"ध्यान एक माध्यम"
"जैसे रॉकेट का प्रयोग किसी भी 'उपग्रह' को उसकी कक्षा में स्थापित करने के लिए किया जाता है।
और जब वह उपग्रह अपनी कक्षा में स्थापित हो जाता है तो उस उपग्रह के लिए उस राकेट की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
इसके बाद वह उपग्रह उन सभी सूचनाओं को धरती तक पहुंचता रहता जिसके लिए वह तैयार किया गया।
ठीक इसी प्रकार से 'ध्यान' की बैठकों का उपयोग भी हमारी 'चेतना' को "परमात्मा" के साम्राज्य में स्थापित करने के लिए ही किया जाता है।
जब हमारी चेतना "परमपिता" से एकाकारिता स्थापित कर लेती है तो ध्यान की बैठकों की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है।
साधक/साधिका बिन ध्यान में उतरे ही ध्यानस्थ होते हैं और "उनके" सन्देश हृदय से ग्रहण कर सभी मानवों तक प्रसारित करते रहते हैं।"
-------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
06-11-2020
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