"विपरीताएं परिष्करण का माधयम"
"परमपिता" की अनुकंम्पा से जब भी हम "उनके" दिखाए मार्ग पर अग्रसर होते हुए 'ध्यान' में उतरना प्रारम्भ कर देते हैं।
*तो हमारे हृदय में 'आत्मज्ञान रुपी दीपक 'प्रज्वलित' होने लगता है जिसके परिणाम स्वरूप हमारे पूर्व जन्मों के नकारात्मक कर्मों के प्रतिफलों के संचित समस्त प्रकार के दुःख तकलीफ कीट पतंगों की भांति उस. 'प्रकाश' की ओर तेजी से निकल निकल कर आते रहते हैं व् नष्ट होते रहते हैं।*
ताकि समस्त पूर्व जन्मों के कर्मफलों का इसी जन्म में अंत हो जाये और हमारी जीवात्मा को मुक्त अवस्था हमारे जीवित रहते हुए ही प्राप्त हो जाय।
इसी लिए सदमार्ग पर चलते हुए कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए और न ही घबराना चाहिए क्योंकि समय समय पर स्वतः प्रगट होने वाली विपरीत स्थितियां व परिस्थितियां हमारे को परिष्कृत करने के लिए ही आ रही हैं।"
--------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
29-12-2020
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