"Impulses"
1) "Today's life has become so mechanical and busy as we
could hardly spare some time for the preparation of our 'Next Journey' whereas
if we plan to go out of the town for two days, we usually start arranging
essentials which might be needed during the planned journey at least one week
prior.......just sit for few minutes peacefully and think about.......we know
the dates and day of two days journey but we are
not aware of the schedule of our Last Journey which might be spontaneous and
instant........Are we ready.......have we saved some money (Good Wishes and
Blessings) for this Sure-Departure."
("हम सभी का आजकल का जीवन अति व्यस्त व् इतना मशीनी हो गया है कि हम यात्रा की तैयारी के लिए नहीं निकाल पाते हैं जबकि यदि हम अपने शहर से बहार दो दिन के लिए भी जाते हैं तो हम उस सुनिश्चित यात्रा के लिए यात्रा के दौरान स्तेमाल होने वाले आवशयक सामान को एक सप्ताह पहले ही एकत्रित कारण प्रारम्भ कर देते हैं।
जरा थोड़ी देर बैठिये और शांति से सोचिये, कि इस दो दिवस की यात्रा की हमें दिन व् तिथि मालूम होती है लेकिन हमें अपनी उस 'अंतिम यात्रा' का कोई भी तिथि -चार्ट पता नहीं होता जो यकायक स्वतः ही घटित हो जाती है। क्या हम उस यात्रा के लिए आज और अभी तैयार हैं ? क्या हम उस सुनिश्चित-सफर के लिए कुछ धन बचा चुके हैं जो शुभकामनाओं व् आशीर्वादों के रूप में इस यात्रा में काम आने वाल है ?")
2) "If we depend on Borrowed Money and Borrowed Spiritual
knowledge then it becomes a burden over our consciousness which usually hampers
our growth in both the fields like Materialistic and Spiritual.
Because it decreases our potential and Capability slowly and
finally leads to inferiority Complex which often makes us susceptible to Severe
Depression which often convert into Aggression and aggression leads to Distorted
Mental Disposition which makes us Jealous and Bias of other,s Traits and
Achievements.
("यदि हम उधार के पैसे एवं दूसरों से उधार लिया गया आध्यात्मिक ज्ञान के ऊपर निर्भर करते हैं तो यह हमारी जागृति पर एक बोझ बन जाता है जो हमारी भौतिक व् आध्यात्मिक उन्नति को नुकसान पहुंचाता है।
क्योंकि यह हमारी विशेषताओं व् क्षमता को धीरे धीरे कम करता जाता है और अंत में हीं भावना की ओर ले जाता है जो अक्सर हमें गहरे अवसाद में धकेल देती है जो बाद में 'आक्रमकता' में परिवर्तित हो जाती है और आक्रमकता हमें विकृत मानसिकता की ओर ले जाती है जो हमें दूसरों के गुणों व् उपलब्धियों के प्रति ईर्ष्यालु व् प्रतिद्वन्दी बना देती है।")
-------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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