· "बुढापा"-'एक सच्चा शिक्षक'
"हम सभी प्रतिदिन स्वयं के व अपने चारों ओर रहने वाले आस पास के लोगों के स्थूल शरीर की आयु को शनै शनै बढ़ता हुआ देखते रहते हैं।
और एक दिन वह भी आ जाता है जब हमारी 'जीवात्मा' हमारी देह को त्याग हमारे स्वयं के कर्मों के मुताबिक "परमपिता" के द्वारा सुनिश्चित की गई अवस्था में स्थित हो जाती है।
क्या हमने कभी चिंतन किया है कि मानव का बूढा होता शरीर भी हमें बहुत बड़ी शिक्षा देने के साथ साथ हमें नई आंतरिक स्थितियों के लिए भी तैयार करता है।
चाहे कोई "ईश्वर" को मानता हो या न मानता हो किंतु "परमेश्वरी" के द्वारा निर्मित यह मानव देह अपने 'सन्ध्याकाल' में भी हमको बहुत कुछ कहती व सिखाती प्रतीत होती है।
ये हम चिंतन करने जा रहे हैं लगभग 50-60 साल के बाद के शरीर की अवस्थाओं की जो हमें "प्रभु" की शरण में समर्पित होने की ओर इंगित कर रही है।
यह देखा गया है कि इस आयु के दौर तक मानव अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए काफी भागदौड़ कर लेता है।
किंतु इस आयु के दौर के बाद मानवीय शरीर मानव की चेतना व जागृति के उत्थान के लिए कुछ लक्षण प्रगट करने प्रारम्भ कर देता है।जो मेरी चेतनानुसार नीचे दिए जा रहे हैं:-
1.सबसे पहले जो लक्षण प्रगट होता है वो है बालों का सफेद होना:-
हम सभी जानते हैं कि सफेद रंग शांति व आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यानि हमारे काले से सफेद होते बाल हमें यह बताने का प्रयत्न कर रहें कि, अब समय आ गया है कि दुनिया की दिखावटी चकाचौंध व विभिन्न प्रकार के सांसारिक आकर्षणों से हटकर कुछ समय निकाल कर "ईश्वर" से जुड़।
2.कमजोर होती आंखे:-
हमें यह बताने का प्रयास कर रही हैं कि अब न तो ज्यादा आंखे चला, न ही ज्यादा पढ़ और न ही बहुत दूर तक देखने का प्रयास कर। बल्कि वर्तमान में रहकर प्रतिदिन के 'सुमिरन ध्यान' के माध्यम से "प्रभु" को अपने ह्रदय में देखने का अभ्यास बना।
3. टूटते हुए दांत:-
यही बताने की चेष्टा कर रहे हैं कि दुनिया के विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का बहुत स्वाद चख लिया अब जिव्हा को 'अस्वाद' की आदत डाल ताकि तेरा चटोरापन सादे व सात्विक भोजन में परिवर्तित हो सके।जो तेरी आंतो व पाचन क्रिया से सम्बंधित समस्याओं से तुझको दूर रखने में सक्षम होगा।
4.घटती हुई सुनने की क्षमता:-
यह सन्देशा दे रही है कि अब बेकार की निर्थक बाते, किसी की बुराई की बाते न सुनकर अपने मस्तिष्क(आगन्या) में निरंतर चलने वाले 'नाद' यानि 'शबद' को सुनने में ही मन लगा ताकि 'प्रभु-ध्यान' में उतरने में आसानी हो।
5.क्षीण होती स्मरण शक्ति:-
हमें बताती हैं कि गुजरी हुई मान-अपमान, अहंकार, प्रतिशोध, ईर्ष्या, घृणा, ऊँचनीच, तेरमेर, प्रतिस्पर्धा आदि की मूर्खतापूर्ण बाते भूलकर भूतकाल की अच्छी अच्छी बातों व घटनाओं को ही याद रख ताकि हृदय सदा प्रफुल्लित रहे।
6.कृशकाय होता शरीर:-
हमें यह समझाना चाहता है कि बस अब ठहर जा, सांसारिक रूप से अपनी रोजी रोटी, उद्देश्यों, इच्छाओं व विभिन्न सांसारिक महत्वाकांशाओं आदि के कारण 'घोड़े' की मानिद काफी भाग लिया।
अब समय आ गया है कि इस शरीर के कार्यकाल के बाद की यात्रा की तैयारी के लिए कुछ वक्त निकाल कर कुछ अन्दरूनी कमाई कर ले जो तेरी 'उस पूर्व निश्चित यात्रा' में काम आएगी।
7.झुकती हुई कमर:-
हमारे अंतर्मन में फुसफुसाती हुई कह रही है कि सांसारिक प्राप्तियों व पदों के अहंकार में अटक कर तू सूखे तने की तरह सदा अकड़ा रहा है।
अब अपनी अकड़ त्यागकर अच्छे व सच्चे हृदयों के आगे झुकना सीख ले।
ऐसे मानवों का प्रेम व दुआएँ पाकर तेरे नकारात्मक कर्मों के परिणाम कुछ सुधर जाएंगे।जिनके कारण तेरे आगामी अनेको जन्म भी संवर जाएंगे
अन्यथा एक कोने में पड़ा पड़ा अपनी पीड़ा दायक मृत्यु की प्रतीक्षा ही करता रह जायेगा किंतु 'वह' भी तेरे पास आने से जी चुराएगी।
8.चेहरे व शरीर पर पड़ती हुई झुर्रियां:-
यह सिखाने की कोशिश कर रहीं हैं कि अब जो समय आया है उसे स्वेच्छा से स्वीकार कर। और अपने चेहरे व शरीर को कृत्रिम साधनों से चमकाने का लालच समाप्त कर अपने बदलते हुए स्वरूप की सत्यता को पूरी तरह स्वीकार कर समाधानी हो जा।
ताकि अन्य लोगों को आकर्षित करने व अन्य लोगों पर अपने व्यक्तित्व के खोखले प्रभाव जमाने के भ्रम से मुक्त हो भीतर वास्तविक संतुष्टि व शांति पा सके।
9.कुछ कदम चलने व कुछ श्रम करने की वजह से फूलती हुई सांसे:-
हमें प्रेरित कर रहीं है कि सांस फूलने के कारण रुकते हुए कदमो व कार्यों के साथ हम सभी अच्छे व बुरे लोगों के लिए अपने हृदय से दुआएँ देते रहें।
ताकि हमारे हृदय से निकलने वाली निस्वार्थ दुआओं से अच्छे लोगों का भला हो सके और बुरे लोगों के कर्म सही हो सकें।
इन दुआओं के प्रभाव से अच्छे लोगों को "ईश्वर" का मार्ग मिलेगा और बुरे लोगों के नकारात्मक कर्म फलों को निष्क्रिय करने के लिए उन्हें अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलेगी।
10.मन के विकारों के कारण उत्पन्न हुए शारीरिक रोगों के कारण उठने वाले विभिन्न दर्द:-
यह बता रहें कि तू हर 'कराहट' के साथ "प्रभु" को जपता चल ताकि तेरी यह पीड़ा "उनकी" भक्ति में परिवर्तित हो सके और "उनसे" तेरी निकटता बढ़ सके।
11.बढ़ती आयु के परिणाम स्वरूप बढ़ती हुई शारीरिक अक्षमताओं के कारण हृदय को आहत करने वाले निकट रिश्तों के ताने व शब्द वाण:-
तेरे मन में धीरे धीरे तेरे अपनो के मोह/शरीर के बंधन/ व सांसारिक लोभों से तुझे निर्लिप्त करते जा रहे हैं। ताकि जब भी तेरे प्राण निकलने का समय आये तो बड़ी ही आसानी से तू अपने शरीर को छोड़ कर अगली यात्रा पर निकल सके।
व किसी भी प्रकार की लालसा व लालच की गिरफ्त में न आकर उनके "श्राद" करने पर भी तू उस परिवार व उस घर में पुनः वापसी न कर सके।
12.शरीर में लगने वाले गम्भीर रोग:-
हमें संकेत दे रहे हैं कि "परमपिता" की ओर चलने वाली गाड़ी में अब हमारी बुकिंग हो चुकी है। अतः अब एक पल भी बिना गंवाए अगली यात्रा का प्रबंध करना प्रारम्भ कर दे।
यानि अपने अस्तित्व को "परमेश्वरी" के "श्री चरणों" में पूर्णतया समर्पित कर दे। अपने हृदय को 'इशभक्ति' से लबालब करके अपनी वाणी में मिश्री घोल ले।
ताकि तेरे निकट सम्बन्धी व परिजन तेरे बुरे व्यवहार को भुला कर तेरे को क्षमा कर सकें। और तेरे कटु व्यवहार से छुब्ध होकर तुझे कोसने के स्थान पर तेरी इस 'सुनिश्चित यात्रा' के लिए "परमात्मा" से प्रार्थना कर सकें व अपने हृदय से तेरे लिए लिए शुभकामनाएं प्रेषित कर सकें। जिनके प्रताप से तेरी यह अवश्य भावी यात्रा अच्छे से पूरी हो जाये।"
-------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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