"ज्ञान/अज्ञान"
"जो 'ज्ञान' 'पर-कल्याण' व मानव चेतना के विकास में मदद नहीं कर पाता वह हीरे के समान ही रह जाता है।
जिसे न तो किसी को दिया ही जा सकता और न ही इससे कोई अच्छा कार्य लिया ही जा सकता है।
हीरा जिसके भी पास होता है वह कभी भी उस हीरे का कोई वास्तविक व व्यवहारिक उपयोग नहीं कर पाता।
सिवाय इसके कि वह उसको अंगूठी में लगाकर अपनी उंगली में पहन करके अपने तथाकथित खराब 'ग्रह -नक्षत्रों' की दशा को ठीक करने का प्रयास करे।
अथवा आभूषणों में चिपका कर अपने शरीर पर धारण कर अपने सौंदर्य में चार चांद लगाकर आत्ममुग्ध हो कर अपनी आर्थिक सम्पन्नता का प्रदर्शन करे।
यदि सूक्ष्मता से चिंतन किया जाय तो पाएंगे कि हीरे को अपने पास रखना व संग्रह करना हमारे सुप्त अहंकार का ही पोषण करना है।
इस प्रकार के हीरे समान ज्ञान से वह अन्य लोगों से प्रशंसा पा कर खुशी से फूला नहीं समाता है।
किन्तु दुर्भाग्य से अपने तथाकथित ज्ञान के प्रदर्शन से वह लोगों की प्रशंसा का पात्र बनकर अपने भीतर ही भीतर अपने अहंकार को ही प्रगाढ़ करता जाता है।
प्राचीन काल में हीरे से शीशे को काटने का कार्य लिया जाता था क्योंकि इसके कोण बहुत सख्त व नुकीले होते हैं।
इसी प्रकार से यदि किसी के पास हीरे समान अनुपयोगी 'ज्ञान' है। तो उसके भीतर भी हीरे के समान अत्यंत कठोरता रूपी अहंकार व अत्यंत नुकीले कोण रूपी ईर्ष्या उत्पन्न हो ही जाती है।
---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
April 25 2019
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