"साकार पूजा / निराकार पूजा"
हम सभी मुख्यतः दो प्रकार से ही "श्री माँ आदि शक्ति" की पूजा करते हैं, एक है साकार पूजा व दूसरी है निराकार पूजा दोनों ही प्रकार की पूजा में हमारी स्थिति अलग- अलग होती है।
यानि प्रथम प्रकार की पूजा में हम "उन्हें" "श्री माँ निर्मला" के रूप में साक्षात् "उनके" सामने उपस्थित होते हैं या "उनके" 'प्रेममयी स्वरूप' को अपने स्वम् के मध्य हृदए में स्थापित करते हैं।
प्रथम साकार पूजा, साकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, यानि सा+कार्य, "सा" जो स्वर है वह मूलाधार से प्रगट होता है यानि "श्री गणेश "का प्रतिनिधित्व करता है। और "श्री गणेश" को "शरीर"(आकार) का वरदान मिला है , यानि "श्री गणेश" बन कर "श्री माँ" की पूजा करना। यानि शारीरिक स्थूल अंगो के द्वारा।
दूसरी है 'निराकार पूजा', ये शब्द भी दो शब्दों का संयोग है, यानि नीरा+अकार, 'नीरा' शब्द जल का पर्यायवाची है, जो जल के स्वभाव मृदुता, शीलता, जीवंतता व् आकार रहितता को प्रगट करता है।
इसके अतिरिक्त 'निराकार' शब्द की हम एक और तरीके से संधि विच्छेद कर सकते हैं, यानि नि+र+कार्य, "नि" शब्द सहस्त्रार का स्वर है, एवम 'र' जो "माँ आदि शक्ति"की 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करता है। यानि, जो 'शक्ति' बिना रूप, रंग व आकार की है, किन्तु जल के समस्त गुणों व् स्वभाव से परिपूण है।
जो 'शक्ति' द्रव्य-रूप धारण कर गहन ध्यान-अवस्था में
हमारे सहस्त्रार के माध्यम से हमारे सूक्ष्म यंत्र में प्रवेश कर हमारे समस्त 'ऊर्जा केंद्रों', सूक्ष्म नाड़ियों को प्लावित कर उन्हें पोषित करती है। व् हमारे हृदए को 'निरानंद' प्रदान कर उसे प्रफुल्लित करती है व् हमारे समस्त प्रकार के भव-बंधनों से हमें मुक्त कर हमें 'मोक्ष' का अधिकारी बनाती है।
ऐसी 'प्राण-दायिनी', प्रेम-दायिनी एवम मोक्ष-प्रदायिनी
"माँ आदि शक्ति" की 'शक्ति' को हम, ऊर्जा रूप में, अपने सहस्त्रार के जरिये, अपने सम्पूर्ण सूक्ष्म यंत्र में, अपने चित्त के माध्यम से, प्रवाहित होने का अनुभव करते हुए, पूर्ण श्रद्धा, भक्ति व् समर्पित भाव से 'निराकार रूप' में उपासना करते है।"
------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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