"वास्विक रिश्ते"
समस्त सत्य साधकों को एक दूसरे के साथ भावनात्मक रिश्ते बनाने के स्थान पर केवल और केवल आत्मिक रिश्ते ही बनाने चाहिए जो कि चिर स्थाई होते हैं, जो एक दूसरे को ऊपर उठाने में मदद करते हैं और कभी भी भला या बुरा नहीं मानते।
इस प्रकार की भावनात्मक निकटता एक दूसरे के जीवनों के दैनिक उपक्रमों में अत्यधिक लिप्तता को जन्म देती है और आवश्यकता से अधिक लिप्तता एक दूसरे के जीवनों की गतिविधियों में बाधा पहुँचाने लगती है।
ऐसी स्थिति में एक दूसरे के विचारों की विभिन्नता एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाती प्रतीत होती हैं और परिणाम स्वरूप भावनाओं के जन्म दाता मन में एक दूसरे के प्रति खटास उत्पन्न होने लगती है। जिसके कारण वो सहजी कुछ दिनों बाद अन्य लोगों के बीच अक्सर एक दूसरे की बुराई करते नजर आने लगते हैं।
यदि अनजाने में हम आत्मिक रिश्तों के स्थान पर भावनात्मक रिश्ते बना बैठते हैं तो वे लगातार घटित होने वाले नैसर्गिक परिवर्तनों व् अपनी अपनी चेतनाओं की विकास प्रक्रिया के कारण स्वम् के विचारों में आये बदलावों से उत्पन्न असहमति के आधार पर बिखरने लगते हैं और अक्सर अंत में टूट ही जाते हैं।
अतः सतर्क रहना चाहिए कि कहीं हम ध्यान-यात्री किन्ही सहज-यात्रियों के साथ भावनात्मक रूप से लिप्त तो नहीं हो रहे। यदि ऐसा हो रहा है तो ये बात निश्चित तौर पर समझ लेनी चाहिए कि हम कहीं न कहीं नीचे की ओर प्रस्थान करने लग गए हैं जिसके कारण जाने अनजाने में बना हमारा वो भावनात्मक रिश्ता भी निश्चित रूप से एक न एक दिन समाप्त हो ही जाएगा।"
------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
No comments:
Post a Comment