"आत्मसाक्षात्कार देना =सांस लेना "
"सहज योग में "जगृति" देना साँस लेने के ही बराबर है,जैसे जैसे आप
अपने सहस्त्रार से दूसरों को देते जाते हैं वैसे वैसे उन सभी की "माँ कुण्डलिनी" उनके सहस्त्रार पर आकर "माँ आदि शक्ति" से शक्ति प्राप्त कर
सबसे पहले आप ही की कुण्डलिनी को अपनी शक्तियां देती जाती है।
और आपकी कुण्डलिनी सशक्त होकर आपको उत्थान की ओर अग्रसर करने में आपकी मदद करती है।
यही नहीं जब जब वह व्यक्ति ध्यानस्थ होगा तब तब उसकी कुण्डलिनी आपकी कुण्डलिनी को ऊर्जा प्रदान करेगी,येसिलसिला आजीवन चलता
रहेगा। इसीलिए 'पाना देना है और देना पाना है'।
------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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