"धूर्त से मूर्ख भला"
मूरख को सही समझ न होती,
दिल में पर कोई रंजिश न होती,
बूझजान कर कभी किसी को,
हानि स्वयं नहीं पहुंचाता है,
घिरकर स्वयं की नासमझी में, स्वयं को यूँ ही फंसाता है,
पर धूरत स्वार्थ सिद्धि में अपनी, किसी भी हद तक गिर जाता है,
रच रच कर षड्यंत्र रात दिन अनेकों,
सभी को हर पल सताता है,
अपनी बेअक्ली से मूरख,
जगत में खुद की हंसी उड़वाता है,
पर बन कर मित्र व साथी धूरत, पीठ में छुरा भुंकवाता है,
मूरख की दोस्ती बनती है केवल,
जी का ही जंजाल,
पर धूरत की नजदीकी लाती है,
अनेकों पीड़ाओं का बवाल,
मूरख की रक्षा करें, स्वयं "ईश्वर",
हर गलती पर सम्हाले "सर्वेश्वर"
मूरख को "वो" गले लगाते,
मूरख के दिल में "वो" बतियाते,
मूरख की मूर्खता "वो" हर लेते,
उद्धार मूरख का "प्रभु" हैं करते,
पर धूरत को कभी न मिलता,
"प्रभु" का कोई सहारा,
खुद की बिछाई चालों में फंसकर, धूरत हर काल में है हारा,
कहत 'कृपा', वो सब जन ज्ञानी,
नहीं हैं उनसा जगत में कोई सानी,
नित करे "प्रभु" 'भक्ति' ह्रदय में,
जो बन मूरख और अज्ञानी,
'ध्यान' 'सुमिरन' से कटे पाप सब,
'ईश वन्दन' से विकार हटें तब,
जब होता 'अंतस' उजियारा,
तभी मिले 'परम' का 'अन्तः द्वारा'।"
----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
'अनुभूति'-44 (04-04-19)
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