"क्षमा की कश्मकश"
"हम सभी साधक/साधिकाएं कभी न कभी अनेको प्रकार के आंतरिक संघर्षों से गुजर रहे होते हैं और जो सबसे लंबा संघर्ष का दौर हमारे भीतर चलता है वो है किसी को क्षमा न कर पाने का भाव।
एक तरफ हमारे भीतर सभी को क्षमा करने के लिए "श्री माँ" की वाणी गूँज रही होती है और दूसरी ओर हमारी चेतना ऐसे इंसानों को क्षमा नहीं करना चाहती जिन्होंने हमें सदा तकलीफ ही दी है।
ऐसे द्वन्द की स्थिति में समझ नहीं आता कि क्या करें।ऐसी स्थिति में हमें अपने भीतर झाँक के देखना चाहिए कि क्षमा न कर पाने का भाव कहाँ से उठ रहा है।
जरा देखने का प्रयास करें कि हम किसी को क्यों क्षमा नहीं करना चाह रहे हैं।कहीं ऐसा तो नहीं ये भाव हमारे मन से उठ रहे हों जिनमे कहीं न कहीं बदले का भाव छुपा है। ये बदले का भाव हमारे लिए घातक है।
क्योंकि किसी ने हमारे साथ कुछ भी बुरा किया वो कहीं न कहीं हमारे ही द्वारा पूर्व जीवन में किये गए कार्यों का ही परिणाम है जो कि इस जीवन में चुकता हो रहा है।
अतः बदले की भावना मन में रखकर इसके पूर्ण रूप से चुकता हो जाने में व्यवधान न उत्पन्न करे, खुले दिल से क्षमा कर पुराना हिसाब चुकता करें और चैन की सांस लें।
हाँ एक बात का ख्याल रखें की क्षमा करने के बाद शख्स से थोडा दूरी बना लें वर्ना क्षमा की उपयोगिता नष्ट हो जायेगी और हमें पुनः प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ेगा।
क्योंकि क्षमा का मतलब "प्रभु" के "श्री चरणों" में क्षमा किये गए मानव को अपने मन से हटा कर अर्पित करना है, पुनः उससे लिप्त होना नहीं है।"
---------------------------------Narayan
"Jai Shree Mat Ji"
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