"साकार पूजा या निराकार पूजा"
"प्रभु" की पूजा के दो ही पहलु होते हैं और वो हैं 'साकार' या निराकार,
साकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है,
'साकार'=सा+कार्य
यदि हम इन दोनों की संधि विच्च्छेद करें तो यह 6 वर्णो में परिवर्तित हो जाता है जो हमारे जन्म जात षट्-रिपुओं को मित्र में परिवर्तित करने का प्रतिनिधित्व करते हैं।
स+अ+क+अ+र+य,
i) स', स्वरूप को प्रगट करता है, 'स' मूलाधार चक्र का सुर है, जिसके अधीष्ठा "श्री गणेश" हैं, जिनका स्वरूप शास्वत व् अमर है, यानि जो प्रसन्न होकर हमें आशीर्वादित करने के लिए समय समय पर स्वरूप में भी प्रगट होते रहते हैं।
ii) अ', हमारी 'आत्मा' का प्रतिनिधित्व करता है,
iii) क, किये जाने वाले बाह्य कार्य को प्रगट करता है,
iv) अ, "श्री गणेश" के अविरल प्रेम-प्रवाह के घटित होने की स्थिति को दर्शाता है,
v) र, "उनके" प्रेम से उत्पन्न होने वाली शक्ति का प्रतीक है,
vi) य, योग यानि जोड़ को उदभाषित करता है,
यानि, "परमात्मा" की 'साकार' पूजा हम तभी कर पाएंगे जब "श्री गणेश" की शक्ति की अविरल धारा का योग हमारी आत्मा से हो जाए।
या हमारी आत्मा के भीतर "श्री गणेश" आभासित होने लगें तभी हम "देवी देवताओं" की 'साकार' पूजा करने की योग्यता प्राप्त कर पाएंगे।
और निराकार भी दो शब्दों के योग का परिणाम है,
यानि निरा+कार्य,
और संधि विच्छेद करने पर ये 7 वर्णो में विभक्त हो जाता है जो सातों चक्रो की सात अवस्थाओं को प्रगट करता है।यानि,
न+ई+र+अ+क+अ+र,
न=नगण्यता, चित्त को केंद्रित करने के लिए स्वरूप की आवश्यकता न रहना,
ई=शक्ति, की ऊर्जा के रूप में अनुभूति होना,
र=रमना, ऊर्जा की धारा में चित्त,चेतना, मन व् जागृति का डूबना,
अ=अन्तःकरण, का इस ऊर्जा-धारा से आच्छादित होना,
क=कार्यान्वन, सम्पूर्ण सूक्ष्म यंत्र में स्थित समस्त चक्रों, नाडियों का जागृत होकर कार्यशील होना,
अ=आत्मा, समस्त शक्तियों व् जागृत देवी-देवताओं की ऊर्जा से आत्मा का प्रकाशित होना,
र=रमण, आत्मा के प्रकाशित होने के उपरांत इस 'दिव्य सामूहिक ऊर्जा' का हमारे यंत्र से सर्वकल्याण के लिए बाहर की ओर बहना।
य=योग, ब्रहम्माण्ड की समस्त दिव्य विभूतियों व् शक्तियों में योग, यानि सामूहिक शक्ति का हमारे अस्तित्व से एकाकार होना।
यानि उपरोक्त सूक्ष्म घटनाएं हमारे अस्तित्व में जब घटित होने लगती हैं तब ही जाकर हम 'निराकार पूजा' से जुड़ने के योग्य हो पाते हैं।
या हम ये भी कह सकते हैं कि 'निराकार पूजा' में शामिल होने के उपरान्त उपरोक्त अनुभूतियाँ व् लक्षण हमारे भीतर आभासित होते हैं।"
--------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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