"क्या 'ओला' व 'उबर' टैक्सी आटो सेक्टर में मंदी के लिए जिम्मेदार हैं ?"
आज कल हमारे देश में वर्तमान व निवर्तमान(पिछली) सरकार की गलत नीतियों व तुगलकी फरमानों के कारण भयानक मंदी की मार चल रही है।
लगभग हर क्षेत्र के उद्योग बंदी के कगार पर आ खड़े हुए हैं जिसके कारण लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं और लगातार होते जा रहे हैं।
अभी हम बात करंगे केवल और केवल ऑटो सेक्टर की जिसमें 3.5 लाख लोग अपनी नौकरी गवां चुके हैं। दो तीन दिन पूर्व हमारी वित्तमंत्री ने ऑटो सेक्टर में मंदी व बंदी के ऊपर बड़ा ही हास्यपद बयान दिया।
उनके मुताबिक इस सेक्टर में मंदी का कारण 25-38 साल के युवाओं के द्वारा 'ओला' व 'उबर' टैक्सियों का इस्तेमाल है।
यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि उन्होंने बिना किसी अध्यन व समझ के बड़ा ही अजीबो गरीब बयान दे डाला जिससे उनकी समझ, योग्यता व उनके पद के ऊपर प्रश्न चिंह लग गया।
हम कोई अर्थशास्त्री, विद्वान, डिग्रीधारी व ज्यादा पढ़े लिखे तो हैं नहीं किन्तु फिर भी अपनी तुच्छ समझ के अनुसार इस मंदी के कारणों का विश्लेषण करने को ओर अग्रसर होते हैं।
सबसे पहले हमें समझना होगा कि ऑटो सेक्टर में कौन कौन से वाहन आते हैं।यह ऑटो सेक्टर मात्र कारों व दुपहिया वाहनों तक सीमित नहीं है।इस सेक्टर में ट्रक, बसें, ऑटोरिक्शा, कार्गो वैन, एम्बुलेंस आदि भी आते हैं।
अब जरा चलते हैं इस समस्या के मूल में जिसका प्रारम्भ पिछली सरकार के दवाब में पॉल्यूशन कम करने के नाम पर N G T ने 2015 में एक आदेश पारित किया था।
जिसके अनुसार N C R में डीजल चलित वाहन की आयु 10 वर्ष पेट्रोल चलित वाहन की आयु 15 वर्ष ही होगी, व देश के अन्य राज्यों में हर प्रकार के वाहनों की आयु 15 वर्ष होगी।
साथ ही 15 वर्ष बाद किसी भी वाहन के रजिस्ट्रेशन का पुनः नवीनी करण नहीं हो पायेगा।
इस आदेश के विरोध में अनेको याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डाली गईं जिनको कुछ अरसे बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के प्रभाव के चलते एक सिरे से नकार दिया और N G T के आदेश पर अपनी भी मोहर लगा दी थी।
इस आदेश की व्यवहारिकता व विसनागतियों पर हमारी छोटी सी समझ कुछ पर प्रश्न करना चाहती है।
1.सर्व प्रथम डीजल चलित वाहन की आयु NCR में 10 साल कर देना जबकि सरकार वाहन की खरीद पर 15 वर्ष का रोड टैक्स एक मुश्त लेती हैं।
तो क्या इस आदेश पर सरकार ने 5 वर्ष का रोड टैक्स वाहन मालिकों को वापस किया ?
2.जब दिल्ली क्षेत्र में हर तीन महीने में व देश के अन्य सभी क्षेत्रों में पॉल्यूशन टेस्ट हर छह माह में होता है। व सरकार इसका शुल्क भी लेती है तो फिर वाहनों के रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण में क्या परेशानी है ?
जब प्रदूषण व फिटनेस टेस्ट में वाहन ठीक हैं तो फिर उन समस्त ठीक वाहनों को कबाड़ में कैसे व क्यों कर परिवर्तित किया जाए ?
और यदि आयु के मुताबिक ही किसी भी वाहन को कबाड़ में परिवर्तित करना है तो प्रदूषण टेस्ट की आवश्यकता ही कहां रह जाती है ?
*यदि समस्त वाहनों को मात्र आयु के अनुसार ही नष्ट करना है तो फिर 'मानव संचालन विभाग' का भी निर्माण कर मनुष्य की भी आयु NGT, सुप्रीम कोर्ट व सरकार के द्वारा निर्धारित कर देनी चाहिए।
जिसके पूर्ण होने पर मानव या तो स्वयं मृत्यु को गले लगा ले अथवा उसको 'मानव संचालन विभाग' के द्वारा जबरन मृत्यु दे देना चाहिए।*
हमारे देश में उड़ने वाले हवाई जहाजों, पानी के जहाजों, हेलिकॉप्टर्स, लोकोमोटिव, स्टीमर, मोटरबोटस,ट्रैक्टर्स, रोड रोलर्स जैनरेटर्स पर भी यह नियम लागू होना चाहिए।
यह सब भी तो जैव-ईंधन से संचालित हैं। इन सभी पर ये नियम लागू क्यों नहीं हैं ?
वाहन प्रदूषण के अतिरिक्त और भी सैंकड़ो कारणों से पॉल्यूशन बढ़ रहा है क्या सरकार, NGT, सुप्रीम कोर्ट उन सभी के लिए जागरूक है ?
अभी एक माह पूर्व कांवर यात्रा चली जिसके कारण हरिद्वार से दिल्ली तक एक तरफ का मार्ग ट्रैफिक के लिए पूरी तरह बंद कर दिया गया।
इस पूरे मार्ग पर हजारों केम्प लगे हुए थे जिनमें बड़े बड़े डीजे बहरा कर देने वाली तीव्र आवाज में बज रहे रहे थे।
क्या इससे ध्वनि प्रदूषण नहीं होता ?
साथ ही इस कांवर यात्रा में हजारों धीमी गति से चलते हुए छोटे व बड़े ट्रक शामिल हुए थे उन पर भी बहुत बड़े बड़े डीजे सेट कर्ण फाड़ आवाज में बज रहे थे।
जिनको चलाने के लिए जेनेरेटर भी रखे हुए थे जो लगातार जहरीला धुआं उगल रहे थे।
आश्चर्य की बात यह है कि इन कानफाड़ू संगीत से साथ साथ पॉल्यूशन फैलाने की इजाजत स्वयम वर्तमान सरकार की पार्टी द्वारा मनोनीत उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने दी थी।
3.सरकार ठीक ठाक वाहनों को जबरन कबाड़ में परिवर्तित करवाने के स्थान पर उच्च कोटि का डीजल व पेट्रोल क्यों नही उपलब्ध करवाती जिससे बिल्कुल भी प्रदूषण न हो।
4.क्या यह गारंटी है कि बिल्कुल नया खरीदा गया वाहन प्रदूषण नहीं करेगा ?
5.यदि NGT व सरकार यह मानते हैं कि 10 व 15 साल पुराने वाहन प्रदूषण फैलाते हैं तो वाहन के मुख्य प्रदूषण कारक यंत्र यानी केवल इंजन बदलने का नियम क्यों नहीं बनाती ?
क्यों वह हमारे देश की जनता की गाड़ी कमाई को प्रदूषण के नाम पर बर्बाद करना चाह रही है।
6.पिछले एक वर्ष से सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन लाने के लिए वाहन कम्पनियों पर जोर दे रही हैं।
तो फिर सरकार ऐसा क्यों नहीं करती कि जिनके पास जो वाहन हैं उनको कबाड़ बनाने के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहन में परिवर्तित करवाने की व्यवस्था करे।
जैसे पिछली सरकारों ने डीजल बसों व कारों को CNG में परिवर्तित करने की किट लगवाने की परमिशन दी थी।
*इन सभी विसंगतियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में सरकार की मंशा प्रदूषण कम करने की नहीं वरन आम जनता को मजबूरी में नया वाहन खरीदवा कर 28% GST व रोड टैक्स से कमाना ज्यादा है।*
इन तथ्यों से गुजरने के उपरांत अब हम देखते हैं कि इस ऑटो सेक्टर में मंदी क्यों आ गई हैं। हमारे अनुसार इनके कुछ वाजिब कारण हैं जिसे वर्तमान सरकार अपनी ना समझी के कारण समझना नही चाह रही है।
A) सबसे पहले हम आम नागरिकों के दृष्टि कोण से देखेंगे:
अमूमन एक मध्य वर्गीय नागरिक चाहे वह व्यवसायी हो अथवा कोई अच्छी नौकरी करने वाला।
*यदि कोई गाड़ी अथवा दोपहिया वाहन खरीदता है तो वह उसे 5 साल तक के लिए फाइनेंस कराता है।
और जैसे ही किश्ते समाप्त होती हैं तो वह अक्सर उस गाड़ी/दो पहिया को बेच देता है और नया वाहन खरीद लेता है।क्योंकि रीसेल वैल्यू अच्छी होने के कारण ठीक रेट मिल जाते हैं।
तो इस प्रकार वह 15 साल के भीतर 3 वाहन खरीदता है जिसके कारण सरकार को रोड टैक्स व GST के नाम पर तीन बार टैक्स की राशि मिलती है।*
साथ ही वाहन बनाने वाली कम्पनी व वाहन के कलपुर्जों को बनाने वाले उद्योगों को भी लगातार काम मिलता रहता है।
और दूसरी ओर जब कोई नागरिक पुराना वाहन खरीदता है तो वह उस पुरानी गाड़ी में अपने अनुसार कुछ बदलाव लाता है वह कभी कभी वाहन की मरम्मत भी कराता है।
जिसके कारण वाहन के कलपुर्जे खरीदे जाते हैं और उन कलपुर्जो को बनाने वाले उद्योग भी चलते हैं।
इसके साथ साथ मिस्त्री को भी उनकी मजदूरी मिलती है जिसके कारण पैसा बाजार में भ्रमण करता है व लोगों को रोजगार भी मिलता है।
अब इस जबरन कबाड़ नीति के तहत आम नागरिक अपने वाहन को 15 साल तक अपने ही पास रखने की सोच रहे हैं जिस कारण से वाहनों की मांग तीन गुना घट गई है।
इनके साथ ही आम नागरिकों के द्वारा नया वाहन लोन न लेने के कारण बैंकों का कारोबार भी ठप्प होता जा रहा है और छोटे छोटे मिस्त्री व मेकेनिक बेरोजगार भी होते जा रहे हैं।
साथ ही हमारे देश में वाहन खरीदने वालों का एक ऐसा वर्ग भी है जिनकी आर्थिक दशा इतनी अच्छी नहीं होती है कि वे अपने पूरे जीवन काल में दूसरा नया वाहन खरीद सकें।
कुछ ऐसे बुजुर्गवार होते हैं कि जिन्हें गाड़ी चाहिए होती है किन्तु उनकी गाड़ी 10 साल में 40-50 हजार किलोमीटर ही चली होती है। तो भला ऐसे लोग अपनी गाड़ी को जो हर प्रकार से नई प्रतीत होती है कैसे कबाड़ कर सकते हैं।
B) ट्रांसपोर्ट व्यवसाय के नजरिये से:
अब हम आते हैं इस कबाड़ नीति के चलते टीन्सपोर्ट व्यवसाय बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ है। एक ट्रंस्पोर्टर एक ट्रॅक को कम से कम 10 साल के लिए फाइनेंस कराता है और किश्ते चुकाने के दौर के बाद जाकर वह कुछ कमा पाता है।
जहां तक हमें जानकारी है कि एक बड़े ट्रक की आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई थी और उसके बाद हर 5 साल में नवीनी करण की व्यवस्था थी।
किन्तु नए नियम के तहत अब उसका सही सलामत ट्रक 10 व 15 साल बाद बैन होने के कारण खड़ा हो चुका है अथवा कबाड़ में बेचा जा चुका है।
तो अब जरा कल्पना कीजिये कि वह बैंक लोन की किश्ते चुकाने के कारण ठीक प्रकार से कमा तक नहीं पाया है।
अब यदि वह अपने व्यपार को चलाना चाहता है तो उसे नया ट्रक खरीदना पड़ेगा और अपने किराए की दर अत्यधिक बढ़ानी पड़ेगी जिसके कारण हर प्रकार की वस्तुओं पर महंगाई अत्यधिक बढ़ जाएगी।
C) ऑटो व टैक्सी व्यवसाय की निगाह से:
इस वर्ग में आने वाले ज्यादत नागरिक आर्थिक रूप से अच्छे नहीं होते हैं वो एक प्रकार से जैसे तैसे कोई नया/पुराना ऑटो/कार खरीदते हैं। और स्वयं ही गाड़ी/ऑटो टैक्सी के रूप में चला कर अपना व अपने परिवार का लालन पालन करते हैं।
तो अब यह नया कानून इन लोगों पर अत्यंत भारी पड़ा है और इन लोगों को अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लाले पड़ गए हैं।क्योंकि उनकी तो नई गाड़ी खरीदने की हैसियत ही नहीं है।
अब पुनः आते हैं हमारी वित्त मंत्री जी के वक्तव्य की ओर कि हमारे देश के युवा जो 25-38 वर्ष के वर्ग में आते हैं 'ओला' व 'उबर' टैक्सियों का उपयोग करने लगे हैं।
तो हम उनके इस वक्तव्य पर मात्र इतना ही कहना चाहेंगे कि:
नोटबन्दी, अव्यवहारिक GST, साम्प्रदायिक घृणा फैलाने की राजनीति, पूर्व नियमों व कानूनों में अविवेकशील अमेंडमेंट, अव्यवहारिक वाहन आयु/कबाड़ नीति व वर्तमान सरकार के अनाप शनाप खर्चों के चलते पिछले 3.5 सालों में लाखों छोटे बड़े उद्योग बंद हो चुके हैं।
जिनके कारण करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं तो भला उद्योग बंदी व बेरोजगारी के चलते आम लोगों के पास पैसा ही कहाँ बचा रह गया है।
और ऐसी स्थिति में लोग नए वाहन कैसे खरीद पाएंगे। हमारे देश में 10% लोगों के पास देश का 70% धन है तो बाकी के 90% प्रतिशत लोग के पास मात्र 30% पैसा ही मौजूद है।
और वर्तमान पीड़ाकाल में हम 90% लोगों ने अपनी अत्यंत आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा रखी है तो भला नए वाहन खरिदने की हैसियत हमारे पास कहाँ से आएगी।
हमारे देश में ऑटो सेक्टर में चलने वाली मंदी के ऊपर यह चिंतन यात्रा किसी भी प्रकार की राजनीति व किसी भी राजनीतिक पार्टी से प्रभावित नहीं है।
अतः समस्त पढ़ने वालों से हमारा विनम्र निवेदन है कि कृपया इसे किसी भी प्रकार की राजनीतिगत दृष्टि से न देखें बल्कि देश के हित चिंतक के नजरिये से ही इसको लें।
हमारे इस लेख में यदि कुछ त्रुटि महसूस हो तो बुरा मत मानियेगा क्योंकि हमारी पढ़ाई लिखाई सरकारी स्कूलों में अत्यंत साधारण स्तर की ही हुई है।धन्यवाद।"
-----------------एक आम सामान्य नागरिक
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