Tuesday, August 27, 2019

अनुभूति'--45--"इश्क"


"इश्क"


"इश्क" होता है जिन्हें,


वो बड़े खुशनसीब होते है,


"अल्लाह ताला" के वो हकीकत में, बेहद करीब होते हैं,

इश्क, इश्क नहीं, तोहफा है "मालिक" का,

इश्क, इश्क नहीं सलीका है बस 'इबादत' का,

इश्क, 'गुफ्तगू--खुदा', इश्क बन्दगी है,

इश्क एक 'जुनून', इश्क एक 'तिशनगी' है,

इश्क एक हसीन ख्वाब, इश्क ही जिंदगी है,

इश्क की महरुमीयत, दिल की सिर्फ तंगदिली है,

इश्क एक मौज, इश्क एक दरिया है,

अरे इश्क ही 'जन्नत' में बने रहने का, एक अकेला जरिया है,

इश्क है संजीदगी, इश्क है एक वायदा,

इश्क ही तो है हर एक दिल को जोड़ने का एक कायदा,

इश्क ही जन्नत है, इश्क ही मन्नत है,

इश्क ही टूटे हुए दिलों की, करता मरम्मत है,

इश्क है रूहानी, ये जज्बा है तूफानी,

इसके बिन नहीं है किसी भी 'रूह' की 'रवानी',

इश्क की गलियों से जो गुजर नहीं पाता है,

हर वो शख्स मायूसी में ही अपना हर लम्हा बिताता है,

इश्क कोई मजाक नहीं, इश्क कोई खेल नहीं,

गर इश्क हो तो सारी कायनात में कोई मेल नहीं,

इश्क को दिल्लगी समझने वाले,


बड़े ही बद नसीब होते,

अपनी बेशकीमती 'आमद' को वो यूँ ही जाया करते हैं,


इश्क बिना ये जिंदगी है, बेमानी,

इसके जैसा नहीं है दुनिया में कोई सानी।"

---------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


'अनुभूति'-45

(08-05-19)

Wednesday, August 21, 2019

"Impulses"--503--"ज्ञान/अज्ञान"

"ज्ञान/अज्ञान"


"जो 'ज्ञान' 'पर-कल्याण' मानव चेतना के विकास में मदद नहीं कर पाता वह हीरे के समान ही रह जाता है।

जिसे तो किसी को दिया ही जा सकता और ही इससे कोई अच्छा कार्य लिया ही जा सकता है।

हीरा जिसके भी पास होता है वह कभी भी उस हीरे का कोई वास्तविक व्यवहारिक उपयोग नहीं कर पाता।

सिवाय इसके कि वह उसको अंगूठी में लगाकर अपनी उंगली में पहन करके अपने तथाकथित खराब 'ग्रह -नक्षत्रों' की दशा को ठीक करने का प्रयास करे।

अथवा आभूषणों में चिपका कर अपने शरीर पर धारण कर अपने सौंदर्य में चार चांद लगाकर आत्ममुग्ध हो कर अपनी आर्थिक सम्पन्नता का प्रदर्शन करे।

यदि सूक्ष्मता से चिंतन किया जाय तो पाएंगे कि हीरे को अपने पास रखना संग्रह करना हमारे सुप्त अहंकार का ही पोषण करना है।

इस प्रकार के हीरे समान ज्ञान से वह अन्य लोगों से प्रशंसा पा कर खुशी से फूला नहीं समाता है।

किन्तु दुर्भाग्य से अपने तथाकथित ज्ञान के प्रदर्शन से वह लोगों की प्रशंसा का पात्र बनकर अपने भीतर ही भीतर अपने अहंकार को ही प्रगाढ़ करता जाता है

प्राचीन काल में हीरे से शीशे को काटने का कार्य लिया जाता था क्योंकि इसके कोण बहुत सख्त नुकीले होते हैं।

इसी प्रकार से यदि किसी के पास हीरे समान अनुपयोगी 'ज्ञान' है। तो उसके भीतर भी हीरे के समान अत्यंत कठोरता रूपी अहंकार  अत्यंत नुकीले कोण रूपी ईर्ष्या उत्पन्न हो ही जाती है।

जिसके द्वारा अपने 'दर्प' के वशीभूत होकर वह भी अनेको भोले-भाले सीधे-साधे लोगों के कोमल हृदयों को हीरे की भांति चाक करता हुआ टुकड़े टुकड़े करता जाता हैं।"



---------------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"




Friday, August 16, 2019

"Impulses"--502--"सत्य/असत्य"





'सत्य' स्वयं "परमात्मा" का प्रतिनिधित्व करता है। और 'यह' समस्त देवी देवता, सद्गुरुओं गणों के द्वारा संचालित रक्षित होता हैं।
मानवता के हित में 'समस्त परमेश्वरी शक्तियां' 'इसे' स्थापित करती हैं।

'असत्य' को अक्सर भयभीत,भ्रमित लोभी मानव ही उत्पन्न करता है। और अपने अनुचित उद्देश्यों को साधने के लिए बड़ी धूर्तता चालाकी के साथ इसे संचालित कर स्थापित करने का प्रयत्न करता है।

किन्तु वह घोर अज्ञानता से घिरा होने के कारण नहीं जानता कि 'असत्य' को यही देवी देवता अनावृत कर इसे स्वयं नष्ट कर देते हैं।
असत्य के अनावरण में जो समय लगता है अथवा देर होती है।

वह केवल इस लिए होती है कि "परमपिता" ऐसे मानव को सकारात्मक रूप से परिवर्तित होने के लिए कुछ अवसर प्रदान करते हैं।

यदि वह परिवर्तित नहीं होता/होना नहीं चाहता तो फिर "वही" "भ्रांति देवी" की मदद से उसके समस्त षडयंत्रो को कामयाब होता अनुभव कराते जाते हैं।

और जब वह पूरी तरह सफलता के नशे में चूर हो जाता है तो फिर वह और भी ज्यादा 'प्रकृति'/"परमात्मा"/मानवता विरोधी कार्य तीव्रता से करता जाता है।

और अपने पापों के घड़े को स्वयम जल्दी से भर लेता है और अंत में "परमपिता" के द्वारा अत्यंत पीड़ा दायक सजा पाता है। उपरोक्त तथ्यों को केवल और केवल 'इशभक्ति' से जागृत हुई 'निष्पक्ष विवेकशीलता' के द्वारा ही समझा जा सकता है।

साधारण स्थितियों में आम मानव धूर्त लोगों की विभिन्न प्रकार की कपट पूर्ण विचार धाराओं की गिरफ्त में आकर आजीवन गुलामी करता हुआ स्वयं की 'आत्मा' की आवाज को नष्ट कर देता है।

जिसके कारण वह युगों युगों तक मानसिक गुलामी का शिकार होकर हर जन्म में अधोगति को प्राप्त होता है। 

'या देवी सर्वभूतेषु भ्रांति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः'

'सत्य की रक्षा करने के लिए "भ्रांति देवी" स्वयं अनेको भ्रमों का निर्माण कर अंत में असत्य को पूर्ण रूप से अनावृत कर देती हैं।'

"सत्यमेव जयते"

---------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

April 1 2019



Saturday, August 10, 2019

"Impulses"--501--· "निजता-अतिक्रमण"


· "निजता-अतिक्रमण"


"बहुदा सहजियो के बीच यह देखा गया है कि जब भी वे किसी ध्यान के कार्यक्रम के दौरान आपस में कहीं मिलते हैं।

तो एक दूसरे के आध्यात्मिक ध्यान-अनुभवों से लाभ उठाने के स्थान पर केवल भौतिक स्तर पर एक दूसरे के बारे में जानने के अत्यंत उत्सुक होते हैं।

और अपना अन्य सहजी का बेशकीमती समय इन मूर्खतापूर्ण प्रश्नों में व्यर्थ कर देते हैं।

बड़ा ही आश्चर्य होता है यह देखकर कि वो अपना सम्पूर्ण चित्त दूसरे सहजी के निजी जीवन निजी रिश्तों,निजी गतिविधियों निजी जिंदगी की बातों को जानने में ही लगाए रखते हैं।

ऐसे 'अर्धविकसित-चेतना-स्तर-धारी' सहजियों के द्वारा अक्सर अन्य सहजी से कुछ निम्न इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं, कि:-

आप क्या करते हो ?

आपकी जाति क्या है ?

आपके परिवार में कौन कौन सहज करते हैं ?

शादी हो गई या अभी होनी है ?

अभी तक क्यों नहीं हुई, क्या कारण हैं ?

क्या आपकी पत्नी/अथवा पति सहज में है ?

आपके कितने बच्चे हैं ?

आप जब आते हो तो बच्चे किसके पास रहते है ?

क्या आपकी पत्नी/पति/परिवार में सहज को लेकर कोई झगड़ा तो नहीं होता ?

आप अकेले रहते हो या कोई और भी आपके साथ है ?

क्या आपके पति/पत्नी आपके साथ नहीं आते ?

आप कैसे आये हो ?

किसके साथ आये हो ?

कितने बजे चले ?

कैसे यहां पहुंचे ?

चलने से पहले हमें क्यों नहीं बताया ?

कब तक के लिए यहां रहोगे ?

कहाँ ठहरोगे ?

किसके साथ जाओगे ?

इस कार्यक्रम के बाद कहाँ जाओगे ?

किसके घर रुकोगे ? आदि आदि।

ऐसा प्रतीत होता है कि हम आत्मिक रूप से जागृति के मार्ग पर चलने वाले मानव से मिल कर किसी सी.आई.डी अधिकारी से मिल रहे हैं।

जिसको हमारे सांसारिक जीवन के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है, और हम अपनी निजी जिंदगी के समस्त पहलुओं के बारे में बताने के लिए बाध्य हैं।

और यदि दुर्भाग्य से किसी सहजी का बाह्य जीवन अत्यंत संघर्षमई, कठिन विपरीत हो और वह गलती से ऐसे 'जासूस-प्रवृति' वाले सहजी को अपने जीवन के बारे में बता दे।

तो बस उसके बाह्य जीवन की बातें उस तथाकथित आत्मीय-सहजी के द्वारा आम कर कर दी जाती हैं और वह समस्त सहजियों के बीच नकारात्मक चर्चा का शिकार बन जाता है।

मेरी चेतना ऐसे समस्त सहजियों से निवेदन करती है कि यदि उन्हें इस प्रकार के प्रश्नों का सामना करना पड़े।

तो बिना विचलित हुए उत्तर देने के स्थान पर मौन हो जाएं और मुस्कुरा दें ताकि पूछने वाला समझ जाएं कि उनके प्रश्न निर्थक हैं जिनके वे उत्तर नहीं देना चाहते।

यदि फिर भी पूछने वाले आपकी प्रतिक्रिया को समझते हुए अपने प्रश्न जारी रखें। तब अत्यंत शांति धैर्य के साथ उनसे कहें, 'क्या हम थोड़ी देर ध्यान का आनंद उठाएं या ध्यान की बाते करें।

तो निश्चित रूप से वह पूछना बंद कर देंगे अथवा आपसे दूर चले जायेंगे।

वास्तव में जब दो सहजी समान पूरक चेतना-स्तर के होते हैं तो वे स्वत् ही अपनी आवश्यकतानुसार बिन पूछे ही आपस में कुछ अपनी बातें शेयर कर लेते हैं।

क्योंकि वे आंतरिक रूप से जानते हैं हैं कि दूसरा सहजी उनकी बातें समझेगा अपने अनुभवों के आधार पर उसकी उचित मदद करेगा।

किन्तु हमें किसी भी सहजी से उसकी जाति जिंदगी के बारे में पूछने का कोई अधिकार नहीं है। वास्तव में इस प्रकार की बातों को जानने पूछने की इच्छा हमारे स्वयम के निम्न चेतना स्तर को ही उजागर करती हैं।

बल्कि सच्चाई यह है कि इस प्रकार की बाते सहज विरोधी हैं साथ ही यह बाते हमारे आध्यात्मिक उत्थान के स्थान पर हमें पतन की ओर ही धकेल देती हैं।

हमको अपने अन्तःकरण में समझना होगा कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के उपरांत हम केवल और केवल एक जागृति की ओर उन्मुख 'जीवात्मा' ही होते हैं जिनको "श्री माँ" से जुड़कर 'परम लक्ष्य' हांसिल करना है।

अतः जितना भी समय हमें अपने आत्म-विकास के लिए मिले उसे व्यर्थ की बातों में व्यय करके उसका लाभ उठाना चाहिए।

और जितना हो सके एक दूसरे के वास्तविक अनुभवों आत्मज्ञान के माध्यम से स्वम् की चेतना को विकसित करने की ओर अग्रसर होते जाना चाहिए।

'जितना समय हम घोर अज्ञानता वश दूसरों के जीवन के बारे में जानने उन पर चर्चा करने में बेकार कर देते हैं। उससे काफी कम समय में हम अपने आंतरिक अस्तित्व को अपने संज्ञान में लेकर काफी उन्नत हो सकते हैं।'

'वास्तव में "श्री माँ" ने हमें आत्मसाक्षात्कार, हमारे अन्तर्निहित दिव्य अस्तित्व के बारे में जानने के लिए दिया है कि अन्यों के जीवन में ताका-झांकी करने के लिए।'

"एक जागृति की ओर चलने वाले मानव के भीतर में केवल और केवल एक ही वास्तविक जिज्ञासा होनी चाहिए।

कि 'मैं' कौन हूँ ?

मेरे जीवन का 'स्रोत' क्या है ?

मेरा वास्तविक उद्देश्य क्या है ?

मेरा अंतिम लक्ष्य क्या है ?"


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"Jai Shree Mata Ji"


23-03-19


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