Friday, January 7, 2022

"Impulses"--560-- "ध्यान' की यात्रा"

  "ध्यानकी यात्रा "


"परमात्मा" के 'ध्यान' की यात्रा 'मन' से प्रारम्भ होती है और 'अमन' पर जा कर समाप्त हो जाती है।"*

यानि जब भी मानव "ईश्वर" की ओर चलने को तैयार होता है तो उसकी चेतना मन में स्थित 'संसार' के अनेकानेक विचारों से आच्छादित होती है।

इसके वाबजूद भी वह "भगवान" के विचार को अपने मन में अत्यंत श्रद्धा, तीव्र लगन सच्ची भक्ति के साथ धारण करता है और उनके 'अक्स'/'अस्तित्व' को अपने हृदय में महसूस करने का प्रयास करता है।

इस प्रक्रिया के दौरान यदि क्षण मात्र के लिए भी उसके भीतर 'पूर्ण समर्पण' घटित हो जाता है तो तत्क्षण "प्रभु" का चित्त उस मानव पर जाता है।

ऐसी स्थिति में उस मानव के हृदय में "परमपिता" का प्रेम अनुभव होता है जिसके परिणाम स्वरूप वह मानव कुछ पलों के लिए 'निर्विचार' हो जाता है।

यानि उस घड़ी में उसका 'मन' मिट जाता है यानि +मन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।"

--------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


11-11-2020

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