"उच्च 'कर' त्रासदी"(02-08-17)
इस हृदेयभाव के जरिये ये साधारण नागरिक आज के समय की नई कर व्यवस्था के दुष्प्रभाव का एक चित्रण आप सभी के समक्ष रखना चाहता है व आप सभी से आग्रह करता है कि अपने कीमती समय में से कुछ समय इस चिंतन यात्रा से गुजरने के लिए अवश्य निकालिएगा। समस्त उद्यमियों में वो सभी व्यवसायी आते हैं जो अपने दम पर, अपने रिस्क पर, हजारो परेशानियों का सामना करते हैं। और अपने अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए अक्सर अपना मकान/दुकान, जमीन व कार्यशाला बैंक में गिरवी रख कर ब्याज पर पैसा उठाते है।
वे कितने ही लोगों को रोजगार देते हैं, कितने ही लोगों को व्यापार के अवसर प्रदान करते हैं व अपने देश को आर्थिक रूप से उसके पावों पर खड़ा रहने में मदद करते हैं। बड़े बड़े उद्योगों की विभिन्न आवश्यकताओं की आपूर्ति नियत समय पर कर उनको निर्बाध गति से चलाने में मदद करते हैं।उनको अपने ग्राहकों से पैसा मिले या न मिले फिर भी सरकार के लिए हर माह किसी न किसी तरह हर प्रकार की अड़चनों व बाधाओं के वाबजूद टैक्स की राशि जुटा कर सरकारी खजाने में निरंतर जमा कराते हैं। उनके द्वारा कमा कर चुकाए गए पैसों पर ही हमारे देश का समूचा सरकारी तंत्र, राज तंत्र व सुरक्षा तंत्र कार्य करता है।]
ये चेतना पूर्ण हृदय से हमारे देश के समस्त कृषको के लिए भी नत मस्तक है व इनके लिए सच्ची श्रद्धा रखती है, जो एक प्रकार से वास्तविक रूप में सच्चे उद्यमी ही हैं। जो चिलचिलाती धूप, कड़ाके की ठंड व घनघोर बारिश में अथक परिश्रम व श्रम कर हम सभी के लिए भोजन का प्रबंध करते हैं।
अक्सर प्रकृति की विपदाओं की मार को झेलते हैं, फसल के चौपट हो जाने पर अनेको प्रकार के कर्जों के बोझ तले दब जाते हैं। और दुर्भाग्य से कभी कभी तो कोई मार्ग ढूंढ न पाने के कारण आत्महत्या तक लेते हैं,और अपने परिवार को बेसहारा कर आजीवन तड़पने के लिये छोड़ जाते हैं।
अब जरा चलते हैं एक अवलोकन यात्रा पर ताकि GST के लागू होने पर वर्तमान कर स्थिति का उद्यमियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का कुछ जायजा लिया जाय। ये अवलोकन विशेष तौर पर उन लोगों के लिए है जो किसी भी व्यवसाय या व्यापार से ताल्लुक नहीं रखते हैं। ताकि वो भी इस व्यवस्था के परिणाम स्वरूप जो हमारे देश के आर्थिक हालात बन रहे हैं उसे समझ सकें।
मैं कोई पढ़ा लिखा विद्वान नहीं हूँ क्योंकि किन्ही आर्थिक विषमताओं व् विभिन्न परिस्थितियों के चलते ठीक से पढ़ ही नही पाया। किन्तु फिर भी जो अपनी तुच्छ बुद्धि में समझ आया है वही आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।यदि विद्वानों को कुछ त्रुटि लगे तो बुरा न मानियेगा।
वास्तव में कुछ माह पूर्व GST लगने के बारे में अखबार के जरिये जाना था तो सभी उद्यमी प्रसन्न हो गए थे। क्योंकि मीडिया के जरिये प्रचारित किया जा रहा था कि "एक देश व एक कर" व्यवस्था हमारे देश में लागू हो जाएगी और कई प्रकार के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों को एक कर दिया जाएगा।
साथ ही व्यापार के लिए कई प्रकार के फार्म लगाने की मुसीबत से भी छुटकारा मिल जाएगा।और जीवनुपयोगी वस्तुओं को छोड़कर कर की अधिकतम दर 18% से ज्यादा नही होगी।
पहले वैट व्यवस्था में अधिकतम कर 14.5% था तो अब यह 18% हो जाएगा और अनेको जटिलताओं से युक्त पूर्व कर व्यवस्था अत्यंत सरल हो जाएगी। किन्तु जब 1 जुलाई से लागू हुआ तो सबकी अक्ल चक्कर घिन्नी हो गई जो अभी तक भी सीधी नहीं हो पाई है। इस व्यवस्था में 0%, 3%, 5%, 12%, 18% व 28% टैक्स के वर्ग बनाये गए हैं।जबकि 18% टैक्स अधिकतम बताया गया था । तो भला ये व्यवस्था एक कर व्यवस्था है ही कहाँ।
बहुत से ऐसे उद्यमी हैं जो अभी तक बिल भी नहीं काट पाए हैं क्योंकि उन्हें अभी तक वाणिज्य कर के अधिकारियों, वकीलों व चार्टर्ड अकाउंटैंट से बातचीत करने के उपरांत भी ये समझ नही आ पा रहा है कि वो किस वर्ग के कर की श्रेणी में आ रहे हैं। कई उद्यमियों के तो अभी तक रजिस्ट्रेशन भी नहीं हो पाए हैं, कोई भी कर विभाग का अधिकारी लिख कर कोई भी वक्तव्य जारी नही कर रहा है जिसके आधार पर कोई भी उद्यमी कोई निश्चित निर्णय ले सके।
चारो ओर असमंज व अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है।किसी को भी ठीक प्रकार से कुछ भी समझ नही आ रहा है। कहने को तो कई जगह कैम्प लग रहे हैं किंतु सब कुछ जुबानी ही चल रहा है।कोई भी अधिकारी अपने वक्तव्य को लिखित में जारी नही कर रहा है। क्योंकि ये बार बार प्रचारित किया जा चुका है कि यदि गलती से भी टैक्स कम लगाया गया तो पैसे की पेनाल्टी के साथ साथ जेल भी जाना पड़ेगा।अतः कोई भी अधिकारी लिख कर कुछ भी देने को तैयार नहीं।
उनका कहना है कि जो भी समझना हो तो GST की 'आन लाइन गाइड लाइन' से समझ लो।पर कोई भी कर विभाग का अधिकारी ये समझ नही पा रहा है कि यदि समझ में आ जाता तो उद्यमी सभी जगह धक्के क्यों खा रहे हैं। समस्या ये है कि 80%से ज्यादा छोटे उद्यमियों को तो कम्प्यूटर भी ठीक से चलाना नहीं आता, आन लाइन मदद ले कर इस जटिलतम टैक्स प्रणाली को समझना तो बहुत दूर की बात है।
अभी तो GST Portal भी ठीक से काम नही कर रहा जिसपर कुछ काम करके समझा जा सके। इस विश्व के अन्य देशों में जब जब भी GST लगी है उससे पूर्व वहां की सरकारों ने दो दो साल तक उद्यमियों व व्यापारियों को प्रशिक्षण दिया है और उसके बाद ही इस प्रणाली को लागू किया है। परंतु हमारे देश की वर्तमान 'सरकार चालक' कुछ विशेष हैं जो हर चीज में जल्दबाजी से काम लेकर सैंकड़ो नियम यहां की जनता के सर पर लाद देते है और उनके दुष्परिणामो को ढकने के लिए हमारे देश की जनता का ध्यान अनगिनत मुद्दों में उलझा कर अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं।
बिना किसी तैयारी के वर्तमान सरकार ने विश्व की सरलतम कर प्रणाली को अत्यंत सर्वोच्च कर व जटिलतम रूप में सभी उद्यमियों के सर पर जल्दबाजी में थोप दिया है।यदि हानि हो रही है तो केवल ओर केवल उद्यमियों व व्यापारियों की।
अभी तो सभी उद्यमी नोटबन्दी रूपी 'महामारी' से उबर भी नही पाये थे, जिसके कारण काम पूरी तरह ठप्प ही हो गया था, बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत घिसटते हुए चला तो एक और 'राजरोग'(उच्च कर व्यवस्था) थोप दिया गया। इसके कारण रहा सहा कार्य भी समाप्त होने के कगार पर आ गया है।और जो लोग 28% टैक्स के स्लैब में आये हैं उनको ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वो अब शायद कार्य ही नहीं कर पाएंगे। क्योंकि उनसे 28% टैक्स देकर कौन माल खरीदेगा ? और इतने कर की जिम्मेदारी वो कैसे वहन करेंगे ? इसके लिए बहुत सारे पैसे वो कहाँ से लाएंगे ?
हमारे देश में ज्यादातर उद्यमी छोटे हैं जो 30 लाख से लेकर 1 करोड़ तक का सालाना व्यापार करते हैं। और इतनी उच्च(28%) कर प्रणाली में वो अपने व्यापार को ठीक प्रकार से चलाने की सोच तक नहीं पा रहे हैं। इसको आसानी से समझने के लिए सर्वप्रथम ऐसे उद्यमी का उदाहरण लेते हैं जिसकी सालाना बिक्री 1 करोड़ होती है जो बदकिस्मती से उच्चतम(28%) कर दर की चपेट में आ गया।
जो 1 करोड़ की बिक्री करने के लिए लगभग 55 % की खरीद करता है जिसकी कुल खरीद की आधी खरीद 5% टैक्स पर है और बाकी आधी खरीद 18% टैक्स पर है। और दोनों टैक्स की दर (5%+18%=23%÷2) को जोड़ कर एवरेज निकाला जाए तो 100 रुपये की खरीद पर 11.5% टैक्स की खरीद दर बनती है,अतः उसको 11.5% के हिसाब से 55% खरीद पर लगभग
Rs.6,32,500=00 कर बनता है जो ITC के रूप में 1 करोड़ की सालाना बिक्री पर लगने वाले 28 लाख रुपये टैक्स में से घट जाता है।
यानि उसको 28'00'000=00 में से 6'32'500=00 (ITC) घटाकर 21,67,500=00 टैक्स सरकार के खाते में जमा करना होगा। इसका मतलब ये हुआ कि वो 1 करोड़ की बिक्री पर लगभग 21.67% टैक्स जमा कराने के लिए बाध्य है। हांलाकि उसे ये पैसा अपनी जेब से नहीं भरना, अपने देनदारों से ही लेना है जो कि कम से कम 3-6 महीने के उधार पर काम देते हैं। जिसके कारण 1 करोड़ की बिक्री की दशा में इसकी तिहाई रकम यानि 35 लाख रुपये सदा उसके ग्राहकों के पास ही रहेंगे।
इसका मतलब ये हुआ कि 21,67,500=00 टैक्स में से 35% पैसे यानि 7,58,625=00 का इंतजाम उसे अपने पास से ही टैक्स चुकाने के लिए हर वर्ष सदा करते होगा। आयकर के मुताबिक 1 करोड़ को बिक्री पर 8 लाख रुपये उसका शुद्ध लाभ बैठता है।जिसमें उसे 2.5 लाख रुपये डायरेक्ट छूट मिलेगी और 1.5 लाख की छूट उसे L I C इत्यादि में निवेश के लिए मिलेगी। अतः बाकी बचे 4 लाख पर उसे 10% यानि 40 हजार सालाना आयकर भरना होगा।
यानि 8 लाख रुपये में से उसके हाथ में अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए केवल
6,10,000=00 सालाना ही आ पाएंगे। जबकि वह सरकार को अपनी कमाई से लगभग 3.5 गुना ज्यादा बिक्री कर यानि
21,67,500=00 केवल अपने ही रिस्क पर एकत्रित कर चुकाने के लिए बाध्य होना होगा। क्या ये न्यायोचित है ? और तो और टैक्स विभाग उसकी उधार -वापसी की कभी भी कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा ।यदि उसका कोई ग्राहक किसी भी कारण से उसके बिलों का भुगतान नही कर पायेगा तो इसका खामियाजा भी उसे खुद ही भुगतना होगा।
यानि टैक्स विभाग उसकी डूबी हुई रकम वापस निकलवाने के में कोई भी मदद नहीं करेगा। यानि 100% जिम्मेदारी उद्यमी की ही होगी।
GST से पूर्व की स्थिति यानी VAT Tax System में वो 5% टैक्स पर कच्चा माल ख़रीदता था और 5% टैक्स पर ही माल बेचता था। जिससे उसे बिक्री पर 5 लाख टैक्स एकत्रित कर उसमें से 2.75 लाख ITC घटा कर 2.25 लाख टैक्स सालाना जमा करना होता था जो उचित था।
किन्तु अब इस नई अनाप-शनाप टैक्स व्यवस्था के कारण उसे पहले की तूलना में लगभग 10 गुना ज्यादा बिक्री कर(21,67,500=00) चुकाना होगा।
अब जरा कल्पना करें उस उद्यमी की जिस पर टैक्स विभाग का इतना प्रेशर सदा बना ही रहेगा। क्या वो स्वस्थ रह पाएगा, क्या वो ठीक से सो पायेगा, क्या वो अपना व्यापार सुकून से चला पायेगा।वो तो बस 12 महीने टैक्स कमाने के लिए ही कार्य करता करता चिंता में मर ही जायेगा।
यदि वो कुछ माह के लिए बीमार हो जाय व टैक्स न चुका पाये तो क्या उस बीमारी के समय के लिए टैक्स विभाग उस पर रहम करेगा।
यदि उसका व्यापार इस उच्च कर व्यवस्था के कारण चल ही ना पाये तो क्या सरकार उसको सहारा देगी।जबकि वो सरकार को टैक्स के पैसे कमा कमा कर कई वर्षों से दे रहा था।
अब जरा एक नजर डालते हैं हमारे देश के नौकरी करने वाले वर्ग पर, क्या 8 लाख रुपए की सालाना तनख्वाह पाने वाले कर्मचारी पर 40 हजार सालाना आयकर जमा कराने के अतिरिक्त कोई अन्य लायबिलिटी है ? जबकि उद्यमियों के ऊपर नौकरी करने वाले समान आय वाले वर्ग पर आयकर के अतिरिक्त 21,67,500=00 की बड़ी जिम्मेदारी भी है। जरा सोचिये कि इस उच्च टैक्स दर रहते क्या उद्यमी अपने कार्य को ठीक प्रकार से चला पाएंगे।क्या वो रात को ठीक प्रकार से निश्चिंत होकर सो पायेगा।
यदि वो अत्यधिक टैक्स दर होने के कारण व किसी अन्य कारण से अपना कार्य नही चला पाया तो क्या सरकार उसके परिवार का खर्च चलाने के लिए उसकी कोई मदद करेगी। यदि उद्यमी ये सोचे कि सब कुछ बेच कर उस रकम को बैंक में जमा कर कर शांति से बैंक के ब्याज पर गुजर बसर कर लूं तो वो भी अब संभव नही है।
क्योंकि सर्वप्रथम तो उसके द्वारा संपत्ति बेचने पर पूर्व व वर्तमान सम्पती की दर पर हुए लाभ में से 30% टैक्स आयकर विभाग हड़प लेगा।
और दूसरे बैंक में जमा पर आज इतना कम ब्याज दर है कि 50 हजार रुपये महीने बैंक से ब्याज प्राप्त करने के लिए उसे लगभग 70 लाख रुपया जमा कराना पड़ेगा, और उस पर फिर से 20 हजार रुपए सालाना का आयकर उसे देना होगा।
क्या ये GST टैक्स की उच्च दरें महगाई को घटा पाएंगी या अत्यधिक बढ़ा देंगी, जैसा कि सरकारी तंत्र के द्वारा ढिंढोरा पीटा जा रहा है ? इसके अतिरिक्त यदि हम टैक्स चुकाने की विसंगतियों पर गौर फरमाएं तो पाएंगे कि 8 लाख रुपये शुद्ध लाभ सालाना कमाने वाले उपरोक्त टैक्स के 4 वर्गों में विभक्त उद्यमियों को 1 करोड़ की बिक्री पर क्रमश निम्न कर सालाना चुकाना होगा।
28% टैक्स वालों को 21,67,500=00
18% " " 11,67,500=00
12% " " 9,25,000=00
05% " " 2,25,000=00
18% " " 11,67,500=00
12% " " 9,25,000=00
05% " " 2,25,000=00
कितनी अजीब बात है न इस नई टैक्स व्यवस्था में कि 4 लोग एक ही बिक्री के लिए अलग अलग टैक्स की रकम के देनदार हैं।ये तो मुख्य वर्ग हैं इनके अतिरिक्त एक ही बिक्री पर और भी कई टैक्स चुकाने वाले वर्ग इसी व्यवथा में मौजूद रहेंगे जिनके लिए कोई भी अधिकारी व नेता जवाबदेह नहीं होंगे।
हमारे देश के उद्यमियों का ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य रहा है कि इनकी कमाई पर मौज करने वाली 'हर सरकार' के नेतागण व उच्च अधिकारी उद्यमियों को ही चोर बताकर आयकर के नाम पर तो कभी बिक्रीकर तो कभी अन्य कारों के नाम पर न जाने कब से उनको लूटते आ रहे हैं, और आये दिन उनको ही धमकाते व डराते रहते हैं।
यहां तक कि उद्यमियों के संपर्क में आने वाले हर सरकारी विभाग में चपड़ासी से लेकर उच्च अधिकारी तक इन उद्यमियों का देश की आजादी के कुछ समय बाद से ही निरंतर उत्पीड़न व शोषण कर रहे हैं।क्या ये बात देश की तरक्की के नाम पर इन 'लोभी जनों' व 'सत्ता के भूखे शासकों' के द्वारा समय समय पर प्रसारित की जाने वाली किन्ही विचारधाराओं का अंधानुकरण करने वाले अंध-अनुयाइयों को समझ आ पाएगी ?
जो केवल और केवल हमारे देश के नागरिकों के बीच कभी धर्म के नाम पर, तो कभी जात-पात के नाम पर, तो कभी दलित और सवर्ण के नाम पर, तो कभी आरक्षण के नाम पर और अब गरीब-अमीर के नाम पर एक दूसरे के प्रति घृणा उत्पन्न कर उन्हें आपस में लड़वा कर उनके लिए वोट जुटाने का ही कार्य कर रही हैं।
यदि ये तथ्य आप सभी को समझ आते हैं तो इन लालची नेताओं के झूठे झांसों में न फंस कर अपने ही देश के उद्यमियों की वास्तविक स्थिति को समझ कर उनके द्वारा अपने देश के हितार्थ किये जाने वाले समस्त कार्यों का सम्मान करें व कृतज्ञता को महसूस करें।साथ ही वास्तविक रूप में देश के समग्र विकास व अन्याय के प्रति जागरूक रहें व एक दूसरे के साथ मजबूती के साथ खड़े होकर इन शोषण कर्ताओं को हतोत्साहित करें।
हमारे देश की सदा से यही व्यथा है कि हमारे देश की जनता में पूर्ण जागरूकता न होने के कारण हमारे देश की तीन मुख्य शक्तियों:- यानी किसानों को उपेक्षित किया जाता है,द्यमियों को लूटा जाता है, और रक्षा प्रहरियों को राजनैतिक उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए मरवाया जाता है।
अतः इस नागरिक का आप सभी देश वासियों से सच्चे हृदय से आग्रह है कि अपने देश में अमन, शांन्ति व सम्पन्नता को बनाये रखने के लिए केवल और केवल जागरूक रहें एवम छोटे छोटे अपने लाभों के लालच से ऊपर सत्य का साथ दें। साथ ही इस नागरिक का आप सभी से विनम्र निवेदन है कि यदि इस लेख में अनजाने में व अज्ञानता में कुछ त्रुटियों हुई हों तो इनके लिए क्षमा करें।"
-------------------------------------Narayan
"जयहिंद"
जयहिंद
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