"Impulses"
1) “If ‘I’ has come out of demand to full fill Natural Needs
and Requirements then it has appeared from Innocence as a child ask mother to
give food, is not harmful. But if it has originated out of ambitiousness which
usually comes out of comparison of our mind then it is fatal because it is
representing Ego.”
(यदि 'मैं' हमारे भीतर हमारी प्राकृतिक आवश्यकताओं व् जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रगट हुआ है तो यह अबोधिता से ही उत्पन्न हुआ है एक छोटा सा बालक अपनी माँ से खाना मांगता है और 'मैं ' प्रयोग करता है।
परन्तु अगर यह महत्वाकांक्षा से उत्पन्न हुआ है जोकि ज्यादातर हमारे की जाने वाली तूलना कारण जन्मा है तो यह घातक है क्योंकि ऐसी स्थिति में यह हमारे 'अहंकार' का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
")
2)"Gyaan (Pure Knowledge) is the outcome of 'Dhyaan' (Meditation), because in Meditative State we interact with our 'Originator' 'Who' has sent us here (On Earth) on some assignment.
So we receive the full Know-How about our tasks, only then we
could come to the Right Decision what should be done or what should not be
done.
For being in Mediation we usually get some information first
through some books or through some Guide Lines, given by Great Masters and
Incarnations at initial level.
But after some sincere practice of what is guided by Experienced
Ones we must rely upon our own internal knowledge rather than other's. As we
eat which is specifically suitable requirement and need of our Gross
Body."
("सच्चा ज्ञान ध्यान का ही परिणाम है क्योंकि ध्यान के दौरान हम अपने स्वयं के 'स्रोत' से मिलते हैं 'जिन्होंने' हमें अपने कार्य से भेजा है। इसीलिए हम 'उनके' द्वारा दिए गए कार्य की पूर्ण जानकारी 'उनसे' प्राप्त करते हैं, तभी हम सही निर्णेय ले पाते हैं की क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
ध्यान में उतरने के लिए सवर्प्रथम हम ध्यान का प्रराम्भिक सूचना हम कुछ पुस्तकों या सद -गुरुओं की वाणी के माध्यम से दिए गए निर्देशों से प्राप्त करते हैं।
लेकिन कुछ समय बाद पूर्ण गंभीरता व् लगन के साथ किये गए अभ्यास के द्वारा जो अनुभवी लोगों के द्वारा बताया गया है, हम अपने स्वयं के आंतरिक-ज्ञान पर विश्वस्त व् निर्भर होने लगते हैं। जैसे कि हम वही खाते हैं जो खास तौर पर हमारी शरीर के वास्तविक आवश्यकता के अनुरूप होता है।
"
-------------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata ji"
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