Monday, June 22, 2020

"Impulses"--530--"Invocation of the Powers of "Shree Kalki"-'An Urgent Need of this Present Time'


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"Invocation of the Powers of "Shree Kalki"-'An Urgent Need of this Present Time'


Today's situation of the whole Globe deteriorating day by day, all kinds of Devilish,Demonic,Pathetic and Brutal Activities are going on against Humanity, Nature even against "God".

The most painful and pitiable situation is being observed that Most of 'The Follower of Truth' too have been mesmerized & hypnotized by the Monsters and Devils.

Who are Spreading Hatred and Racism among all kinds of people especially in our Country. Those who love to restore the Peace and Harmony of our Planet Earth as well in our Country.

They must practice very sincerely to activate the Power of "Shree Kalki" into their Being to destroy Evils by their Pious Attention.

"As all of you would be aware of "Shree Mata Ji's" words about "Shree Kalki".

"She" told us that "Shree Kalki" would be the 10th Incarnation of "Shree Vishnu","Who" will be a 'Collective Incarnation', will apear at 'Sambhal Pur' with all The Destructive Powers of all the 'Eleven Rudras'.

Sambhal Pur means, Sam=Equal, Bhal=Forehead, Pur=Abode.

Means, "He" will appear Right from the Place of some Sahaj Yogi's Forehead where Forehead divides into Two Equal Segments.

We can call this place as 'The Third Eye' as we often see Angry "Shree Shiva" in some photos.

Or in some Mythological Movie Fictions in which "His" 'Vertical Third Eye' Opens and a Beam of Fire sprouts from it and Burns any Negative Existence into Ashes.

Perhaps some Sahajis too might be blessed with the Powers of "Shree Kalki" at their 'Third Eye'.

To destroy all kinds of Anti Human, Anti Nature and And Anti God Elements as well as to Eliminate all kinds of Negative Powers.

Now the question rises how can we attain such state that The Power of "Shree Kalki" could work through our Instrument.

As per my Internal Revelation and Feelings, "He" will manifest the Presence of "His" Powers.

When at least 11 Sahajis would Qualify some Parameters in their Beings. By completing the Coram of activation of the Powers of all the Eleven Rudras like:-

1.Feeling Uninterrupted Connectivity between Sahastrara & Central Heart all the time.

2.Have Doubtless Faith in "Shree Mata Ji",

3.Do Unconditional Surrender to "Shree Lotus Feet",

4.Have Endless Devotion for "Her" Desire,

5.Having Good Sensitivity Towards Truth ,

6..Have Anger and Annoyance for Injustice,

7.Detached from Wordly Affairs,

8.Free from Materialistic Desires,

9.Free from Confusions,

10.Free from Discrimination,

11.Free from All kinds of Conditioning,

12.Free from Wordly Inclinations,

13.Away from Emotions,

14.Away from Mental Contamination,

15.Away from Fanatism,

16.Non Demonstrative,

17.Full of Compassion,

18.Conditioning Breaker,

19.Heart Oriented,

20.Need Oriented,

21.Demand less,

22.Ambition less,

23.Non Racist,

24.Non Bias,

25.Non Religious,

26.Non Competitive,

27.Libral Hearted,

28.State Forward,

29.Uninfluenced,

30.Truthful,

31.Righteous,

32.Greed less,

33.Ego less,

34.Indifferent,

35.Fearless,

36.Simple,

37.Loving,

38.Joyous,

39.Happy,

40.Samadhani,

41.Innocent,

42.Rational,

43.Nirvikalp,

44.Honest,

45.Satisfied etc, etc.

For Invocation of the Power of "Shree Kalki, desirous and eligible Sahajis should follow few steps one by one when ever they feel like:-

a)Just go into Deep Meditation at least for 15 minutes and feel the Flow of Divine Energy into your whole Being.

b)And then keep your Whole Awareness at your Central Agnya, Right at the place of Third Eye.

c) Then take "Shree Kalki" into your Consciousness at least for 5 minutes and Pray to "Him" to provide "His" Power at the Middle of your Forehead.

d) When you will feel some Painless Pressure or Rotating Energy at right in the Middle of your Central Agnya then you may understand "His" Energy is there.

e) You should remain in this state at least for another 10 minutes there.

f) Then take some Evils/Evil Person/Persons/Places/Viruses into your Attention and request "Shree Kalki" to Eliminate all kinds of such Negative Elements.

g) And then Channelize 'Pure Energy' from your Third Eye to the Central Agnya of that person/persons/and to Evils/Places/Viruses with some Anger at least for 5-7 minutes.

h)Then you will begin feeling his/their Negative Reflexes like Burning Sensation at your Central/Right/Left Agnya or some Release of Hot Air from your Ears and all the three Agnyas or either anyone of these three Agnya.

i)You should keep continue channelizing Pure Energy when and Until you feel Coolness or Neutral State at your Limbical, Optical, Agnya and Cervical Regions.

All of you can set a time as per the Time Schedule of your Country to Practice very Dedicatedly with Pure Will to Invoke all The Powers of 'The Collective Incarnation' of "Shree Kalki" through your Instruments.

The Day will come when "He" will grant "His" Powers into our Attention.

And "His Powers" will begin doing "Their" Job of Destroying all kinds of Evil Forces as well as Evil Persons to save Humanity, Nature and Spirituality through your Attention."


-------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"



March 12 2020


Tuesday, June 9, 2020

"Impulses"--529--"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-7)


"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-7)


22.पथ विस्मृत सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले ज्यादातर सहजी वह होते हैं जो सहज में स्थापित होने से पहले अत्यंत निकृष्ट निम्न स्तर का सांसारिक जीवन जी रहे होते थे।

ये सहजी रात दिन दुख पीड़ा से विहल होकर आंसू बहाया करते थे और लगातार यह सोचा करते थे कि हे 'प्रभु' हमें इस नारकीय जीवन से कब मुक्ति मिलेगी।

यहां तक कि कभी कभी तो अपने उस काल के जीवन को सह पाने के कारण 'ईश्वर' से मृत्यु तक कि कामना करते हुए अपनी 'इह लीला' तक को समाप्त करने की भी अक्सर सोचा लिया करते थे।

क्योंकि उनके उस काल के हालातों के कारण उनको अपना जीवन पूर्णतया अंधकार से घिरा लगता था।

आस पास नजदीकी रिश्ते सर पर हर वक्त सवार रहते थे, भय के कारण मुख से पीड़ा शिकायत के शब्द निकालने की हिमाकत तक नहीं कर पाते थे।

वास्तव में उनका जीवन एक नरक के समान था जिसमें उनकी 'जीवात्मा' घुट घुट के जीती थी। यूं तो ऐसे सहजियों को "श्री माँ" के "श्री चरणों" में आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से आने का मार्ग तो मिल जाता है।

किन्तु "श्री माँ" के प्रेम को आगे बढ़ाने स्वयं को सहज में स्थापित करने का तो कोई राह सुझाई दे रही होती है और ही कोई ह्रदय में प्रेरणा ही प्राप्त हो रही होती है।

जब ऐसे सहजियों के ह्रदय से निरंतर उठने वाला कातर क्रंदन "श्री माँ" तक पहुंचता है। तो "वे" उन सहजियों की चेतना विश्वास को उन्नत करने के लिए कोई कोई सुंदर व्यवस्था अवश्य करती हैं।

"अपनी" उस व्यवस्था के चलते 'अपने' किन्हीं उपयुक्त यंत्रों से उन सहजियों का परिचय किसी किसी जरिये से अवश्य कराती हैं। जिनके स्वयं के अनुभवों के द्वारा उन सहजियों की आगे की सहज यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।

फिर वे सहज यंत्र बड़े अपने पन अपने निर्वाजय प्रेम से उन जीवन से निराश सहजियों को अपने अनुभवों के प्रकाश में आगे बढ़ने की निरंतर प्रेरणा देते हैं।

जिससे उन सहजियों को भावनात्मक आत्मिक अधूरापन समाप्त होने लगता है और वे अब कुछ प्रसन्न रहने लगते हैं।

 इन सभी बातों से प्रेरित होकर वे सहजी धीरे धीरे सहज की कुछ सूक्ष्मताएँ अपने यंत्र में अनुभव करना प्रारंभ कर देते हैं।  उनसे वर्तमान जीवन को सुंदर सार्थक बनाने का हौंसला भी निरंतर पाना प्रारम्भ कर देते हैं।

जब वे सहजी अपने में सहज की अनुभूतियों को अपने ध्यान में स्वयं अनुभव करने लगते हैं तो उनको अपने स्वयं के ऊपर कुछ विश्वास जमने लगता है।

तब वे यंत्र उन सहजियों को अपनी उपस्थिति में पब्लिक के बीच में सहज के बारे में बोलने के लिए प्रेरित ही नहीं करते वरन अपनी देखरेख में बुलवाना भी प्रारम्भ करवा देते हैं।

समय समय पर उन सहजियों के अनेकों प्रश्नों का उत्तर अपनी जागृति अपने अनुभवों के आधार पर देते रहते हैं जिनसे उनके भीतर उचित समझ विकसित हो सके।

धीरे धीरे वे यंत्र इन सहजियों के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार के पब्लिक कार्यक्रम भी अपने सामने स्वयं करवाना प्रारम्भ कर देते हैं।

इनके साथ साथ अपने स्वयं के कुछ अनुभवों को उन सहजियों के साथ शेयर भी समय समय पर करते रहते हैं ताकि उनकी चेतना का स्तर भी साथ साथ विकसित होता रहे।

एक समय ऐसा आता है जब उन यंत्रों के मार्गदर्शन सुझावों को अपनाते हुए वे सहजी आत्मसाक्षात्कार देने कुछ सहजियों को ध्यान करवाना स्वयं प्रारम्भ कर देते हैं।

जिससे उनका ह्रदय अत्यंत प्रसन्न होता है और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगता है और उनके भीतर की घुटन पीड़ा भी कम होने लगती है।

इन सहजियों के कार्यो को देख कर अन्य सहजी भी प्रसन्न होते हैं और कुछ नए सहजी भी इन सहजियों के साथ जुड़ने लगते हैं।

इन जुड़े हुए सहजियों के लिए भी ये यंत्र समय समय पर उन सहजियों की उपस्थिति में ध्यान आदि के कार्यक्रम भी करते रहते है जिससे जुड़े हुए नए सहजियों का भी बराबर उत्साह बना रहे।

इन सभी कार्यक्रमों के चलते नए जुडने वाले सहजी भी उन सहजियों को अत्यंत प्रेम सहयोग प्रदान करना प्रारम्भ कर देते हैं। जिससे उनके मन के भीतर में छुपी हुई समस्त प्रकार की पीड़ाओं की टीस घटने लगती है।

धीरे धीरे अपने जीवन से प्रताड़ित रहने वाले सहजियों को "श्री माँ" अपने यंत्रों के जरिये अच्छे से सहज में स्थापित करवा देती हैं और उनकी अनेको समस्याओं का निवारण भी कर देती हैं।

इन सभी सुंदर घटनाक्रमों के चलते उन सहजियों से कुछ समाज के उच्च विशिष्ट वर्ग के लोग भी मिलने लगते हैं। और उनके कार्यों की सराहना भी करते हैं जिससे आम समाज में भी उनकी एक पहचान बनने लगती है।

उनकी प्रशंसा उन लोगों के जुड़ाव के चलते उन सहजियों का ह्रदय गद गद होने लगता है, उनको लगता है कि "श्री माता जी" की उन पर असीम अनुकंम्पा होने लग गई है।

यह देख कर "श्री माँ" के 'यंत्र' भी प्रसन्न होने लगते हैं, और भीतर ही भीतर निश्चिंत होने लगते हैं कि अब ये सहजी आंतरिक रूप से दुखी पीड़ित नहीं रहेंगे।

धीरे धीरे इन सहजियों के ध्यान की शैली कार्यों की प्रशंसा सहज के कुछ सहज संस्थाधिकारियों तक भी पहुंचने लगती है और वे इन सहजियों से सम्पर्क स्थापित कर बातचीत करना प्रारम्भ कर देते हैं।

और इन सहजियों को उनके कार्यस्थल पर ध्यान केंद्र की देखभाल करने के लिए नियुक्त कर सहज संस्था से जोड़ देते हैं।

यह देख कर "श्री माँ" के वे यंत्र अत्यंत प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि जो भी सूक्ष्म गहन बातें उस सहजियों ने सीखी ग्रहण की हैं वे सभी चीजें अब संस्था के स्तर पर भी अन्य सहजियों के बीच जाएंगी।

इन सबसे उत्साहित होकर वे सहजी और भी जोर शोर से सहज का कार्य प्रारम्भ कर देते हैं और उनकी प्रतिष्ठा सहज समाज आम समाज में बढ़ती जाती है।

किन्तु इस प्राप्त होने वाली प्रतिष्ठा के कारण वे सहजी उसे अपनी उपलब्धि समझने लगते हैं और अब उनकी चेतना हर वक्त अपनी प्रशंसा बढ़ते हुए सम्मान की ओर ही आकर्षित होने लगते हैं।

और फिर उनके भीतर लंबे काल से अपने बाह्य अस्तित्व को प्रदर्शित करने प्रगट करने की उनकी दमित सांसारिक इच्छाएं भी अपना सर उठाने लगती हैं।

जिनके पूरा करने के उपक्रम में उन सहजियों का चित्त ध्यान में और ज्यादा गहन होने अपनी चेतना को विकसित करने के स्थान पर अपनी आधी अधूरी दमित इच्छाओं को पूरा करने में ही लगने लगता है।

धीरे धीरे हालत यह हो जाती है कि उनके ध्यान की गहनता सूक्ष्मता की समझ घटती जाती है।

जिसके परिणाम स्वरूप ये सहजी आत्मसाक्षात्कार का कार्य तो पुरानी पद्यतियों से करा देते हैं किंतु इनका स्वयं का ध्यान अब ठीक से लग ही नहीं पाता है।

और वे सहजी सहज कार्यों के धरातल का उपयोग केवल और केवल अपना स्वयम का विज्ञापन करने अपनी अतृप्त इच्छाओं की सिद्धि में ही करते जाते हैं।

इन सब आकर्षणों के चक्कर में ध्यान पूरी तरह पीछे छूटने लगता है और सहज सामूहिकता में, गहन ध्यान का स्थान, भव्यता, दिखावा, अत्याधिक भजन, सहज कर्मकांड प्रोटोकाल के प्रति जड़ता बाध्यता लेने लगते हैं।

सहज आम समाज में पहचान, प्रशंसा प्रतिष्ठा बढ़ने के कारण उन सहजियों को भ्रम होने लगता है कि वो जो भी सोचते हैं करते हैं वह हमेशा सर्वोत्तम सही ही होता है।

इन भावनाओं के चलते अब वो अपने साथ के पुराने सहजियों को, जो उनको निर्वाजय प्रेम करते थे।

उनको उल्टा सीधा कहना, उनको डांटना, बात बात पर उनसे बिगड़ जाना, हर हाल में केवल अपनी ही चलाना, बात बात में उनके दोष निकालना, उनकी चेतना पर शासन करने का प्रयास करना, सबके सामने छोटी छोटी बातों पर उनको अपमानित करना, उनके कार्यों अन्य सहज समुहिकताओं में शामिल होने पर अंकुश लगाना आदि आदि प्रारम्भ कर देते हैं।

और तो और यदि उस सामुहिकता के किसी सहजी ने अपनी आंतरिक प्रेरणा के आधार पर स्वेच्छा से इनकी आज्ञा के बिना अपने घर पर हवन/पूजा/ध्यान/आत्मसाक्षात्कार आदि का कार्यक्रम रख लिया तो फिर उस बेचारे सहजी की खैर नहीं।

उनके इस प्रकार के निरंकुश व्यवहार के कारण उनसे निर्वाजय प्रेम करने वाले अधिकतर सहजी दिली तौर पर ऐसे सहजियों से दूर होते जाते हैं।

यह सब देख कर उन सहजियों का मार्ग दर्शन सहयोग करने वाले 'यंत्र' उन सहजियों को अनेको प्रकार से समझाने का प्रयत्न करते हैं।

तो वे सहजी बड़ी चतुराई कूटनीति दिखाते हुए अपने उन 'यंत्रों' को उल्टा यह बताते हैं कि कई सहजी उनकी सफलता, नाम, पहचान प्रतिष्ठा से जलते हैं, इसीलिए वे शिकायत करते हैं।

साथ ही अपनी स्व निर्मित धारणाओं के चलते अपने उन 'यंत्रों' की बाते भी अब उनको बहुत बुरी लगने लगती हैं जो ऐसे भ्रमित सहजियों को वास्तविकता सत्य बताकर नीचे गिरने से बचाना चाहते थे।

उनके समझाने का बुरा मान कर अपनी नासमझी उथली समझ के अनुसार अन्य सहजियों के बीच अपने उन 'यंत्रों' की पीठ पीछे कमियां बुराइयां भी निकलना प्रारम्भ कर देते हैं ताकि अन्य सहजी उनको गलत मान बैठें।

उन सहजियों की विपरीत बुद्धि, उथलेपन दम्भ से आच्छादित चेतना के स्तर को देख कर वे 'यंत्र' भीतर ही भीतर कुछ दुखी भी होते हैं और हंसते भी हैं।

साथ ही सोचते भी हैं कि अब "श्री महामाया" ने अपने चंगुल में इनको पूरी तरह ले लिया है।

ऐसी स्थिति को समझकर वे यंत्र भी अब उनसे धीरे धीरे दूरी बनाना प्रारम्भ कर देते हैं ।क्योंकि वे समझ जाते हैं कि ये सहजी अब पूरी तरह दिग्भ्रमित हो चुके हैं।

घोर अज्ञानता अपनी अनियंत्रित इच्छाओं की गुलामी के चलते वे सहज सामूहिकता की अवश्यभावी मौलिकता संस्कृति को समाप्त कर वे अब सामूहिकता को अपने मनोरंजन के लिए 'क्लब संस्कृति' के रूप में परिवर्तित करते जाते हैं।

जिसके कारण जो भी नए लोग सहज योग से जुड़ते हैं वे भी सहज योग के गाम्भीर्य गहनता से वंचित ही रहते हैं। इतना ही नहीं ऐसे सहजी अपने इर्द गिर्द कुछ अधकचरे अधपके चापलूस किस्म के नए सहजियों को अपने साथ हर समय रखते हैं।

जो कुछ और नहीं केवल उनके तोते परिचारक की तरह ही व्यवहार करते हैं और समय समय पर सारी सामुहिकता के समक्ष उनकी महानता उच्च अवस्था की प्रशंसा शान में कसीदे भी पढ़ते हैं।

जो भी अच्छे गहन सहजी इनकी कुछ निम्न सहज विरोधी बातों से सहमत नहीं होते, ये सहजी झूठी-सच्ची बातों के जरिये अपने तोते रूपी सहजियों के खूब कान भरते हैं।

और उन अच्छे सहजियों के खिलाफ अभद्रता पूर्ण तरीकों से वो सभी भूतकाल की बाते कहलवाते हैं जिनका पता इन नए तोतों को होता ही नहीं हैं।और खुद पर्दे के पीछे रहकर सबके सामने महान शांति प्रिय न्यायप्रिय बने रहते हैं।

जबकि अपना खुद का भूतकाल ये लोग भूल जाते हैं कि खुद कैसा जीवन जी कर आज यहां तक पहुंचे हैं।

अपनी नासमझी की हनक में वे यह भी भूल जाते हैं कि इनके ही जैसी वर्तमान मनोस्थिति वाले सहज के तथाकथित ठेकेदारों ने इन्हें भी भूतकाल में खूब सताया था।

ये सहजी अपने को अपने बाह्य सहज के कार्यों के चलते भले ही कितना भी उच्च गहन दिखाएं। किन्तु हकीकत में ऐसे सहजी अपनी अज्ञानता अहम के चलते आध्यात्मिक स्तर पर वास्तव में आंतरिक रूप दिवालिया हो चुके होते हैं।

यदि इनको कहीं ध्यान कराना पड़ जाय तो ऐसे सहजी केवल और केवल अपने मस्तिष्क में संचित अन्य सहजियों के ध्यान के तौर तरीकों शब्दों में कुछ उलट फेर जोड़ तोड़ करके केवल नकल भर ही करते हैं।

क्योंकि इनकी स्वयं की चेतना अच्छे सहजियों के प्रति पूरी तरह अनेको प्रकार की दूषित भावनाओं के चलते पूरी तरह से कुंठित हो चुकी होती है।
यह चेतना इस प्रकार के 'पथ विस्मृत' सहजियों के अंततः कल्याण लिए "श्री माता जी" से विनम्र प्रार्थना करती है।

ताकि इनको सत्य का आभास हो और ये अपने व्यवहार,तौर तरीकों अपनी चेतना के स्तर का अवलोकन कर पुनः वास्तविक उत्थान मार्ग पर अग्रसर हो सकें।"

●"सहज योग कोई बाह्य उपक्रम फैशन नहीं है जो अन्य लोगों के सामने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के काम आए। यह तो हमारे आंतरिक शोधन परिष्करण की एक सामूहिक प्रक्रिया है।

जिसमें हम स्वयं भी परिष्कृत होते हैं और अपने से जुड़े एवम अपने परिचित लोगों के लिए उनके स्वेच्छा से परिष्कृत होने के लिए प्रेरणा भी बनते हैं।"●

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"Jai Shree Mata Ji"