जो हमारी तरह "श्री माँ" के "श्री चरणों" में सर नवाते हैं और अपनी अपनी चेतनाओं के मुताबिक ही ध्यान के द्वारा पाते हैं और अपनी बातें सब तक रखते है जैसे हम सभी सहजी एक दूसरे से शेयर करते हैं।

 संस्था चलाना कोई आसान कार्य नहीं है इसके लिए काफी सामर्थ्य व् निपुणता चाहिए और वो हर एक के पास नहीं होता, अतः हमें संस्था के पदाधिकारियों की भी आलोचना नहीं करनी क्योंकि 'माँ' जिससे भी जो काम लेना चाहें वो ले लेती हैं।

4) यदि कोई ये कहे कि अमुक सहजी सहज विरोधी कार्य कर रहा है फिर भी उसके पास अन्य सहजी जा रहे हैं तो ये उन जाने वाले सहजियों की अपनी समझ है इसमें किसी को भी टिप्पड़ी करना व्यर्थ है, क्योंकि वो इसलिए वहां जा रहे हैं क्योंकि उन्हें वहां से कुछ कुछ लाभ जरूर प्राप्त हो रहा है

5) किसी भी सहजी के द्वारा यदि कुछ भी प्रकृति या परमात्मा विरोधी कार्यों किया जा रहा है तो उसके लिए "माँ" की शक्तियां मौजूद हैं वो अपने आप सक्रीय हो जाएंगी और उसको रोकेंगी, इसलिए भी हमें सुनने व् पढने के आधार पर कुछ भी गलत प्रचारित नहीं करना चाहिए।

यदि हमारे से किसी भी सहजी की भावनाएं या विचार नहीं भी मिलते हों तो भी हमें किसी के भी बारे में नकारात्मक प्रचार नहीं करना चाहिए यह हमारी जागृत चेतना होने की गरिमा के विपरीत है। 

मेरी चेतना को स्वम् कुछ इसी प्रकार के सहजियों का अनुभव प्राप्त है फिर भी मेरी चेतना उन सभी के बारे में नकारात्मक प्रचारित नहीं करना चाहती। वो बात अलग है कि यदि कोई मुझसे किसी के बारे में मेरी व्यक्तिगत राय मेरे अनुभव के आधार पर पूछे तो मेरी चेतना उसके बारे में अपने वास्तविक अनुभव प्रगट कर सकती है

6) ध्यान से सम्बंधित समस्त कार्यों को हमें अपनी समझ, चेतना, व् जागृति के आधार पर ही करते जाना चाहिए चाहे कितने भी लोग हमारा विरोध कर रहे हों क्योंकि कराने वाली तो केवल "श्री माँ" ही हैं। 

हमारी कुण्डलिनी तो केवल "माँ आदि शक्ति" के आज्ञानुसार ही कार्य करती है किसी भी सहजी या संस्था के पदाधिकारी से संचालित नहीं होती। अतः समस्त प्रकार की व्यर्थ बातों को छोड़ कर अपने हृदय की प्रेरणा से समस्त मानवों के कल्याण के लिए यह चेतना का कार्य जारी रखें।


कितने अफ़सोस की बात है कि हमारे विश्व में इतनी गंभीर समस्याएं चल रही हैं, उन समस्त आपदाओं को दूर करने के लिए उन पर गहन ध्यान में चित्त लगाने के बजाये कुछ सहजी एक दूसरे के लिए बिना किसी पुख्ता आधार के व्यर्थ की बाते कर अपने आत्मसाक्षात्कार को ही लज्जित करने में लगे हैं।"
-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

1 comment:

  1. सही है...जै श्री माता जी..

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