'दर्प'
"दीवार पर सजे कंगूरे के 'दर्प' को देख कर दीवार से रहा नहीं गया,
बड़े दर्द में डूब कर दीवार ने कंगूरे से कहा,अरे एहसान फरामोश,जिनके त्यागों व मेहनत को भुला कर तू कंगूरा होने के गुरुर में इतना इतरा रहा है,
अपने अहम की हनक एंव अपनी सनक में तू, तेरे को ही सजाने वालों के लिए उल्टा सीधा बोल बोल कर उन्हें बात बात में बदनाम कर रहा है,
जरा होश में आ, दिमाग खोल के समझ कि तेरी 'औकात' कुछ भी तो नहीं है,
यदि तेरी जहरीली बातों की तकलीफ से मैं जरा सी भी हिली तो तू कुछ ही क्षणों में तुरंत जमीन पर गिरकर चूर चूर हो जाएगा,
तुझको पता है,कि मुझको भी मेरी नींव ने बड़े प्रेम व करुणा से थाम रखा है,यदि वो न होती तो मेरा भी कोई अस्तित्व न होता,
और नींव को भी उस धरा के टुकड़े ने अपने वात्सल्य से अपने हॄदय पर स्थान दिया है,
यदि उस धरा के टुकड़े को पीड़ा हुई तो वह भी अपनी जगह से खिसक जाएगी,
तब उस धरा का सरपरस्त उस नींव व दीवार को गिरा कर फिर से एक नई नींव रख देगा।और उस पर एक नई दीवार बना कर तेरे से भी अच्छे नए कंगूरे को उस दीवार पर सजा देगा।
होश में आ जा अपने अस्तित्व की नगण्यता को जान कर,अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाते हुए बदनुमा दाग बनने की जगह इमारत की शोभा बन।
मैं तेरे लिए "परमात्मा" से प्रार्थना करती हूँ कि तुझे कुछ सद्बुद्धि दे दें, अन्यथा तेरी घृणास्पद बातों के कारण मेरा व मेरी नीवं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।
तेरी बातों को मैं काफी लंबे अरसे से नजर अंदाज कर रही हूँ, और तेरी बातें मेरी नींव को भी कष्ट दे रहीं हैं।
यदि तू नहीं माना तो मुझे मजबूरी में तुझे गिराना पड़ेगा, यह मेरी तेरे लिए पहली व आखिरी चेतावनी है अभी भी सम्भल जा।"
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"Jai Shree Mata Ji"
14-02-2021
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