"Seeking......)))))))"
This Blog is dedicated to the "Lotus Feet" of Her Holiness Shree Mata Ji Shree Nirmala Devi who incepted and activated "Sahaj Yoga", an entrance to the "Kingdom of God" since 5th May 1970
Friday, December 25, 2015
Wednesday, December 23, 2015
"Impulses"---266-- 'Merry Christmas' to all our Souls"
"Impulses"
'Merry Christmas' to all our
Souls"
"Forgiving is not
mere words but it is a happening within our Consciousness in the presence of
the Flowing 'Divine Energy' into our whole Being.
Because such an Affectionate Mother Energy erases the the scars
and stains of our 'Manah' (Mind) which were stagnated into our consciousness
long time back out of several kinds of Hurts.
When we surrender into our own existence before such a
Compassionate Eternal Entity into our Heart, only then we could be able to
forgive others.
So it is far and far better to bathe into this Divine Shower in
meditative state and feel like forgiving every one.
"Merry =Presence of Mother Energy and Christmas=
Elimination Process of Bad Stains and Scars of our Heart and Mind". So
Merry Christmas to all the Souls in real sense."
("क्षमा करना मात्र शब्द नहीं हैं, बल्कि ये हमारे भीतर बहने वाली 'ऊर्जा की दिव्य धारा' की उपस्थिति में हमारी चेतना में घटित होने वाली एक घटना है। क्योंकि यह 'वात्सल्यमई' ऊर्जा हमारे मन मस्तिष्क में लगी हुई चोटों व् उनके निशानों को मिटा देती है जो काफी अरसा पहले हमारे भीतर जड़ हो गए थे।
जब हम अपने ही भीतर में उस प्रेम-मई 'अलोकिक अस्तित्व के आगे नत -मस्तक हो जाते हैं केवल तब ही हम किसी को भी क्षमा कर पाते हैं। इसीलिए गहन ध्यान की अवस्था में क्षमा करने के भावों के साथ इस 'दिव्य वर्षा' में स्नान करना बेहद सुगम है।
'मैरी = मातृत्व से युक्त ऊर्जा की उपस्थिति और क्रिसमस = हृदय एवं मन-मस्तिष्क पर लगे हुए चोट व् उनके निशानों के मिटाने की प्रक्रिया। अत: सभी जीवात्माओं को मेरी चेतना की ओर से 'मैरी क्रिसमस' "
-----------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Monday, December 21, 2015
Sahaj Yoga(Video)--56--Deep Meditation- "E.H"--6---23-12-14
"Our Enlightened Attention can let us Enjoy Every Collectivity without our Physical Presence."
Thursday, December 17, 2015
"Impulses"---265
"Impulses"
1) "As per my Awareness Soul contains three things
within,
i) Spirit, as the medium of infusing energy to the Soul in the form of a cell does for toys.
ii) Kundalini, works as interacting or connecting cord between Spirit and Maa Adi Shakti.
iii) Human Awareness , works as Recurring Deposit to enhance human Consciousness related to all the three things including the knowledge of Almighty.
So souls is made for a cause like experiencing the joy of the Creation of "Almighty".
("मेरी चेतना के मुताबिक हमारी 'जीवात्मा' तीन चीजों से मिलकर कार्य करती है जो भीतर में ही स्थित होती हैं,
,i) हमारी आत्मा, एक माध्यम की तरह हमारी जीवात्मा को ऊर्जा प्रदान करती है जैसे कि एक सैल खिलोने को चलाने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
,i) हमारी आत्मा, एक माध्यम की तरह हमारी जीवात्मा को ऊर्जा प्रदान करती है जैसे कि एक सैल खिलोने को चलाने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
ii) हमारी कुण्डलिनी, हमारी आत्मा और "माँ आदि शक्ति" को आपस में जोड़ने वाली डोरी के रूप में कार्य करती है।
iii) हमारी चेतना, एक बैंक के 'रिकरिंग जमा खाते' तरह कार्य करती है जो इन तीनो चीजों व् "परमपिता" के प्रति हमारी 'जागृति' को बढाती जाती है। अतः हमारी 'जीवात्मा' "परमात्मा" के द्वारा रचित इस 'रचना' के अनुभव प्राप्त करने के लिए ही बनाई गई है।")
2) "There is a great difference between Ego Oriented and
Self Respect Oriented people as per my awareness, though they seem the same
apparently;-.
i) Ego Oriented always try to show off what he/she possess but
Self Respect Oriented always try to praise what others have and become modest
about what he/she inherited.
ii) Ego Oriented always try to let others down by back biting
while Self Respect Oriented try to high light others virtues and shows his/her
own short comings honestly.
iii) Ego Oriented always have hidden desire to receive things
from others but Self Respect Oriented try to give to others secretly without
propagation.
iv) Ego Oriented always try to dominate others by hook or by
crook but Self Respect Oriented usually serve for others humbly and
compassionately.
v) Ego oriented often become jealous by seeing others progress
even of his/her own near and dear and then try to give harm to them to let them
down out of comparison but Self Respect Oriented always becomes happy with
other's development and usually support them in their progress.
vi) Ego Oriented sits before 'God' and demands something out of
his/her work but Self Respect Oriented surrenders everything into 'Lotus Feet'
and never expect anything from 'Him' even in his worst
time."
------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Thursday, December 10, 2015
"Impulses"---264--"Regret"
"Impulses"
"Some of us often repent and some times we curse
ourself for committing mistakes which we had done in our past. Did we ever try
contemplation to understand those Past-Mental disposition of our mind which
was liable to make ourself doing the things which are being counted as mistake
after analysis and evaluation ?
Perhaps those were not mistakes in the Eyes of 'Divine', He gave
such kind of instinct into our mind to do what was influencing our consciousness to
balance some debts and Credits of our previous Births at that time.
Actually "He" is the Director of this Great Episodes
of Human Lives, "He" make us do what "He" wants to infuse some interest
in 'His' Great Show of this 'Creation. So just try to go beyond all kinds of
Negative and Self Destroying Regressive' Thinking and enjoy present moment of
'His' Play with great charm and Zeal."
(हम में से कुछ लोग अक्सर अपने भूतकाल में की गई गलतियों के लिए स्वम् अपने को कोसते हैं और बहुत पछतावा करते हैं। क्या हमने कभी अपनी भूतकाल की उस मानसिक स्थिति को समझने के लिए चिंतन किया है जो हमारे द्धारा किये गए सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार थीं जो बाद में विश्लेषण व् आंकलन करने के बाद गलतियां मानी गईं।
शायद वो "परम" की निगाह में गलतियां नहीं थीं। "उन्होंने" ही हमारे मन में उस प्रकार के कार्य करने की प्रेरणा दी कि जो हमारी जागृति को प्रभावित कर रहे थे ताकि हमारे पूर्व जन्म के कर्ज व् उधार चुकता हो सकें।
वास्तव में "परमात्मा" मानवीय जीवनों के महान 'एपिसोड' के निर्देशक हैं। "वही " हमें उन सभी कार्यों को करने के निर्देश देते हैं जो वो चाहते हैं जिससे "उनकी" इस रचना के "महान नाटक" में कुछ रुचियाँ डाली जा सकें।
अतः सभी को समस्त प्रकार की नाकारात्मक व् स्वम् को नष्ट करने वाली पछ्तावों की सोचों से परे जाने का प्रयास करना चाहिए और "उनके" इस नाटक के वर्तमान क्षणों का पूरी रूचि व् उत्साह के साथ का आनंद उठाना चाहिए। "
---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Wednesday, December 9, 2015
Sahaj Yoga(Video)--55--Deep Meditation- "E.H"--5--22-12-14
"We Reside into an Isolated I-Land of our Heart"
Monday, December 7, 2015
"Impulses"---263
"Impulses"
1)"What we seek within.....? Perhaps......Peace and Satisfaction which gives Strength and Joy to our Soul, but............., very often we do what gives more suffering and pain to our Soul out of the dominance of our mind which works on the basis of Action & Reaction.
What we keep into its memory it reacts only on it and what we
remember.........which has been past............... So how can a past becomes
our present............
As we can not eat the same bread which we had eaten earlier. So just think
about.......this is the only reason of our pain and anguish........just
contemplate and enjoy your present life."
(" हम अपने जीवन में क्या ढूँढ़ते हैं........? शायद.......शांति और संतुष्टि जो हमारी जीवात्मा को शक्ति व् सामर्थ्य प्रदान करते हैं,लेकिन .......अक्सर जो भी हम करते हैं वो हमारी जीवात्मा को और भी ज्यादा पीड़ा व् तड़पन देता है क्योंकि वो कार्य हमारे मन के अधीन होता है और मन क्रिया व् प्रतिक्रिया के आधार पर कार्य करता है।
जो भी हम मन की स्मृति के भीतर संचित करते हैं ये उसी संचित स्मृति पर अपनी प्रतिक्रिया करता है और जो भी हम याद करते हैं वो भूत काल ही होता है .........इसीलिए भूतकाल भला वर्तमान कैसे हो सकता है ..........जैसे हम यदि किसी भी रोटी को पहले खा चुके हों तो हम उसे दुबारा नहीं खा सकते। तो जरा सोचिये ........यही हमारी पीड़ा व् दुःख का कारण है ..........अतः थोड़ा चिंतन कीजिये और अपने वर्तमान का आनंद उठाइये।")
जो भी हम मन की स्मृति के भीतर संचित करते हैं ये उसी संचित स्मृति पर अपनी प्रतिक्रिया करता है और जो भी हम याद करते हैं वो भूत काल ही होता है .........इसीलिए भूतकाल भला वर्तमान कैसे हो सकता है ..........जैसे हम यदि किसी भी रोटी को पहले खा चुके हों तो हम उसे दुबारा नहीं खा सकते। तो जरा सोचिये ........यही हमारी पीड़ा व् दुःख का कारण है ..........अतः थोड़ा चिंतन कीजिये और अपने वर्तमान का आनंद उठाइये।")
2) “Enlightenment, not only provides us the capacity to see or
observe the right things in right manner around us but also it teaches us how
to put others in this process of their own Enlightenment.
It is an Endless Chain Reaction which is capable to spread the Light everywhere as a ‘Prism’ channelizes the rays of Sun, so an Enlightened Person becomes the ‘Prism of Divinity’.”
It is an Endless Chain Reaction which is capable to spread the Light everywhere as a ‘Prism’ channelizes the rays of Sun, so an Enlightened Person becomes the ‘Prism of Divinity’.”
("प्रकाशित होना न केवल हमें सही चीज को सही तरीके से देख पाने व् ग्रहण करने के की क्षमता को उपलब्ध कराता है बल्कि यह हमें दूसरों को भी प्रकाशित होने की प्रक्रिया में ले जाने का तरीका भी सिखाता है।
यह एक अन्त रहित प्रतिक्रिया है जो सारे संसार में 'ज्ञान के प्रकाश' को फैलाने में सक्षम है जैसे की "प्रिज्म " सूर्य के प्रकाश की किरणों को अनेको किरणों में परिवर्तित कर आगे बढ़ा देता है, इसी प्रकार से एक प्रकाशित मानव भी "दिव्यता का प्रिज्म" बन कर समस्त मानव जाति को लाभान्वित करता है।"
यह एक अन्त रहित प्रतिक्रिया है जो सारे संसार में 'ज्ञान के प्रकाश' को फैलाने में सक्षम है जैसे की "प्रिज्म " सूर्य के प्रकाश की किरणों को अनेको किरणों में परिवर्तित कर आगे बढ़ा देता है, इसी प्रकार से एक प्रकाशित मानव भी "दिव्यता का प्रिज्म" बन कर समस्त मानव जाति को लाभान्वित करता है।"
3) "There is no future in this world actually, it is just
nothing but an assume-nary term which hardly gives us mental satisfaction on
the basis of the calculation of previous data because what ever we think today
for next day, hardly happens as per our thinking, it is evident in our day to
day life. Only our Present is Truth which is happening around us every moment
in our life. So it is far and far better to relish
our present rather than worrying for Future."
("इस संसार में भविष्य नाम की कोई चीज नहीं है, यह कुछ भी नहीं है बस केवल एक मान्यता है जो हमें ठीक प्रकार से मानसिक संतुष्टि भी प्रदान नहीं कर पाती है और जो की मात्र हमारे मन के भीतर संचित गुजरे हुए पलों की गड़ना के ऊपर ही आधारित होती है।
क्योंकि जो भी हम आने वाले दिन के बारे में आज सोचते हैं वो हमारी सोचों के मुताबिक अक्सर घटित ही नहीं होता। यह हम सभी के दैनिक जीवन में परिलक्षित होता रहता है। केवल वर्तमान ही सत्य है जो हमारे जीवन के इर्द-गिर्द हर पल घटित हो रहा है। इसीलिए भविष्य की चिंता करने से ज्यादा अच्छा है की हम आने वर्तमान का भरपूर आनंद उठायें।"
-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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