"एक संतान भगवान् की"
"परमेश्वरी" ने प्रसन्नता पूर्वक "अपनी इच्छा" से इस संसार की रचना की है और "श्री पार ब्रह्म परमेश्वर" के 'अंश' हम सभी को मानव देह में जन्म दिया है।
संसार को बनाये रखने की "उनकी" इच्छा का सम्मान करने के लिए मानव का कर्तव्य बनता है कि वह पूर्ण श्रद्धा,भक्ति,निष्ठा व समर्पण के साथ सन्तति प्राप्ति अवश्य करे।किन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है कि मानव को केवल एक ही सन्तान की कामना करनी चाहिए।
*क्योंकि एक सन्तान "ईश्वर" की इच्छा का परिणाम होती और एक से ज्यादा सन्तान केवल और केवल 'मोह' का ही प्रतिनिधित्व करती हैं।*
एक से ज्यादा बच्चे होने पर माता-पिता भी किसी न किसी के एक बच्चे के साथ जाने-अनजाने में भेद भाव पूर्ण व्यवहार कर ही देते हैं।और बच्चे भी आपस में किसी न किसी बात पर बचपन से बड़े होने तक झगड़ते ही रहते हैं। जिससे घर की शांति छिन्न-भिन्न होती रहती है।
यदि मानव अपनी एक संतान को केवल "भगवान" की अमानत मान कर उसका लालन पालन करे,तो न तो उस बच्चे के प्रति कभी मोह उपजेगा और न ही वह बच्चा भी कभी अपने आप को उपेक्षित महसूस कर पीड़ित ही होगा और अनावश्यक धनार्जन की लिप्सा भी न होगी।"
-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
23-11-2020
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