Tuesday, May 29, 2018

"Impulses"--447--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-2)-(23-12-17)


"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-2)
(23-12-17)

A) प्रथम स्थान-पाँव के तलवे पाँव की उंगलियों के पोरवे-सांसारिक संसाधन, मनोभाव इच्छाओं की अभिव्यक्ति।

हमारी कुण्डलिनी के जागरण के उपरांत भी हम "परमात्मा" पर हृदय से पूर्ण विश्वास नहीं कर पाते हों और हमारा चित्त हमारे मन की अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने की ओर ही लगा रहता हो।

ऐसी मन अवस्था में 'प्राण दायिनी शक्ति' आवश्यक भौतिक उपक्रमो की प्राप्ति में विभिन्न ऊर्जा संकेतकों के द्वारा हमें उपयुक्त मार्ग दिखा कर हमें भटकने से बचाती हैं।

तो ऐसी अवस्था में हमें हमारे पांवों के तलवों में उन चक्रो नाड़ियो से सम्बंधित भौतिक संसाधनों वस्तुओं की उपलब्धि अथवा अन उपलब्धि से सम्बंधित 'ऊर्जा-संकेत' आते हैं।

फिर चाहे हम व्यक्तिगत सामूहिक स्तर पर घंटो के हिसाब से ध्यान-साधना में समय ही क्यों बिताते हो और इसके साथ आत्मसाक्षात्कार देने के कार्य को भी निरंतर कर रहे हों।

क्योंकि इस मानसिक स्थिति में हमारी चेतना मन के बंधनों में जकड़ कर ऊध्र्व गति नही कर पा रही है। अभी भी हम "ईश्वरी" 'शक्ति' से जुड़ने के वाबजूद भी केवल भौतिक उप्लब्धि के प्रति ही लालायित हैं।

यानि हम केवल और केवल नर्क के विभिन्न विकल्पों की ही कामना कर रहे हैं।क्योंकि आध्यात्मिक जगत में संसार को नरकलोक कहा गया है।

उदाहरण के लिए यदि हम ध्यान के दौरान अपने किसी व्यापार में लाभ की कामना कर रहे होते हैं और वो लाभ हमें भविष्य में मिलने वाला होता है।

तो ऐसी दशा में हमारे दाहिने पाँव के तलवे उंगली के पोरवे में राजलक्ष्मी वाले स्थान पर सकारात्मक संकेत आने प्रारम्भ हो जाएंगे।और यदि इसके विपरीत हानि होनी होगी तो इन्ही स्थानों पर नकारात्मक संकेत आने प्रारम्भ हो जाएंगे।

हम सभी जानते हैं कि दोनो पाँव के तलवे हमारी दोनो नाड़ियो का प्रतिनिधित्व करते है एवम पावों की उंगलियों के पोरवे हमारे चक्रो की सांसारिक/भौतिक विभूतियों को प्रगट करते हैं।

हमारे शरीर के इन चारों स्थानों पर प्रकट होने वाले इन मूक संकेतों को समझने के लिए हमें एक बात अच्छे से आत्मसात करनी होगी।

'कि जो भी हमें किसी भी प्रकार के संकेत किसी भी स्थान पर प्राप्त होते हैं वो केवल और केवल 'हमारे चित्त अथवा चेतना की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होते हैं'' फिर चाहे हम अपने चित्त पर पूर्ण एकाग्रता के साथ नजर रख पाए या नहीं।

ये संकेत बिना चित्त की प्रतिक्रिया के अपने आप चमत्कारिक रूप से कभी भी प्राप्त नहीं हो सकते।

अधिकतर सहज अभ्यासी अपने चित्त की द्रुत गति इसके भ्रमण पर गौर नहीं रख पाते और गलत तथ्यों को पकड़ने के कारण गलत विश्लेषण के शिकार हो जाते हैं।"

---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


..........To be continued


Thursday, May 24, 2018

"Impulses"--446--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-1)(21-12-17)

"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-1)"
(21-12-17)


हम सभी सहज साधको/साधिकाओं को "श्री माँ" ने हमारी सोई 'शक्ति' को जागृत कर विभिन्न प्रकार के 'ऊर्जा-संकेतकों' के माध्यम से विभिन्न 'निराकार शक्तियों' से 'मूक-वार्तालाप' के योग्य बना दिया है।

किन्तु ये बहुतायत में देखा गया है कि हममे से अधिकतर 'सहज-ध्यान-अभ्यासी' 'चैतन्य' की मौन भाषा को ठीक प्रकार से समझ नहीं पाते।

और गलत आंकलन के कारण अक्सर विपरीत निष्कर्ष पर पहुंच कर निर्थक पीड़ा उत्पीड़न के भागी स्वम् भी बनते हैं और अन्य सहजियों को भी उस यंत्रणा का हिस्सा बना देते है।

वास्तव में हमें जो भी ऊर्जा संकेत प्राप्त होते हैं वो केवल और केवल हमारे चित्त/विचार/भाव/स्वभाव/ की प्रतिक्रिया स्वरूप ही महसूस होते हैं।

"यदि हम अपने चित्त को पूर्ण रूप से शून्य में स्थापित कर लें तो हमारा यंत्र किसी भी प्रकार के ऊर्जा संकेतो को प्रगट नहीं करेगा"

ऐसी अवस्था में हम चिर स्थाई शांति, स्थायित्व आनंद को महसूस कर रहे होंगे।यही स्थिति तो हमें ध्यान के अभ्यास से प्राप्त करनी है।

यदि हमने "श्री माँ" के लेक्चर्स को ठीक प्रकार से सुना आत्मसात किया है तो हम सभी जानते हैं कि हमारी कुण्डलिनी के सहस्त्रार में आने के उपरांत हमारे मानवीय अस्तित्व में स्थित सूक्ष्म चक्रों नाड़ियों का आभास हमें चार स्थानों पर होता है।

क्या कभी हममें से किसी ने चिंतन किया है कि चक्रो नाड़ियो की विभिन्न अवस्था की अभिव्यक्ति एक स्थान के स्थान पर चार स्थानों पर क्यों कर होती है ?

मेरी तुच्छ समझ विकास प्रक्रिया के दौर से गुजरती मेरी चेतना के अनुसार इन चार स्थानों पर प्रकट होने वाले विभिन्न लक्षणों का सम्बंध हमारी चेतना की परिवर्तित होती अवस्था इसके स्तर पर निर्भर करता है।

तो अब जरा चलते हैं इन चारों स्थानों पर प्रगट होने वाले विभिन 'ऊर्जा-संकेतको' के संवाद को समझने के लिए एक सूक्ष्म-समझ यात्रा की ओर।"



----------------------------------Narayan




"Jai Shree Mata Ji"

Thursday, May 17, 2018

"Impulses"--445--"Co-Relation Between Sahastrara and Central Heart"(19-12-17)


"Co-Relation Between Sahastrara and Central Heart"
(19-12-17)

“The co-relation between Sahastrara and Central heart is just like 'Fuel Tank' and 'Generator'.

In the state of Deep Meditation, our Kundalini works as 'Self' and our Spirit works like a Battery to start this generator.

When it gets started then its engine sucks the fuel automatically from the Fuel Tank and then the power starts generating.

This generated power goes to all the Motors (Chakras) which too produce different types of energy which is capable to pierce more Brahmmrandhara and help the Lotus to sprout at Sahastrara.

And then all the petals starts unfolding themselves one by one into the state of Deep Meditation.

Then this Lotus sucks infinite Cosmic Energy (The Power of Adi Shakti) gets nourishment to Bloom properly.

And then it become capable to Pull Out all the Kundalini of the people who come close to the Magnetic Field of this open Sahastrara whether Physically and through Attention.

Such types of Sahaji become “Mobile Centers”. This is what ‘Shree Mata ji ‘wants us to ‘Be’.

That’s why "She" has said, “I want 1000 Sahajis who can sit on their Sahastrara to transform the whole world.”

This state can be achieved easily if we maintain the sensation at both the Energy Centers like Sahastrara and Central heart.

This is not an imagination; anybody can try this, who has Pure Desire.”

-------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


Monday, May 14, 2018

"Impulses"--444--"सहज-उत्थान-व्यवस्था"(03-12-17)


"सहज-उत्थान-व्यवस्था"

"हम सहज-अभ्यासियों के चित्त/सम्पर्क में समय समय पर अनेको सहजी अक्सर आते रहते हैं। यदि हम सूक्ष्मता से गौर करें तो पाएंगे कि अक्सर उनके यंत्र की स्थिति की प्रतिक्रिया हमारे सूक्ष्म यंत्र में भी घटित होती हुई आभासित होती है।

जिसके परिणाम स्वरूप हमारे यंत्र की किसी नाड़ी में बाधा महसूस होती या किसी चक्र/चक्रों में कोई पकड़ आती हुई प्रतीत होती है। और हम जाने अनजाने में ज्यादातर यही निष्कर्ष निकालते हैं कि उस सहजी का यंत्र किसी किसी कारण से बाधित है।

साथ ही घोर अज्ञानता वश ये बात हम अन्य सहजियों को भी बताने लगते हैं और वे सहजी उन बातों को सुन कर बिना अपने यंत्र पर उक्त सहजी की स्थिति को चैक किये आगे बढ़ाते जाते हैं।

और इस प्रकार से हम आधी अधूरी समझ मानसिक जानकारी के आधार पर एक "श्री माँ" के बच्चे को सभी की नकारात्मक दृष्टिकोण का केंद्र बना देते हैं।

क्या हम एक तथ्य जानते हैं ? कि यदि कोई हमारी स्थिति से अच्छा यंत्र हमारे चित्त में या सम्पर्क में आएगा तो हमारे स्वमं की बाधित नाड़ी चक्रो को ही उजागर करेगा।

क्योंकि उसके यंत्र से प्रवाहित होने वाली उच्च आवृति घनत्व (Frequency & Intensity)की ऊर्जा हमारे यंत्र में प्रविष्ट होकर हमारे स्वम् के यंत्र को स्वच्छ करने की प्रक्रिया में लग जाती है।

जिसके फलस्वरूप हमारी स्वम् की असंतुलित नाड़ी पकड़े हुए चक्रो का आभास हमें हमारे स्वम् के यंत्र में होने लगता है। और अज्ञानता वश हम इस अपनी स्वम् की नकारात्मक आंतरिक स्थिति का दोष उस उच्च अवस्था के सहजी पर लगा देते हैं।

जैसे हम जब भी "श्री माँ" के समक्ष ध्यान में बैठकर अपने यंत्र पर चित्त डालते हैं तो हमारे यंत्र की समस्त रुकावटें हमें नाड़ी-बधाओं चक्रो की पकड़ के रूप में हमारे अपने यंत्र में उजागर होने लगती हैं।

ठीक यही कार्य "श्री माँ" उस उच्च दर्जे के सहजी के यंत्र से अपने "निराकार" स्वरूप के द्वारा हमारे यंत्र पर भी कर रही होती हैं। किन्तु अब प्रश्न ये उठता है कि संपर्क/चित्त में आये सहजी की स्थिति की वास्तविकता हम कैसे जानेंगे।

मेरी चेतना चिंतन के मुताबिक जब किसी सहजी के संपर्क में आने या उक्त सहजी को चित्त में लाने के परिणाम स्वरूप हमारा यंत्र बाधाओं को हमारे यंत्र में प्रगट करने लगे।

तो उस क्षण पूर्ण एकाग्रता से हम अपनी चेतना को अपने स्वम् के सहस्त्रार मध्य हृदय पर ले जाकर गौर करें कि हमारे इन दोनों मुख्य चक्रो में किस आवृति की ऊर्जा महसूस हो रही है और जानकर अपनी इस स्थिति को अपने संज्ञान में संचित कर लें।

इसके बाद पुनः उक्त सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय पर अपना चित्त ले जाएं 20-30 सेकिंड तक वहीं रख कर ऊर्जा को महसूस करें। इसके बाद उसके इन दोनों चक्रो की प्रतिक्रियाओं को अपने स्वम् के दोनो चक्रों यानि सहस्त्रार मध्य हृदय पर पूर्ण एकाग्रता के साथ महसूस करें कि हमारे दोनों चक्रो पर ऊर्जा बढ़ रही है या घट रही है।

यदि हमें उसके दोनो चक्रो पर चित्त रखने के बाद अपने दोनो चक्रों में ऊर्जा बढ़ती हुई महसूस हो तो निश्चित रूप से उस सहजी की स्थिति हमसे बेहतर है।

और ऐसी अवस्था में हमारे स्वम् के बाधित चक्र नाड़ी हमारे यंत्र पर प्रगट हो रहे हैं। इसके विपरीत उसके इन दोनों चक्रों पर चित्त रखने के उपरांत यदि हमें हमारे इन दोनो मुख्य चक्रों में ऊर्जा घटती महसूस हो।

अथवा नगण्य प्रतीत हो तो यकीनन उक्त सहजी का यंत्र बाधित है जिसे हमारा यंत्र संतुलित करने में संलग्न हो गया है।जिसके कारण हमें बाधा/पकड़ महसूस हो रही है।

दूसरी स्थिति में यदि हम अभी भी अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में ऊर्जा को महसूस नहीं कर पाते तो हमें अपनी स्वम् की विशुद्धि में अपनी चेतना को कुछ सैकिंड तक रखकर यंहा पर ऊर्जा प्रवाह को अथवा अपनी विशुद्धि की स्थिति को समझना होगा।

उसके उपरांत उस सहजी की विशुद्धि में अपने चित्त को 20-30 सैकिंड तक रखकर उसकी विशुद्धि में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की प्रतिक्रिया को अपनी स्वम् की विशुद्धि में देखना होगा कि ऊर्जा बढ़ रही है या घट रही है।

यदि बढ़ रही होगी तो उस सहजी की ऊर्जा-स्थिति हमसे बेहतर है और यदि घट रही होगी तो उसकी वायब्रेशन की स्थिति हमसे कमतर है।
दोनो ही अवस्था में यदि हम ये नोटिस करते हैं कि उस सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय/विशुद्धि में चैतन्य कम/नगण्य है।

तो उस सहजी के यंत्र की नकारात्मक चर्चा अन्य सहजियों के बीच करने के स्थान पर बड़े प्रेम अपने पन के साथ अपने चित्त के द्वारा से उसके सहस्त्रार के माध्यम से उसके यंत्र में अपने ध्यान की हर बैठक में कम से कम 5 मिनट के लिए ऊर्जा जब तक प्रवाहित करते रहें जब तक उसके यंत्र से नकारात्मक संकेत आते रहें।

और इसके विपरीत दोनो ही अवस्था में हम ये पाते हैं कि उस सहजी का यंत्र हमसे बेहतर अवस्था में है। तो प्रतिदिन उस सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय/विशुद्धि पर चित्त रखकर अपने ध्यान की प्रत्येक बैठक में चित्त के द्वारा 5-7 मिनट तक ऊर्जा ग्रहण करते रहें जब तक भी हमें अपने चक्रों में पकड़ महसूस होती रहे।

साथ ही उस सहजी के यंत्र की अच्छी अवस्था के बारे में अन्य से भी बताएं ताकि अन्य सहजी भी उस अच्छे यंत्र का लाभ उठा सकें। वास्तव में किसी भी सहजी के द्वारा खुले हृदय से की गई किसी अन्य यंत्र की प्रशंसा से "श्री माँ" अत्यंत प्रसन्न होती हैं।

क्योंकि वो हम सभी के बीच प्रेममयी सम्मानमई व्यवहार ही चाहती हैं। हमें ये समझना होगा कि जो भी सहजी हमारे चित/सम्पर्क में आता है उसे स्वम् "श्री माँ" किन्ही मुख्य कारणों से हमारे नजदीक लाती हैं।

अतः उस सहजी के बारे में नकारात्मक धारणा बना कर उसका प्रचार करना साक्षात "श्री माँ" का विरोध करना ही है।वास्तव में ये एक आध्यात्मिक अपराध की श्रेणी में ही आता है।

ये तथ्य की बात है कि तकनीकी रूप से हम सभी के यंत्र अलग अलग स्तर पर ही विकसित होते है।

अतः सभी यंत्रो की इस विभिन्नता को मद्देनजर रखते हुए स्वम् "श्री माँ" ही एक दूसरे सहजी के द्वारा समस्त यंत्रो को उनकी आवश्यकतानुसार विभिन्न आवृति घनत्व की ऊर्जा के द्वारा लाभान्वित करने की व्यवस्था करती हैं।

यदि हम इस पहलू को समझना चाहें तो इसके के लिए हम बिजली के विभिन्न उपकरणों की विद्युत आवश्यकता को समझ सकते हैं। कि ये अलग अलग उपकरण अलग अलग विद्युत क्षमता Ampr पर ही सुचारू रूप से कार्य करते है।

यदि हम विभिन्न प्रकार के उपकरणों को एक ही प्रकार Ampr विद्युत क्षमता प्रवाहित करेंगे तो या तो ये जल जाएंगे या ठीक प्रकार से कार्य ही नहीं कर पाएंगे या हमें उपयोग करने पर हानि पहुंचाएंगे।

ठीक इसी प्रकार से "श्री माँ" हम सभी के यंत्रो के लिए हमारे स्वम् के यंत्र की प्रवहण/ग्रहण क्षमता के मुताबिक ही अन्य यंत्रो से मिलवाती हैं। अतः किसी भी "श्री माँ" के यंत्र के बारे में अनर्गल नकारात्मक प्रचार करना "श्री माँ" के प्रेम वात्सल्य की गरिमा को ठेस पहुंचाना ही है।

ये सब "श्री माँ" की कार्यप्रणाली नेटवर्क का ही हिस्सा है अतः हमको उनकी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने का कोई अधिकार ही नहीं है। 

फिर भी यदि हम अपने अहंकार, ईर्ष्या घृणा की भावनाओं से प्रभावित होकर इस प्रकार के नकारात्मक प्रवहण से बाज नहीं आते तो फिर ये चेतना क्या बताए..........हमें तैयार रहना चाहिए कि हमारे साथ क्या क्या नकारात्मक हो सकता है........????"

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"Jai Shree Mata Ji"
(03-12-17)