"मानव की आयु घट-बढ़ भी सकती है"
"अक्सर यह कहा जाता है कि जो भी मनुष्य "परमात्मा" से जितनी सांसे लिखवा कर आया है वह उतना ही जीवन जीता है।
किन्तु इस कथन के विपरीत हमारी चेतना एक सूक्ष्म सत्य को उजागर करना चाहती है। जिसके अनुसार सुनिश्चित साँसों के खाजाने में कमी भी आ सकती है और इस खजाने में वृद्धि भी हो सकती है।
यदि कोई मानव किन्ही कारणों से डर/अवसाद/अज्ञानता/अहंकार से परिपूर्ण होकर नकारात्मक चिंतन करने लगता है।
तो वह अनजाने में "रचनाकार" के विरोध में चला जाता है जिसके कारण उसके शरीर का संचालन करने वाले देवी-देवता, ग्रह-नक्षत्र व पंच महाभूत क्रुद्ध हो जाते हैं।
और उसके जैविक शरीर को रोग्रस्त कर मिटाना प्रारम्भ कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप वह अपनी पूर्व-निश्चित आयु को पूर्ण नहीं कर पाता।
और यदि कोई उच्च कोटि का मानव पूर्ण समर्पित भाव में "परमेश्वर" से एकाकार हो "उनका" 'प्रतिनिधि' बनकर जीवन यापन करता है तो "परमेश्वरी" अपना कार्य कराने के लिए ऐसे मानवों के जीवन के कार्यकाल को बड़ा भी सकती हैं।"
------------------------------------Narayan.
"Jai Shree Mata Ji"
28-05-2021
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