Monday, April 17, 2017

"Impulse"--357

"Impulses"

1) "जिस प्रकार हम बरसात के मौसम में अपने कपड़ों को भीगने से बचाने के लिए स्वम् को छाते या रेन कोट से ढक लेते हैं तो वर्षा का जल हमारे कपड़ों को भिगो नहीं पाता।

ऐसा करने से हमारे कपडे तो भीगने से बच जाते हैं किन्तु उस अमृत जैसे जल से हमारा शरीर वंचित भी रह जाता हैं जो हमारे शरीर को रोग रहित करने की क्षमता रखता है।

जिससे अत्यधिक गर्मी व् उमस के कारण हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाली घमौरियां ठीक हो जाती हैं साथ ही शारीरिक तापमान भी सामान्य हो जाता है।

ठीक उसी प्रकार से ईर्षालु एवम् अहंकारी मानव "प्रभु"के बरसते प्रेम व् आशीर्वाद से वंचित रह जाता है। क्योंकि वह अपने को इन्हीं दुर्भावनाओं के आवरण से ढक कर रखता है जिसके कारण 'परमपिता' की अनुकंम्पा, प्रेम व् वात्सल्य उनके अस्तित्व को सराबोर नहीं कर पाता "

2) "जब जब साधक अपने भीतर की ओर अग्रसर होने लगता है तब तब "महामाया" उसको संसार की अनेको स्थितियों व् परिस्थितियों में जानबूझ कर उलझाती हैं।

ताकि "माया" द्वारा रचित ये संसार निरंतर गतिमान रहे, क्योंकि सच्चा साधक संसार से विरत होने लगता है, उसके लिए संसार समाप्त हो जाता है।

वो तो केवल इस दृश्यमान जगत के भीतर में स्थित "प्रभु के साम्राज्य" का आनंद उठा रहा होता है और संसार से पूरी तरह उदासीन होता है "

"Whenever a Sahdhak/Sadhika steps towards into his/her own Internal Spiritual World in Deep Meditation then "Shree Maha Maya" plays "Her" Game by making him/her entangled into all kinds of worldly affairs. So that this External World could keep on moving which is created by "Maya".

Because a True Devotee becomes indifferent from this Materialistic World, his/her Gross World is going to be extincted slowly. He/She use to be enjoying 'The Kingdom of God' which exists into this Visible World by being reluctant of it completely."

---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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