"सतर्कता"
"हममे से अधिकतर लोग अक्सर ध्यान के विषय में अपने अपने चिंतन या अनुभव के माध्यम से किसी भी तथ्य या बात पर लिखते हैं या बोलते हैं।
तो हमें लिखते हुए या बोलते हुए अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए में 'दिव्य ऊर्जा' को महसूस करते हुए पूर्ण जागरूक रह कर ये सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि हमारी चेतना कहीं 'आत्मा' से प्रभावित होने के स्थान पर 'मन' की जकड़न में तो नहीं है।
यदि हमारी चेतना मन के अधीन रहेगी तो निश्चित रूप से 'असत्य' की ओर ही ले जाएगी और यदि 'आत्मा' की ओर उन्नमुख होगी तो केवल और केवल 'सत्य' का ही प्रसार करेगी।
अगर हम जाने अनजाने में सत्य के साथ चिंतन के दौर से गुजर रहे हैं तो चिंतन के परिणाम स्वरूप हमें स्वम् को एवम पढ़ने/सुनने वालों को भीतर में आनंद, उल्लास व् सुकून प्राप्त होने के साथ साथ समाधान भी प्राप्त होंगे।
इसके विपरीत यदि लिखते या बोलते हुए किसी भी नकारात्मक भावना के वशीभूत होकर हमारी चेतना असत्य के आवरण में लिपटी होगी तो स्वम् हमें व् अन्य पढ़ने/सुनने वालों को अपने हृदए में घुटन व् असंतोष महसूस होगा जो इस बात का प्रतीक होगा कि हमारी चेतना दूषित हो गई है।"
----------------------------------------Narayan
".Jai Shree Mata Ji"
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