"निर्विकल्पता"
मन के जितने भी विकल्प होते हैं वे केवल और केवल वर्तमान में घटित होने वाली सत्य घटनाओं का सामना न करने व् यथार्थ से पलायन करने की प्रवृति को बढ़ाने का ही कार्य करते हैं ।
जो भी हम कर चुके होते हैं उसको पलटा नहीं जा सकता, अतः उस करे हुए कार्य के नकारात्मक परिणामों से बचने के लिए मन के विकल्पों को अपनाना, "श्री चरणों" में पूर्ण समर्पण से दूर ले जाने का ही कार्य करता है।
जिससे हमारे भीतर और भी ज्यादा अशान्ति उत्पन्न होती है और हम बिना बात के बैचैन रहते हैं और ये बैचैनी दीमक की तरह धीरे धीरे हमारे अनमोल स्वास्थ्य को निगल जाती है और हम वास्तविक रूप से कंगाल हो जाते हैं।"
---------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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