"सद् भाव ही ईश्वर को प्रिय "
"यदि हमारा मन, चित्त, चेतना,भाव व विचार सत्य के समर्थन व सहयोग में नहीं हैं।
या हम अपनी किसी भी कुंठा या हीन भावना के कारण गुपचुप तरीके से किसी सच्चे व्यक्ति को नीचा दिखाने की सोच भी रहे होते हैं।
*तो हमारी यह अन्तः स्थिति "ईश्वरीय विधान" के अनुसार निकृष्ट कर्मों की श्रेणी में आएगी। और इसी के मुताबिक ही हमें अपने कर्मफल भोगने ही होंगे।*
*क्योंकि "परमात्मा" तो हमारे हृदय के भीतर विद्यमान हैं जिनसे" हम अपनी मनोदशा व मनोभाव कभी भी छुपा नहीं सकते।*
फिर भले ही हम बाहरी रूप से कितने ही धार्मिक व कल्याणकारी कार्य ही क्यों न करते रहते हों।
*इसीलिए मन, वचन, कर्म व भाव में अंतर रखने वाले ऐसे व्यक्तियों के जीवन में अचानक बहुत सी तकलीफे व विपरीत स्थितयां आ धमकती हैं।*
और हमनें से अनेको लोग यह अक्सर कह उठते हैं कि,'अरे यह तो बहुत भले, नेक व धार्मिक इंसान थे फिर भी इतनी परेशानी में क्यों फंस गए।"
-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
09-12-2020
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