"सूक्ष्म यंत्र का सत्य"
"पिछले साढ़े तीन वर्षों से अधिकतर सहजियों के बीच एक अवधारणा देखने को मिल रही है। कि तथाकथित सहजी होने/कहलाने के लिए दो चीजों का होना अत्यंत आवश्यक हैं।
1.प्रथम है 'माननीय मोदी जी' का अनन्य भक्त/कटिबद्ध अनुयायी होना।
2.और दूसरा है सहज संस्था के समस्त नियमों व प्रोटोकाल्स को कट्टरता के साथ विवेक-रहित अवस्था में रोबोट की तरह पालन करने वाला होना।
जब हमने इस प्रचलित अवधारणा के चलते अपने भीतर अवलोकन किया हैं तो पाते हैं कि हमारे भीतर इन दोनों प्रकार के गुणों का नितांत आभाव हैं।
तो हम चिंतन करने को मजबूर हो जाते हैं:-
कि इन उपरोक्त दोनों तथ्यों के मुताबिक हम तो अब सहजी रह ही नहीं गए हैं।
तो अपनी स्वयं की अंतरात्मा से प्रश्न करते हैं कि हम आखिर क्या बन गए ?
कहीं तथाकथित योगभ्रष्ट स्थिति में तो शामिल नहीं हो गए हैं ?
जिज्ञासु होकर अपने यंत्र की स्थिति देखते हैं कि क्या हमारे दोनों हाथों में चैतन्य आ रहा है ?
चेक करने पर अनुभव होता है कि दोनों हाथों की सारी उंगलियों के पौरवों पर चैतन्य की झनझनाहट हो रही है।
और साथ ही दोनों हथेलियों के बीचों बीच गोल गोल ऊर्जा घूमती प्रतीत हो रही है।
और फिर जब सहस्त्रार व मध्य हृदय को भी चेक करते है, तो अनुभव होता है कि सहस्त्रार पर एक आनंदायी खिंचाव व मध्य हॄदय में एक सुखद वैक्यूम बन रहा है।
तो फिर आश्वस्त हो जाते हैं कि हमारा यंत्र तो "श्री आदि शक्ति" से जुड़ा हुआ है और ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है।
किन्तु फिर भी हमारा चित्त उपरोक्त अवश्यभावी विशिष्ट गुणों पर जाता है कि ऐसे जुड़ाव की स्थिति होने पर भी उपरोक्त दोनों स्थितियों का हमारे भीतर आभाव क्यों है ?
तो हमारे अंतःकरण से उत्तर आता है कि हम तो केवल और केवल "श्री माँ" के बच्चे हैं। जिनकी चेतना पर किसी राजनेता व किसी संस्थाधिकारी का नहीं केवल और केवल "श्री माँ"का ही राज चलता है।"
-----------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
No comments:
Post a Comment