"परम से जुडना स्वसन जितना सरल"
"ईश्वर" से जुड़ने के लिए किसी भी प्रकार के बाहरी कार्यों व उपक्रमों की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
*"उनसे" सम्पर्क में बने रहना तो इतना आसान है जितना कि सांस लेना।*
जैसे 'श्वसन' एक स्वाभिक व स्वतः घटित होने वाली प्रक्रिया है जिसमें कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं होती।
ठीक वैसे ही "परमात्मा" को महसूस करना भी उतना ही सरल व सुगम है,
*बस जरूरत है तो केवल "उनको" अपनी चेतना में महसूस करने की।*
*यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कोई नन्हा बालक अपने 'माता-पिता' के बारे में सोचता रहता है व उनके स्नेह को अपने हॄदय में महसूस करता रहता है।*
"परमपिता" से एकरूप होने के लिए संसार में जितनी भी विधियां अपनाई जाती हैं वे मात्र मानव-मन को एकाग्र करने के लिए ही हैं।"
---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
04-12-2020
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