"विकल्प-एक भ्रम"
"जो भी हमारे जीवन में विपरीत परिस्तिथियाँ या कठिनाइयाँ आती है उसका एक मात्र कारण हमारा प्रारब्ध ही होता है। मेरी चेतना के मुताबिक उनसे बचने के लिए कोई भी नग-हीरा-पन्ना इत्यादि धारण करना अपनी परेशानियों के समय को और लम्बा करना ही है।
क्योंकि पूर्व जीवनो या वर्तमान जीवन में हमसे जो भी जाने अनजाने में प्रकृति या "परमात्मा" के विरोध में हुआ है, उनके नकारात्मक परिणामों को स्वेच्छा से स्वीकार करे बगैर प्रारब्ध हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा।
प्रतिकूल, विपरीत या कष्टकारी हालातों को जीने का सर्वोत्तम उपाय केवल और केवल निस्वार्थ भाव में "प्रभु" के ध्यान में मगन रहना ही है। यदि इन पत्थरों से वास्तव में मानव को लाभ होना होता तो कुदरत इनको हमारे जन्म से ही हमारी उँगलियों में चिपका कर ही भेजती।
"परमेश्वरी" हमें वही प्रदान करती हैं जो हमारे लिए हमारे कर्मो के अनुसार "उनकी" नजरों में उचित होता है। इन कीमती पत्थरों का उपयोग हमें केवल और केवल निर्थक विकल्पों की ओर ही ले जाता है और 'ध्यान-साधना' हमें 'निर्विकल्प' की ओर अग्रसर करती है जिसमें हमारी चेतना अथाह शांति, आनंद व् संतोष महसूस करती है।"
---------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
Jai shree mata ji
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