"Impulses"
1)यदि कोई भी आपके साथ बुरे से बुरा करता चला जाये व आपसे इर्ष्या भी करे और आप उसकी शकल भी देखना न चाहें। तो उससे नफरत करने की जगह उसके मन कि बुराई से खूब घृणा करे, कोई हर्ज नहीं है।
क्योंकि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं आपकी चित्त की तीव्र शक्तियां किसी भी घटना को अंजाम देंगी व उसके मन की बुराई को जलाकर राख कर देंगी। हमें किसी के शरीर , जीवात्मा व आत्मा से घृणा नहीं करनी है क्योंकि ये तीनो चीजें ही परमात्मा के द्वारा बनाई गयी हैं।
मन, मनुष्य के द्वारा अच्छी व बुरी भावनाओं से प्रभावित होकर किये जाने वाले कर्मो से ही निर्मित होता है।
अतः किसी के भी मन की बुराई के प्रति हमारे भीतर क्रोध व् घृणा जरूर होनी चाहिए, अन्यथा बुराई बढ़ती ही जाती है।
2)"हमारा अस्तित्व, संसार रूपी विशाल समुन्दर में तिरती हुई एक छोटी सी नैय्या के समान है। जिसमें न तो पतवार ही हैं
और न पाल ही लगा है। जो केवल और केवल समुन्दर की लहरों व् हवाओं के सहारे ही चल रही है।
अब ये इस सागर के रचयिता "प्रभु" की मर्जी है की वो इस नैय्या को डुबाये या पार लगाये। ये नैय्या तो अपनी तरफ से केवल शांति, संतुष्टि व् धैर्य के साथ अपने स्वम् के कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से पालन करते हुए अपने को समुन्दर के हवाले कर मुक्त हो सकती है।"
--------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
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