"दुःख भोजन के समान"
*एक 'पूर्ण जागृत' मानव के लिए दुःख भोजन के समान है और सुख अमानत की तरह है।*
"क्योंकि जो मनुष्य अपने जीवन में आने वाले समस्त प्रकार के कष्टों से उत्पन्न हुए दुख को सहर्ष स्वीकार कर शांत रहता है।
उसे "परमपिता" अपने हृदय में स्थान देते हैं और परकल्याण व उसके स्वयं के लिए अनेको शक्तियां भी प्रदान करते हैं।
इसीलिए यदि किसी भी कारण से दुःख मिले तो उसे भोजन की तरह चुपचाप ग्रहण करें और यदि सुख मिले तो उसे खुले हृदय से सुपात्रों के बीच बांट दें।"
----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
17-11-2020
No comments:
Post a Comment