"'अभिव्यक्तिगत स्वातंत्र्य'"
"कल ही हमने अपने 11 मई 2017 का 'सहस्त्रार से ऊपर के चार चक्र' नाम का एक चिंतन फेस बुक के कुछ ग्रुप्स में शेयर किया।
उन सभी ग्रुप्स के काफी सदस्यों ने इस चिंतन को काफी पसंद किया यहां तक कि 'Shree Mata Ji-We are the Fruits of same
Tree' नाम के ग्रुप में,
तो शायद तीन घंटों के भीतर ही 425 से भी ज्यादा ग्रुप के सदस्यों ने 'Like' किया और अनेको सदस्यों ने कमेंट भी किया।
किन्तु हम इसके कुछ समय बात पाते हैं कि न जाने क्यों इस ग्रुप के एडमिन ने हमें ब्लॉक कर दिया जबकि यह पोस्ट तो विशुद्ध रूप से सहज के ही ऊपर थी।
हालांकि हमारी कभी भी यह रुचि नहीं रही है कि हम अपनी कोई भी पोस्ट Likes प्राप्त करने के लिए अन्य ग्रुप्स या अपनी फेस बुक वाल पर करते हों।
हम तो मात्र एक साधारण से यंत्र के रूप में "श्री माँ" की प्रेरणाओं को बस शब्दों की माला में पिरो कर आप सब तक बस प्रेषित ही करते हैं।
इससे चार पांच दिन पूर्व हमारी एक अन्य पोस्ट के लिए भी,जो इस विपदा काल में लोगों को राहत देने से सम्बंधित थी, पोस्ट करने के बाद कुछ ग्रुप एडमिनस ने हमें ब्लॉक कर दिया था।
किसी ने हमें ब्लॉक किया इससे हमें कोई परेशानी नहीं किन्तु बात यह है कि,
आप हमें अपने ग्रुप्स में शामिल ही क्यों करते हैं जब आपमें हमारे चिंतन को आत्मसात करने की क्षमता व सामर्थ्य ही नहीं है।
हमने कब आपसे आपके ग्रुप्स में शामिल होने की रिक्वेस्ट भेजी ?
क्या अपने ग्रुप्स में हमारे नाम को शीशे के शोकेस में सजाने जैसे के लिए शामिल किया था ?
क्या ये आपके ग्रुप्स आपके लिए एक साम्राज्य की तरह हैं जिसके आप तथाकथित राजा हैं ?
यदि आपने हमें अपने ग्रुप्स में शामिल किया है तो क्या हम ग्रुप में पोस्ट करने से पूर्व उस पोस्ट का मैटर आपसे डिस्कस करें ?
और फिर एक राजा की तरह आप हमें अपने ग्रुप्स में पोस्ट करने की इजाजत देंगे ?
इस प्रकार के मनोभावों से ग्रुप का संचालन करना आपके अहम की तुष्टि के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जो आपको मानसिक विकृति की श्रेणी में धकेल देता है।
और जिसमें आप ग्रुप्स के सदस्यों की चेतनाओं के आंतरिक ज्ञान पर अपना अंकुश लगा कर रखना चाहते हैं जैसे हमारे देश का वर्तमान प्रशासक हमारे देश के नागरिकों के साथ करता रहता है।
क्या आपके यह ग्रुप्स मात्र "श्री माता जी" के लेक्चर्स को शेयर करने, भौतिक जीवन से जुड़ी समस्याओं के लिए बंधन लगाने व भजनों का प्रसारण करने के लिए ही हैं ?
क्या आपके हृदय में कभी इस प्रकार की चेतना नहीं जागृत हुई कि सहजियों के आंतरिक उत्थान के लिए कुछ ग्रुप्स में व्यवस्था की जाय ?
क्या आप सभी "श्री माँ" द्वारा प्रदत्त अथाह ज्ञान सम्पदा के आधार पर सहज को नए आयाम नहीं देना चाहते ?
लगता है इस 'अदभुत' मार्ग का भी कुछ काल बाद वही होने वाला है जैसा पूर्व काल के अन्य मार्गों का हुआ,जो कट्टरता व कंडीशनिंग के बंधनों में आज सिसक रहे हैं।
यही हाल हमारे देश की समस्त सहज संस्थाओं का रहा है जहां सहजियों को गहनता में ले जाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है।
और अब तो पिछले 16 महीनों से सहज-संस्था की अवधारणा ही बदल गयी है।
आज केवल वही सहजी निर्भय व निश्चिंत है जिसने पिछले काल में हर प्रकार की कंडीशनिंग को त्याग कर अपने भीतर में उतरने का अभ्यास बना लिया था।
जो भी सहजी हमारे इस प्रवाह को पढ़ रहे हैं वे अपने सहस्त्रार से जुड़कर जरा कुछ देर के लिए अपने मध्य हृदय में चित्त रखकर चिंतन करके देखें।
और अपने भीतर में स्वयं प्रश्न करके देखें कि हमारा सामूहिक व व्यक्तिगत रूप से सहज की गहनता को बढ़ाने में क्या योगदान है ?
क्या हम अपनी स्वयं की व अपने से जुड़े हुए सहजियों की चेतना को उन्नत करने के लिए एक वैज्ञानिक की तरह क्या कुछ खोज पा रहे हैं ?
या हम रट्टू तीते की तरह "श्री माता जी" के लेक्चर्स रट रट कर अन्य सहजियों अथवा नए लोगों के सामने उगल देते हैं ?
या फिर 40 वर्ष पुराने तौर तरीकों की आज तक एक नकलची वानर की तरह नकल ही करते आ रहे हैं ?
या पिछले कई वर्षों से अभी तक तथाकथित 'नेगेटिविटी' से डरते हुए अपनी नाड़ियों के संतुलन व चक्रों की सफाई के मकड़जाल में ही रात दिन अपने को फँसाये रखते हैं ?
जैसे पिछले एक साल से अब तक एक तथाकथित 'विषाणु' से डरते आ रहे हैं ?
इसमें कोई शक नहीं कि आज का काल अत्यंत कठिन व विपदाओं से युक्त है।
किंतु यह भी सत्य है कि इसी दुरूह काल में मानव जिंदगी भी अपनी गति से चल ही रही है जिसकी पूरी की पूरी बागडोर "ईश्वर" के हाथों में ही है।
*किसके शरीर की मृत्यु इस काल में होगी और किसका शरीर इस विपरीत काल में भी बना रहेगा, ये तो हम सब की "रचयिता" ही जाने।*
*दुनिया की किसी भी भयानक से भयानक बीमारी में इतनी ताकत नहीं है जो "परमेश्वरी" की इच्छा के बिना किसी के जीवन को लील जाय।*
*और न ही किसी भी प्रकार के इलाज व दवा में इतनी शक्ति ही है जो किसी की पूर्व निश्चित मृत्यु को ही रोक सके अथवा टाल सके।*
*जब हमारा शरीर रूप में जन्म होता है तभी हमारे शरीर की मृत्यु सुनिश्चित हो जाती है।*
*यदि जन्म पत्री के आठवें खाने का गहनता के साथ कोई ज्योतिष शास्त्र का विद्वान अध्यन करे तो यह पता लगाया जा सकता है।*
*कि हमारे शरीर की मृत्यु कब/कहां/किस तरह/किस दिशा में/किस विधि/किस काल में सम्भावित है।*
इन दोनों ही कटु सत्यों को मद्दे नजर रखते हुए हम आप सभी के साथ कुछ बाते साझा करने जा रहे हैं।
तो हम आप सभी से यह कहना चाह रहे हैं कि, बचपन से बड़े होने तक हम व्यक्तिगत व सामूहिक स्तर पर अपने व अपने सम्पर्क के लोगों के साथ होने वाले अन्याय,उत्पीड़न,अनावश्यक दवाब के खिलाफ सदा लड़ते रहे हैं।
और यह संघर्ष आज भी निरंतर जारी है और "श्री माता जी" की कृपा से हमारे इस नश्वर शरीर के मृत होने के बाद भी मानव जाति के बने रहने तक हमारा यह संघर्ष सदा जारी रहेगा।
पहले यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से चला करता था किंतु अब इस संघर्ष ने दूसरा रूप ले लिया है।
अब यह 'साधना' के माध्यम से अत्यंत सूक्ष्म व आंतरिक हो चला है, जिसका स्वरूप वक्तव्यों व लेखन के रूप में समय समय पर आप सभी के समक्ष प्रगट होता रहता है।
हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारी चेतना की 'परवरिश' सन 1982 से 2008 तक हिमालय की गोद में 'माँ प्रकृति' के द्वारा होती रही एवं इसके साथ ही मॉर्च 2000 से हमारी इस परवरिश का सारा दारोमदार "श्री माँ" ने अपने "करकमलों" में ले लिया है।
जिसके कारण पिछले 38 वर्षों में हम अन्यों की भांति प्रचलित दुनियादारी व इसके तौर तरीकों को ठीक प्रकार से न तो समझ पाए और न सीख ही पाए।
जिसकी वजह से हम बहुत सी सांसारिक स्थितियों व परिस्थितयों को दुनिया के चलन के हिसाब से निभाने में अक्सर अपने आप को असमर्थ पाते हैं।
क्योंकि हमें चतुराई,चालाकी,लालच, डिप्लोमेसी,हिप्पोक्रेसी,मानवीय वृति,दिखावा,धार्मिक भेद भाव, ऊंच-नीच,अमीरी-गरीबी,आदि समझ ही नहीं आते।
हमारी दृष्टि तो किसी भी मानव की चेतना, 'जीवात्मा', 'आत्मा' व उसके हृदय में रहने वाले "परमात्मा पर ही होती है और इन्ही के आधार पर ही हमारी किसी भी मानव के साथ नजदीकी व दूरी होती है।
जो भी हमें इन्ही 'दिव्य विभूतियों' व "श्री माता जी" के द्वारा संस्कार मिले हैं उन्हीं के वास्तविक अनुभवों व अनुभूतियों के आधार पर ही सत्य व असत्य की समझ व परख होती है।
हमने इस संसार में धनार्जन, सुखसाधन जुटाने,नाम कमाने व धनसंचय करने व अपने परिवार का लालन पालन करने मात्र के लिए ही जन्म नहीं लिया है।
*बल्कि "श्री माँ" के दिखाए मार्ग पर चलते हुए सुपात्रों के लिए 'आत्मिक जागृति' के कार्य करने के साथ साथ,
मानवता,'प्रकृति' व "परमात्मा" विरोधी समस्त शैतानी,राक्षसी व नकारात्मक शक्तियों के साथ गहन-ध्यान अवस्था में स्थित होकर 'सच्ची प्रार्थना' व 'चित्त' की 'दिव्य शक्तियों' के द्वारा निरंतर युद्ध करना भी है।*
और अक्सर यह युद्ध वक्तव्यों/भावों व लेखन के माध्यम से आप लोगों के साथ साथ आम जन साधारण के समक्ष प्रगट भी होता रहता है।
जिसके कारण आप में से कुछ लोगों को आपकी पूर्व धारणाओं व पूर्व संस्कारों के कारण कभी कभी अरुचिकर भी लग सकता होगा।
इस अदृश्य युद्ध में हमारे साथ विश्व के अनेको उच्च कोटि के 'जागृत' मानवों के चित्त व चेतना सक्रिय रहते हैं।
इसके अतिरिक्त "परमात्मा" की सर्वश्रेष्ठ रचना यानि मानव जाति को हर स्तर पर बचाये रखने व इनकी चेतनाओं के विकास के लिए इन्हीं संसाधनों के द्वारा हम अपने स्तर पर निरंतर प्रयासरत भी रहते हैं।
हम क्या करें, शायद आप में से अनेको लोग यह समझ ही न पाएं, कि हम "परमेश्वरी" के द्वारा प्रदान किये गए इन सभी कर्तव्यों से बंधे हुए हैं और इन सभी का पालन करना ही हमारा परम दायित्व है।
*इसी कारण से न तो हमें किसी चीज के खोने का भय है और न ही किसी भी चीज को पाने की लालसा ही है।*
*हम जैसे मानवों को अपने देश/विश्व की किसी भी व्यवस्था व किसी भी 'तथा कथित राजा' के द्वारा कभी भी दास बनाया नहीं जा सकता।*
जब तक भी हम "परमात्मा" की इच्छा से इस देह में उपस्थित हैं तब तक अपनी अन्तर्निहत मौलिकता के साथ अपने देश/विश्व की समस्त बुराइयों के खात्मे के लिए लगातार सूक्ष्म रूप से कार्य करते रहेंगे।
जो भी लोग मानवता की निस्वार्थ सेवा के लिए सच्चे हृदय से किसी भी रूप में कार्यरत रहते हैं उन सभी उच्च कोटि की 'जीवात्माओं' के लिए इस चेतना का हृदय से नमन।
हम भी इस दूसरी लहर के चलते पिछली कई रातों व दिनों से निरंतर राहत व अंतः जागृति के कार्य में संलग्न हैं,बस हमारे कार्य बाहर से परिलक्षित नहीं होते हैं।
हर वर्ग के सहस्त्रों लोगों से जुड़े रहने के कारण अनेको लोगों की समस्याएं हमारे मोबाइल, फेस बुक, व्हाट्सएप्प,टेलीग्राम एप्प पर निरंतर आती रहती हैं और जो भी आंतरिक समझ के मुताबिक भीतर से आता रहता है उन्हें बताते रहते हैं।
पिछले 16 महीने से इस तथाकथित 'महामारी' के नाम पर चलने वाले इस वैश्विक/देशीय स्तर के षड्यंत्र,
व इस षड्यंत्र के लिए प्रयोग किये जाने वाले कृत्रिम रूप से तैयार किये गए इस 'विषाणु',
व इस 'विषाणु' को पूरे विश्व में फैलाने के लिए प्रयोग किये गए सभी साधनों का अच्छे से अध्यन कर रहे हैं।
साथ ही अनेको ऐसे विद्ववानों व वैज्ञानिकों की रिसर्च का भी अध्यन कर रहे हैं जिनके जरिये इसके प्रभावों को कम/निष्क्रिय किया जा सके।
जो हमें भीतर से ठीक लगता है वही बाते सभी से शेयर भी करते हैं ताकि अन्य लोगों को इस षड्यंत्र के जाल में फंसने से बचाया जा सके।
जो लोग भी इस षड्यंत्र के चलते पिछले 16 महीनों में काल कवलित हो चुके हैं उन सभी लोगो के लिए हमारे हॄदय में पीड़ा है।
और साथ ही जो लोग इस षड्यंत्र में फंस सकते हैं उन सभी को बचाने के लिए हम पूरी तरह कोशिश में लगे हैं।
अब आप ही बताइए कि, जब हमारी आंतरिक प्रकृति ही इस प्रकार की है तो फिर हम जहां भी होंगे,जिन मानवों से भी जुड़े होंगे,जिस ग्रुप में भी होंगे, शोशल मीडिया के जिस प्लेटफार्म को भी प्रयोग कर रहे होंगे,
हमारा तो बस केवल यही काम होगा कि जन साधारण को इन महादुष्टों के जाल में फंसने से किसी भी तरह बचाएं और साथ ही असत्य, षड्यंत्र, अन्याय, डोमिनेंस के खिलाफ दृढ़ इरादों व पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ संघर्ष करते रहें।
क्योंकि हम तथाकथित 'साक्षी भाव' में चुपचाप रह कर लोगों को इस बीमारी के चंगुल में फंस कर कालकवलित होता नहीं देख पा रहे हैं और न ही मानवता के खिलाफ चलने वाले अनेको षड्यंत्रों को ही चुपचाप सह पा रहे हैं।
*और एक बात और कि,न तो हम किसी भी राजनैतिक पार्टी के अनुयायी हैं और न ही किसी नेता के भक्त ही हैं,और न ही हमारी किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय व सहज संस्थागत राजनीति में कोई रुचि ही है।*
हम जब तक भी अपने इस शरीर रूप में विद्यमान हैं तो हमारी पहली प्राथमिकता केवल और केवल मानव के वास्तविक कल्याण यानि आध्यात्मिक उत्थान व मानवीय चेतना की उत्क्रांति के लिए ही हैं।
और हमारी दूसरी प्राथमिकता के दायरे में मानव मन की समस्त जड़ताओं व दासताओं से मुक्ति ही आती है जिनके कारण मानव सदा किसी न किसी कारण से दुखी रहता है।
और हमारी तीसरी प्राथमिकता है अपने देश व अपने विश्व को इन नरपिशाचों के प्रभावों से मुक्त कराना।
जो रात दिन किसी न किसी तरीके से ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन होकर आम लोगों के धन को अनेको षड्यंत्रों के माध्यम से लूट लूट कर खा रहे हैं।
यही नहीं अपने विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों के चलते ये मानव को अनेको प्रकार से भयभीत करके उन्हें गुलाम बनाने का घिनौना खेल भी खेल रहे हैं।
और सबसे भयावह स्थिति यह है कि अब तो ये सारे के सारे नरकासुर आदमखोर ही नहीं बल्कि शवखोर भी हो गए हैं जिनके कारण समस्त मानव जाति का अस्तिव संकट में पड़ गया है।
और हमारे साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हमारे डी एन ए में किसी भी प्रकार की दासता व जड़ता के कीड़े ही नहीं हैं।
जिसके कारण हम इस प्रकार से युद्ध करते हुए मर तो सकते हैं किंतु किसी भी 'सिस्टम' की गुलामी स्वीकार नहीं कर सकते।
जब तक भी हमारे देश व विश्व में इन शैतानी अस्तित्वों का प्रभाव रहेगा तब तक हमारी चेतना इस देह के साथ व देह को त्यागने के बाद भी निरंतर युद्धरत रहेगी।
हमें अक्सर ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपने हर जन्म में इन्ही आसुरी शक्तियों से लड़ते ही आ रहे हैं जो इस जन्म में भी जारी है।
यदि आपको हमारी बात समझ आ जाय तो ठीक, वर्ना इन सभी बातों को मूर्खता की श्रेणी में डाल कर और हमें पागल समझ कर भूल जाइएगा।
आपमें से यदि किसी को भी अपनी चेतना के विकास के लिए हमारे वास्तविक अनुभवों व अनुभूतियों पर आधारित ज्ञान की आवश्यकता अनुभव हो तो निसंकोच प्रगट कीजियेगा।
यदि किसी कारण से हमारा यह नश्वर शरीर न भी रहे तब भी यदि आप अपनी किसी आंतरिक परेशानी से घिर कर हमें पूर्ण हृदय से याद करेंगे।
तो हमारी अदृश्य चेतना आपको उक्त परेशानी से बाहर निकालने वाले एक एकदम नए विचार के रूप में आपके हृदय से यकायक प्रस्फुटित होने वाली प्रेरणा के रूप में प्रगट होगी।
वैसे यदि चाहें तो इस बात का एक तजुर्बा आप हमारे जीवित रहते हुए भी कर सकता हैं आशा है आपका यह तजुर्बा कामयाब होगा।
यह बातें पढ़ कर आपमें से कुछ लोगों को यह लग रहा होगा कि हम अपना प्रभाव जमाने के उद्देश्य से डींगें हांक रहे हैं।
तो कोई नहीं ऐसा ही समझ लीजिये अथवा इस तथ्य तो सत्य मानते हुए पूर्ण विश्वास के साथ रिक्त मन से एक दो बार इसकी प्रमाणिकता को अवश्य जांचिए।
शायद "श्री माँ" ने इस बात को आप सभी के समक्ष रखने का यही विपदा काल ही चुना है, इससे पूर्व तो यह प्रेरणा हमारे भीतर से कभी प्रगट ही नहीं हुई।
बाह्य रूप से हमारी परिस्थितियां
व स्थितयां आप सभी से काफी भिन्न हैं जिसके कारण हम बाह्य रूप से बहुत ज्यादा कुछ कर नहीं सकेंगे।
अंत में हम आप सभी व आप सभी के पारिवारिक सदस्यों, मित्रों व नजदीकियों के अच्छे स्वास्थ्य की हृदय से कामना करते है।
हमारी इस हृदयाभिव्यक्ति से गुजरने के लिए आप सभी के लिए हार्दिक आभार।"
-------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
नोट:-कृपया, वर्तमान प्रशासक की अंध भक्ति में लीन कोई भी मानव व मानसिक ज्ञान की जड़ता व दासता से आच्छादित अनुभव विहीन तथाकथित सहज अनुयायी हमारी किसी भी पोस्ट पर वाद विवाद करने व अपना किताबी ज्ञान बघारने की चेष्टा भी न करे।
वरना आपके किसी भी प्रश्न व टिप्पड़ी को बिना उत्तर दिए डिलीट करने के साथ साथ आपको ब्लॉक भी कर दिया जाएगा।
जिस किसी को भी हमारी पोस्ट्स पर आपत्ति जतानी है, प्रश्न करना है,टिप्पड़ी करनी है,मेहरबानी करके अपनी वाल पर करें ।
हमारे पास आपके अंधभक्ति रस से सराबोर मूर्खतापूर्ण
प्रश्नों व कंडीशनिंग में पगे हुए आपके जड़ मानसिक ज्ञान का उत्तर देने के लिए समय नहीं है।
अभी दो दिन पूर्व दो ऐसी ही महान शख्सियतें अलग अलग स्थानों व पोस्ट्स पर व्यर्थ का वाद विवाद करते हुए सहज की गरिमा व भाषाई सभ्यता को तार तार करती रहीं जिसके कारण मजबूरी में हमें उन दोनों को ब्लॉक करना पड़ा।
यह सब देख कर अक्सर हमें लगता है कि कुछ लोग सहज में आ तो जाते हैं किंतु उनमें सहज के तो छोड़िए जनरल एटिकेट्स तक नहीं होते वैसे वे अच्छी पढ़ाई लिखाई से युक्त भी होते हैं।
13-05-2021
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