This Blog is dedicated to the "Lotus Feet" of Her Holiness Shree Mata Ji Shree Nirmala Devi who incepted and activated "Sahaj Yoga", an entrance to the "Kingdom of God" since 5th May 1970
Thursday, July 30, 2015
Monday, July 27, 2015
"Impulses"---247
"Impulses"
1) “When and until we think that this Life is Ours then we
have to suffer a lot from different kinds of curses in so many ways and when we
realize that this life belongs to ‘Him” only then we feel the shower of
blessings upon us in countless ways.”
("जब तक हम सोचते रहते हैं कि ये जीवन हमारा है तब तक हम अनेको प्रकार के अभिशापों की पीड़ा को विभिन्न प्रकार से अपने भीतर महसूस कर तड़पते हुए जीवन यापन करते हैं, और जब हम ये महसूस करते है ये हमारा जीवन 'परमात्मा' की अमानत है तोा सदा अपने ऊपर 'परमपिता' के प्रेम के आशीर्वाद रूपी वर्षा को अपने अस्तित्व पर अनगिनत रूपों में बरसते हुए आभासित करते रहते हैं।")
2) “Some of us spend our whole life in collecting so many
worldly articles like and Ant collects and stores its food irrespective of
actual need.
Do we ever think sometimes that a Highly Evolved Creature like
Human is leading a life of an ant, which has the lowest level of Awareness.
The day often comes and all the collected food and ant sweeps
away in a Flood.”
("हम में से कुछ लोग अकसर अपना पूरा जीवन अनेको प्रकार के भौतिक सुख-साधनों को एकत्रित करने में ही गवां देते हैं।
जैसे एक एक चींटी पूरा अपना जीवन अपने लिए खाद्य पदार्थों के संग्रह में ही बिता देती है चाहे इतने ज्यादा भोजन को इक्कठा करने की उसे जरुरत भी न हो।
क्या हम कभी ये सब सोचते हैं कि सबसे उच्च उत्क्रान्तित अवस्था को प्राप्त हुआ मानव मात्र एक चींटी की चेतना के स्तर पर ही अपना जीवन यापन कर रहा है।
अक्सर एक दिन ऐसा आता है कि चींटी के द्वारा एकत्रित किया हुआ सारा भोजन व् स्वम् चींटी भी बाढ़ के पानी में बह जाते हैं।")
3) “The feeling of Prosperity and Adversity is nothing but a
state of our mind because of evaluation, analysis, and comparison, but feeling
of Joy is beyond all mental calculation which can existed even in the worst
situation and circumstances.”
("सम्पन्नता और विपन्नता का एहसास हमारे मन की मात्र एक स्थिति ही है जो तूलना , विश्लेषण और परिस्थियों की नाप तौल से उत्पन्न होती है। लेकिन आनंद की अनुभूति तो हमारे मन की समस्त जोड़ घटाने की क्षमता से भी परे की होती है जो हर प्रकार की बुरी से बुरी एवं खराब से खराब स्थिति और परिस्थितियों में भी बनी रहती है।
"
---------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Saturday, July 25, 2015
Thursday, July 23, 2015
"Impulses"--246
"Impulses"
1) “Our Gross Body and our Meditation both are the actual
companion to complete this difficult Journey of our Life, both of them have to
keep equal pace together.
If one is either fast or slow then the equilibrium will get
disturbed either by our poor Health or by our Negative Mental Disposition.
So, for both the things we are responsible and we have to take
care of ourself because ‘God’ hardly help us Directly.”
("हमारी स्थूल देह और हमारा ध्यान इस जीवन की कठिन यात्रा पूरा करने के लिए वास्तव में एक दूसरे के वास्तविक व् सच्चे साथी हैं, दोनों को इस सफर में एक साथ एक ही गति से चलना है।
यदि इनमे से कोई एक चलें में ज्यादा तेज होगा या धीमे होगा तो संतुलन बिगड़ जाएगा चाहे ये संतुलन हमारे खराब स्वास्थ्य के कारण बिगड़े हमारी नकारात्मक मानसिक स्थिति के कारन बिगड़े।
इसी लिए हम दोनों ही चीजों के लिए जिम्मेदार हैं और हमें अपने मन व् अपने स्वास्थ्य का पूर्णतया ध्यान रखना चाहिए क्योंकि 'परमात्मा' हमारी सीधे सीधे मदद नहीं करतें हैं।")
2)“We often use the ‘Hindi’ word “Santulan” (Balance) for proper
growth in meditation to maintain the ‘Equilibrium’ in our Materialistic and
Spiritual Life
.
This word ‘Santulan’ is made of two words, Sant+Tulan,
Sant=Saint, Tulan=Equivalent, means, the person who is in proper balance is
just like Saint,
Or to become Saint we have to maintain proper Balance and to
maintain balance we have to keep on realizing “Him” into our Heart all the
time.
and to feel "Him" into our being we have to maintain
the feeling of Energy at our Sahastrara and into our Central Heart all the
time. Because our Sahastrara looks after our Spiritual Growth while our Central
Heart takes care of our Materialistic Life”
("हम लोग अक्सर 'संतुलन' शब्द का प्रयोग करते रहते हैं जो ध्यान में ठीक प्रकार से उन्नत होने के लिए हमारे भौतिक व् आध्यात्मिक जीवन में उचित संतुलित रखने को दर्शाता है।
यह शब्द 'संतुलन' दो शब्दों से मिलकर बना है, संत + तुलन, संत = प्रभु को समर्पित, तुलन= तुलनीय, यानि जो व्यक्ति संतुलित है वो एक संत के समान है।
या संत बनने के लिए हमें अपने दोनों प्रकार के जीवनो में एक संतुलन बना कर चलना होगा और संतुलन बनाये रखने के लिए हमें "परमात्मा" को अपने ह्रदय के भीतर रहना होगा।
--------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Monday, July 20, 2015
Thursday, July 16, 2015
"Impulses"---245
"Impulses"
1) We can not hate to anybody’s Biological Unit, Spirit and
Soul because these are made by ‘God’ Himself but we can show hatred to all the
Evils of someone’s Manah ( Mind) which is generated by human only, because the
power of Intense hatred can burn the Evil of Other’s mind.”
("हम किसी की भी 'आत्मा','जीवात्मा' एवं हाड़-मॉस के बने शरीर से घृणा प्रदर्शित नहीं कर सकते क्योंकि ये तीनो चीजें स्वयं 'परमात्मा' के द्वारा बनाई गईं हैं। लेकिन हम किसी के भी मन की समस्त बुराइयों से घृणा कर सकते हैं क्योंकि ये मानव के द्वारा उत्पन्न की गईं हैं। तीव्र घृणा की शक्ति दूसरों के मन की बुराई को जला कर नष्ट कर सकती है।"
2) "The Extinction of 'Truth' can never be possible in
this world in spite of accumulation of all kinds of evil forces at one place
but Truth can easily eliminate all the Anti-God, Anti-Nature and Anti Human
activities quickly as a small flame of a Matchstick can burn the whole 'Vila'
into ashes within few minutes after converting into a Big Blaze.
If only Single Child of "Shree Maa" is keeping a Pure
Desire against all kinds of Brutality against
Innocence and Humanity then 'All Pervading Power' usually works through such a
True Child with full Rage.
But we are lots of Enlightened Souls, need to be Clubbed and
Connected together at Sahastrara and Heart Level for the extinction of Devilish
Mental Disposition to maintain a harmonious atmosphere on the whole Globe. For
this Noble Work we have to fix a time for attention work by making small-small
group of the Realized Souls as per the availability of time according to our
country. "
("इस संसार में सत्य को नष्ट नहीं किया जा सकता चाहे सारी के सारी 'बुराइयों की शक्तियां एक स्थान पर एक साथ एकत्रित ही क्यों ना हो जाए, लेकिन एक सत्य आसानी से समस्त 'परमात्मा-विरोधी, प्रकृति-विरोधी व् मानवता-विरोधी समस्त गतिविधियों को समाप्त कर सकता है। जैसे कि एक जलती हुई तीली एक बड़ी ज्वाला में परिवर्तित होकर समूचे महल को जला कर राख में परिवर्तित कर सकती है।
यदि केवल एक ही "श्री माँ" का बालक अपने हृदय में समस्त प्रकार की, बच्चों व् मानवता के खिलाफ क्रूरता को समाप्त करने की मात्र शुद्ध इच्छा भी कर ले तो 'सर्व-विदित' 'परमात्मा' की शक्ति ऐसे बच्चे के माध्यम से अत्यंत क्रोधित होकर उन बुराइयों को मिटाने के लिए कार्य करती है।
लेकिन हम तो अब बहुत सारी 'जागृत जीवात्माएं' हैं, पर हम सभी को इन समस्त प्रकार की 'राक्षसी' मानसिक वृतियों को नष्ट करने के लिए अपने सहस्त्रार व् हृदय में एक साथ जुड़ने की जरुरत है ताकि इस धरा पर एक आनंद व् सौहार्द का वातावरण बन रह सके। इस अनुपम कार्य के लिए हम सभी 'जागृत जीवात्माओं' को अपने- अपने देश के समय की उपलब्धता के अनुसार चित्त के माध्यम एक समय सुनिश्चित कर लेना चाहिए। "
3) “Our Life is just like a field which is provided by “God”,
to grow good crop as per our choice, it is up to us either we toil hard to
enjoy handsome returns or we keep on looking at other’s output and say,
Oh.......we have bad fate.”
("हमारा ये जीवन एक 'खेत' के तरह है जिसको 'परमात्मा ने हमें अच्छे से जुताई करके अपनी पसंद से अच्छी अच्छी फसलें उगाने के लिए ही प्रदान किया है। अब ये हम पर निर्भर करता है की हम अच्छा प्रतिफल पाने के लिए खूब मेहनत करें या हम सदा दूसरों प्रगति की ओर देखते रहें और कहें,
"अरे.……हमारी तो किस्मत ही खराब है। "
---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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