Tuesday, March 29, 2016

Tuesday, March 22, 2016

"Impulses"-----277-- "आरजू-ए-जन्नत"-अनुभूति-35


 "आरजू--जन्नत"  

         "उनकी बाजुओं में मौजों की रवानी है,

उनकी पनाहों में ये रूह दीवानी है,


उनके पहलु में मिटने को जी चाहता है,


उनकी पलकों में रहने को दिल मचलता है,

उनकी निगाहों में दिल डूबने का करता है,

उनकी मुहबत की इन्तहा कहीं नजर नहीं आती,

उनकी ख़ामोशी मेरे, सारे जहां को है गुदगुदाती,

उनकी तबियत का ये नाचीज कायल हो गया है,

अब तो ये 'काफ़िर' हर ख़ुशी और गम से ही जुदा हो गया है."


--------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


Monday, March 14, 2016

"Impulses"--276--नकल एक अभिश्राप

नकल एक अभिश्राप 

 "कुछ सहजी अक्सर किसी दूसरे सहजी के द्वारा लिखि गई उनकी स्वम् की अनुभूति या उनके अनुभव को अपना नाम देकर किसी दूसरे व्हाट्स एप ग्रुप में या फिर फेस बुक पर अपने नाम से पोस्ट कर देते हैं ताक़ि अन्य सहजियों की प्रशंसा प्राप्त हो जाए।

परन्तु इससे एक बड़ा भरी नुक्सान सहजियों को होता है और वो है स्वम् की वाइब्रेशन का घट जाना। क्योंकि जिसने भी कोई भी वक्तव्य अपने 'आत्म ज्ञान' से बोला या लिखा, तो वो "परम" की प्रेरणा से उस साधक के 'आत्म-चिंतन' के आधार पर उसके भीतर में स्थित जागृत देवी-देवताओं की उपस्थिति में ही लिखा गया।

और जब किसी दूसरे ने उस पर अपने नाम की मोहर लगा दी तो उसी के भीतर रहने वाले देवी-देवता उससे रुष्ट व् क्रुद्ध हो जाते है क्योंकि ये "शक्तियां" 'असत्य' से रुष्ट हो जाती हैं और अपनी नाराजगी प्रगट करने के लिए चेतावनी के रूप में वाइब्रेशन को घटाना प्रारम्भ कर देते हैं।

और यदि फिर भी वो बार बार यही कार्य करता है तो फिर उसके कई चक्र विशेष तौर से "स्वाधिष्ठान, नाभि,विशुद्धि,आगन्या, हृदय और सहस्त्रार चक्र खराब होने लगते है और ऐसा सहजी खाली 'कनस्तर' की तरह बजता प्रतीत होने लगता है

वास्तव में वे ऐसा इसलिए करते है कि वो अपने को भीतर से अत्यंत हींन व् तुच्छ समझते हैं और उसको ढकने के लिए वो किसी दूसरे के 'आत्म ज्ञान' पर अपना ठप्पा लगाकर दूसरों की सराहना प्राप्त कर झूठी संतुष्टि महसूस करते हैं।

यदि चिंतन करके देखा जाए तो मालूम होगा की ये एक प्रकार का मनोरोग है(Psychosomatic Disorder-Dual Personality Syndrome) जो बायीं नाड़ी की समस्या को दर्शाता है।जिसके लिए "मध्य हृदय" का खुलना अति आवश्यक है।

वर्ना ये रोग धीरे धीरे लेफ्ट आगन्या के गंभीर रोग "मनोभ्रांति", एवम् 'शिजोफ्रेनिया' में परिवर्तित हो सकता है जिसके कारण मरीज हर पल भयाक्रांत रहने लगता है।

ऐसी स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने किसी कार्यक्रम में जाने के लिए अपने व्यक्तित्व को अच्छा दिखाने के लिए किसी दूसरे की शानदार ड्रेस पहन ली हों पर शरीर की संरचना बदल जाने के कारण उसके शरीर पर पूरी तरह फिट नहीं हो पा रही हो।

यदि किसी को भी अपने भीतर इस प्रकार की समस्या नजर आये तो उसको स्वम् या किसी दूसरे सहजी के द्वारा ध्यानस्थ अवस्था में (जब मध्य हृदय व् सहस्त्रार में वायब्रेशन महसूस हो रहें हों) अपने मध्य हृदय व् बाएं आगन्या में चित्त की सहायता से 'माँ के प्रेम की शक्ति(ऊर्जा) को कम से कम 5 मिनट तक हर ध्यान की बैठक में नित्य पहुंचाते रहना चाहिए, धीरे धीरे ये रोग ठीक होने लगेगा।"

-------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

Monday, March 7, 2016

"Impulses"----275--"श्री परम चैतन्य"-अनुभूति-34

"श्री परम चैतन्य"

 "मैं वही रंग हूँ जो सभी रंगों को रंग देता है,

मैं वही अंग हूँ जो सभी अंगों को जिंदगी देता है,


मैं वही जिंदगी हूँ जो सभी जिंदगियों को जिंदगी देता है,


मैं वही सत्य हूँ जो सभी सत्यों में समां जाता है,

मैं वही 'असत्य ' हूँ जो समस्त असत्यों को अनावृत करता है,

मैं वही गीत हूँ जो गीतों को जन्म देता है,

मैं वही संगीत हूँ जो सारी सृष्टि में बज उठता है,

मैं वही साज हूँ जो सारे लोकों में सजता है,

मैं वही 'जीवात्मा' हूँ जो समस्त मानवों में बसता है,

मैं वही 'परमात्मा' हूँ जो सभी आत्माओं में मुखर होता है,

मैं वही 'अस्तित्व' हूँ जो इस कायनात के जर्रे जर्रे में मिलता है। "




('Shree Param Chaitanya')


("I Am the same 'Colour' who gives colour to all the Colours,


I Am the same 'Part' which gives life to all the Parts,


I Am the same 'Life' which gives life to all the Lives,

I Am the same 'Truth' which merges into all the Truths,

I Am the same 'Untruth' which exposes all kinds of Untruths,

I Am the same 'Song' which gives births to all the Songs,

I Am the same "Music" which is heard into the whole Universe,
,
I Am the same 'Instrument' which beautifies all the Worlds,

I Am the same 'Soul' who exists into all the Humans,

I Am 'The Almighty"who manifests through all the 'Spirits',

I Am the same 'Entity' which exists into Every Particles of this Creation.")


-------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"